बड़े मियां छोटे मियां रिव्यू: एक्शन की लहर पर सवार टाइगर श्रॉफ और अक्षय कुमार
Bade Miyan Chote Miyan Review: बड़े मियां छोटे मियां नाम से निर्माता वाशु भगनानी ने अमिताभ बच्चन और गोविंदा को लेकर 1998 में एक कॉमेडी फिल्म प्रोड्यूस की थी। अब वाशु ने इसी नाम से अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ को लेकर एक्शन फिल्म बनाई है। निर्देशन की जवाबदारी अली अब्बास ज़फर को सौंपी गई है जो मेरे ब्रदर की दुल्हन, सुल्तान और टाइगर जिंदा है जैसी सफल फिल्म बना चुके हैं।
इन दिनों फिल्मों में भारत पर लगातार खतरा मंडराता हुआ नजर आता है और दुश्मनों के नापाक मंसूबों को कभी टाइगर, कभी पठान तो कभी कबीर ध्वस्त करते दिखाई देते हैं। बड़े मियां छोटे मियां में यह जिम्मेदारी फिरोज उर्फ फ्रैडी (अक्षय कुमार) और राकेश उर्फ रॉकी (टाइगर श्रॉफ) निभाते हैं।
इन दिनों एआई का खूब जोर है तो फिल्म में भी दिखाया गया है। कबीर (पृथ्वीराज सुकुमारन) एआई और विज्ञान की मदद से ऐसे सैनिकों के ऐसे क्लोन बनाता है जो भारतीय सेना में शामिल होकर देश की रक्षा कर सकते हैं, लेकिन उसके आइडिए को रिजेक्ट कर दिया जाता है तो वह भारत से बदला लेने पर उतारू हो जाता है।
वह भारत का सबसे पॉवरफुल टेक्नोलॉजी वेपन जिसका कोड नेम पैकेज है चुरा लेता है और आर्मी को चैलेंज करता है कि वह 72 घंटे में भारत को बरबाद कर देगा। उसे रोकने की जवाबदारी बड़े मियां और छोटे मियां को मिलती है।
आमतौर पर इस फिल्म की शुरुआत में एक मिशन दिखाया जाता है। अफगानिस्तान में अगवा किए गए राजदूत को आतंकवादियों के चुंगल से बचाने का मिशन फ्रेडी और रॉकी करते दिखाई देते हैं। इसके बाद फ्रेडी और रॉकी, कैप्टन प्रिया (सोनाक्षी सिन्हा), टेक एक्सपर्ट पैम (अलाया एफ), कैप्टन मिशा (मानुषी छिल्लर) और कर्नल आजाद (रोनित रॉय) के साथ भारत को बचाने के मिशन में जुट जाते हैं।
कहानी में कोई नई बात नहीं है ये बात निर्देशक अली अब्बास ज़फर जानते है इसलिए उन्होंने सारा जोर ड्रामे को प्रेजेंट करने पर लगाया है। उन्होंने वीडियो गेम स्टाइल में फिल्म को फिल्माया है जिसमें ढेर सारे स्टंट्स हैं।
दर्शकों को सोचने का मौका नहीं देना है इसलिए फिल्म को उन्होंने जेट स्पीड से दौड़ाया है। शुरू में यह बात अच्छी लगती है, लेकिन जल्दी ही फिल्म कमजोर राइटिंग के कारण हांफने लगती है और फिर फिल्म को खींचने के लिए कल्पना के जो घोड़े दौड़ाए गए हैं वो तर्कों को खिड़की से बाहर फेंक देते हैं।
टेक्नोलॉजी, एआई, करण कवच, इनविजीबल टेक्नोलॉजी शील्ड, क्लोन, प्रलय, चीन, पाकिस्तान जैसी कई बातें डाल कर कहानी को आगे बढ़ाया गया। इनसे ड्रामा न विश्वसनीय बन पाया है और न ही मनोरंजक।
एक्शन और स्टंट्स से लबरेज फिल्में ठोस कहानी के अभाव में तब अपील करती है जब अवधि दो घंटे से कम हो। अली अब्बास ज़फर अपनी बात पूरी करने में पौने तीन घंटे लेते हैं, जिसके कारण फिल्म अपना प्रभाव खो देती है। कुछ देर बार स्क्रीन से संपर्क खत्म हो जाता है और दर्शक इंतजार करते हैं कि कब फिल्म खत्म हो। हालांकि उन्होंने फिल्म को इस तरह बनाया है कि पहले सीन से ही लगता है कि क्लाइमैक्स शुरू हो गया है।
निर्देशक अली अब्बास ने तमाम उतार-चढ़ाव डाल कर दर्शकों को बांधने की कोशिश की है। एक्शन फिल्म के नाम पर कुछ नया करने का उनका यह प्रयोग सफलता हासिल नहीं कर पाया। उन्होंने कई देशी-विदेशी फिल्मों से प्रेरणा लेकर 'बड़े मियां छोटे मियां' बनाई है और एक्शन को फ्रंट सीट पर रख कर दर्शकों को लुभाने का प्रयास किया है।
इस बात में कोई शक नहीं है कि एक्शन सीन अपील करते हैं, लेकिन एक सीमा बाद ये रिपीटेटिव हो जाते हैं। फिल्म की लंबाई पर नियंत्रण और स्क्रीनप्ले को मजबूत बनाने पर अली यदि जोर देते तो यह फिल्म बेहतर हो सकती थी।
अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ एक्टिंग कम और एक्शन ज्यादा करते नजर आए। दोनों की बॉण्डिंग अच्छी लगती है। जनरेशन गैप को लेकर भी फिल्म में नोंकझोंक रखी गई है, जब GOAT को अक्षय कुमार बकरी समझ लेते हैं। टाइगर बिंदास नजर आए जबकि अक्षय ने अपने आपको रोक कर रखा। एक्शन सीन में बेहतरीन लगे हैं।
मानुषी छिल्लर ने एक ही एक्सप्रेशन से पूरी फिल्म में काम चलाया है। सोनाक्षी सिन्हा का रोल जितना अजीब लिखा गया है उतनी ही अजीब उनकी एक्टिंग है। अलाया एफ फिल्म में फ्रेशनेस लाती हैं। पृथ्वीराज सुकुमारन बड़ा नाम है, लेकिन उनके कद का रोल नहीं है। विलेन के रूप में वे दर्शकों में सिरहन नहीं पैदा कर पाए।
गाने और बैकग्राउंड म्यूजिक कामचलाऊ है। एडिटिंग में चुस्ती नजर नहीं आई। सबसे अच्छा काम एक्शन डायरेक्टर्स का है।
बड़े मियां छोटे मियां विदेशी फिल्मों की स्टाइल में बनाई गई देसी फिल्म है, जिसमें मनोरंजन का तड़का कम है।