इश्क उम्र का मोहताज नहीं होता। यह किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है और जरूरी नहीं है जिससे इश्क किया जाए वो उसका हमउम्र ही हो। कई वर्षों का अंतर भी दोनों के बीच हो सकता है। इस फलसफे पर कई फिल्म बन चुकी हैं। कई बार उम्र में बड़ी स्त्री होती है तो कभी पुरुष।
निर्देशक अकीव अली की फिल्म 'दे दे प्यार दे' में लंदन में रहने वाले 50 वर्षीय आशीष (अजय देवगन) और उससे उम्र में आधी आयशा (रकुल प्रीत सिंह) को इश्क हो जाता है। पहली मुलाकात में ही दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं।
किसी के साथ सोने से यदि प्यार नहीं होता तो सोने से प्यार कैसे खोता है जैसे फंडे पर चलने वाले आशीष और आयशा कब एक-दूसरे को दिल दे बैठते हैं यह न उन्हें पता चलता और न ही दर्शकों को। अचानक दोनों जुदा होते ही एक-दूजे के लिए तड़पने लगते हैं तब यह बात समझ में आती है।
लंदन में मौज-मस्ती का जीवन जीने वाले आशीष और आयशा अचानक शादी के लिए गंभीर हो जाते हैं। आशीष भारत में रहने वाले अपने परिवार से मिलाने के लिए आयशा को ले जाता है।
आशीष के दो जवान बच्चे हैं। पत्नी मंजू (तब्बू) है जिससे अलग हुए उसे लंबा समय हो गया है। माता-पिता हैं। भारत में अपने घर पहुंचते ही आशीष अपने आपको विचित्र परिस्थितियों में पाता है। आधुनिक और दबंग आशीष अब डरपोक सा बन जाता है और उसका यह रूप देख आयशा चकित रह जाती है और कई हास्यापस्द परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं।
दे दे प्यार दे की कहानी लव रंजन ने लिखी है, जबकि स्क्रीनप्ले लव रंजन, तरुण जैन और सुरभि भटनागर ने मिल कर लिखा है। फिल्म की शुरुआत अच्छी है और आशीष-आयशा की बेमेल जोड़ी की प्रेम कहानी अच्छी लगती है, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है इस जोड़ी की ताजगी खत्म होने लगती है।
इसके बाद परिवार वाला ट्विस्ट दिया गया है। यहां पर कुछ सीन अच्छे हैं तो कुछ बुरे। अचानक आधुनिक सा आशीष भारत लौटते ही अजीब व्यवहार करने लगता है। एक राखी वाला सीन भी स्क्रिप्ट में बिलकुल फिट नहीं बैठता जिसमें पत्नी ही अपने पति को राखी बांध देती है। इसी तरह जिमी शेरगिल का किरदार भी जबरन थोपा गया है।
फिल्म अच्छे और बुरे दृश्यों के बीच लड़खड़ाती है, लेकिन अच्छी बात यह है कि कुछ अच्छे दृश्य फिल्म को संभाल लेते हैं। लेखकों ने कहानी से ज्यादा मेहनत किरदार और संवादों पर की हैं।
फिल्म के कुछ दृश्यों में इतने जोरदार संवाद हैं और इतनी सफाई से किरदार अपने आपको व्यक्त करते हैं कि उनकी सोच बहुत स्पष्ट नजर आती हैं।
फिल्म का अंत क्या होगा इसमें लगातार दिलचस्पी बनी रहती है और लेखकों ने फिल्म का अंत बहुत अच्छे से किया है। उन्होंने पति-पत्नी, उम्रदारज पुरुष-कमसिन लड़की के रिश्ते को नए ढंग से सामने रखा है। थोड़ी मेहनत कहानी पर भी हो जाती तो फिल्म की खूबसूरती और बढ़ जाती।
अकीव अली निर्देशक के रूप में प्रभावित करते हैं, हालांकि उन पर लव रंजन की छाप नजर आती है। उन्होंने अपने निर्देशन से फिल्म को ताजगी दी है और खूबसूरती से फिल्माया है।
अजय देवगन पूरी तरह रंग में नजर नहीं आए, खासतौर पर रकुल के साथ रोमांटिक दृश्यों में वे असहज दिखाई दिए। रकुल प्रीत सिंह कैमरे के सामने आत्मविश्वास से भरपूर और बिंदास नजर आईं। तब्बू का अभिनय शानदार है और कई दृश्य केवल उनके कारण देखने लायक बने हैं।
फिल्म का संगीत ठीक है। कुछ गीत कहानी को आगे बढ़ाते हैं तो कुछ गीतों की जगह ही नहीं बनती। सेट्स, कॉस्ट्यूम और लोकेशन्स आंखों को अच्छे लगते हैं।
मे-डिसेंबर रोमांस वाली कहानी पर बनी फिल्म 'दे दे प्यार दे' को एक मौका दिया जा सकता है।
निर्माता : भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, लव रंजन, अंकुर गर्ग