Adipurus review हिंदी फिल्मों की बनने की जबसे शुरुआत हुई है तब से ही रामायण फिल्मकारों को आकर्षित करती रही है। कुछ ने पूरी रामायण को फिल्म में दर्शाने की कोशिश की है तो कुछ ने खास प्रसंग लेकर फिल्म बनाई है। दरअसल रामायण पर फिल्म बनाने के बजाय टीवी धारावाहिक या वेबसीरिज बनाई जानी चाहिए ताकि विस्तार के साथ सभी घटनाक्रमों का समावेश किया जा सके। रामानंद सागर का टीवी धारावाहिक 'रामायण' आज भी याद किया जाता है।
बदलते दौर के साथ धार्मिक और पौराणिक विषयों पर बनने वाली फिल्मों की संख्या नगण्य हो गई, लेकिन आधुनिक तकनीक के कारण इस ओर एक बार फिर से फिल्मकारों का ध्यान गया है। 'तान्हाजी' में निर्देशक ओम राउत ने ऐसे हीरो की कहानी दिखाई थी जिसकी वीरता के बारे में बहुत कम लोग जाते थे। अपनी दूसरी फिल्म 'आदिपुरुष' में ओम ने ऐसे नायक के बारे में फिल्म बनाई जिसके बारे में सभी जानते हैं।
रामायण को फिल्म या टीवी धारावाहिक के रूप में देखना सुखद लगता है, भले ही उसकी कहानी हमें पता हो या आगे क्या होने वाला हैं हम जानते हों। ओम राउत ने रामायण को विज्युअल इफेक्ट्स, सीजीआई, लाइटिंग और कलर ग्रेडिंग की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर बिग स्क्रीन पर दिखाया है। फिल्म के पहले ट्रेलर की काफी आलोचना हुई थी, इसलिए कुछ सुधार के ओम राउत फिल्म लेकर आए हैं।
आदिपुरुष की कहानी सीता हरण से शुरू होती है। इसके बाद प्रभु श्रीराम, सीता को वापस लेने लंका जाते हैं और वहां राम-रावण के बीच युद्ध होता है। इस पूरे घटनाक्रम को तीन घंटे की फिल्म में समेटा गया है।
फिल्म में आधुनिकता के नाम पर रावण लेटेस्ट हेअरकट में नजर आता है। उसकी सोने की लंका काली और ग्रे रंग में है। कुछ किरदार टैटू के साथ नजर आते हैं। रावण की फौज में ढेर सारे चमगादड़ हैं। ये सारे बदलाव हॉलीवुड फिल्मों और 'द लॉर्ड ऑफ रिंग्स' से प्रेरित होकर किए गए हैं जिनकी कोई जरूरत नहीं थी।
वैसे भी आधुनिकता के नाम पर कुछ भी करना ठीक नहीं है, खासतौर पर यदि आप फिल्म रामायण पर बना रहे हों। हां, राम-सीता जैसे प्रमुख किरदारों के लुक के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है और यहां पर फिल्म से जुड़े लोगों ने सावधानी बरती है।
ओम राउत ने इस फिल्म को उस दर्शक वर्ग को ध्यान में रख कर बनाई गई है जो एवेंजर्स जैसी फिल्में पसंद करता है। 'आदिपुरुष' देखते समय महसूस होता है कि आप रामायण का 'एवेंजर वर्जन' देख रहे हों।
वीएफएक्स का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया गया है और इस मामले में काफी छूट भी ली गई है। खासतौर पर राम-रावण का जो युद्ध दिखाया गया है, वो पारंपरिक तरीके का नहीं लगता। उसे उसी तरह से फिल्माया गया है जैसे एवेंजर सीरिज की फिल्मों का क्लाइमैक्स होता है। नि:संदेह यह एक वर्ग को रोमांचित करेगा, लेकिन ज्यादातर दर्शक ऐसे हैं जिन्हें यह बात पसंद नहीं आएगी।
रामायण देखते समय दर्शक घोर पारंपरिक हो जाता है। वह तथ्यों के साथ छेड़छाड़ पसंद नहीं करता है और इस माइंड सेट के साथ फिल्म देखने जाने वाले दर्शकों को आदिपुरुष निराश करती है। राम को मर्यादा पुरुष कहा जाता है। उनमें एक मानव में होने वाले सारे गुण मौजूद थे। फिल्म इन गुणों का कोई बखान नहीं करती।
मान लीजिए, एक बच्चा जो रामायण के बारे में नहीं जानता, 'आदिपुरुष' देखने के बाद आश्चर्य व्यक्त कर सकता है कि राम को इतना महान क्यों कहा जाता है? हां, वीएफएक्स के जरिये वो रोमांचित जरूर हो जाएगा। यदि आप रामायण आधारित फिल्म देख कर बाहर निकलते हैं और राम की सौम्यता और गुणों से भरे अवतार से परिचित नहीं होते तो यह फिल्मकार की बड़ी खामी ही मानी जाएगी।
ओम राउत ने कहानी कहने का एक अलग अंदाज फिल्म में दिखाया है। विज्युअल इफेक्ट्स के जरिये वे दर्शकों पर ग्रिप बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इमोशन पर ध्यान नहीं देते। घटनाक्रम तेजी से घटते हैं ताकि दर्शकों का ध्यान नहीं भटके, लेकिन दर्शक देखने क्या आए थे और दिखाया क्या जा रहा है इससे दर्शक और फिल्मकार के बीच संपर्क टूट जाता है।
रामायण के मुख्य प्रसंगों का सहारा लेकर कहानी को आगे बढ़ाया है, लेकिन कुछ जरूरी बातें छोड़ दी गई हैं जिनका दिखाया जाना अत्यंत आवश्यक था, जैसे विभीषण का राम को ये बताना की रावण को मारने के लिए तीर कहां मारना होगा।
फिल्म की एक बड़ी कमजोरी इसके संवाद हैं। ये इतने साधारण हैं कि इन्हें सुन हैरत होती है। जैसे सीता कहती है, जानकी सिर्फ राघव की है। हनुमान की पूंछ में आग लगाई जाती है तो वे कहते हैं कि तेल तेरे बाप का, आग तेरे बाप की, लंका तेरे बाप की, जली... अब तेरी जलेगी, इस तरह के संवाद सीता-हनुमान के मुंह से सुनना बिलकुल अच्छा नहीं लगता। 'जंगल' की बजाय 'वन' कहा जाता तो यह फिल्म के विषय को देखते हुए ज्यादा बेहतर प्रतीत होता।
इमोशन सिरे से गायब हैं और ये भी फिल्म का एक बड़ा माइनस पाइंट है। दर्शक कभी भी कहानी से कनेक्ट नहीं हो पाते हैं। राम को स्क्रीन पर देख भक्ति भाव नहीं उमड़ते। दरअसल राम के किरदार के साथ तो अन्याय ही किया गया है। उन्हें फिल्म में उभरने का अवसर ही नहीं मिलता। न उन्हें दमदार संवाद मिले हैं और न दमदार दृश्य। इसके बजाय रावण पर ज्यादा फोकस किया गया है।
ओम राउत ने तकनीक पर सवार होकर रामायण को दिखाने की कोशिश की है, लेकिन मार खा गए हैं। यह ऐसा विषय है जिस पर स्तरीय काम होना चाहिए और लाइन से ज्यादा इधर-उधर नहीं होना चाहिए क्योंकि राम-सीता और रामायण को लेकर दर्शकों के दिमाग में एक खास तरह की छवि है।
पूरी फिल्म में राम को राघव, सीता को जानकी, लक्ष्मण को शेष और हनुमान को बजरंग कहा गया है। क्या कानूनी अड़चन से बचने के लिए या कोई और कारण है?
ट्रेलर में जरूर वीएफएक्स की आलोचना हुई हो, लेकिन फिल्म देखते समय ये ठीक लगते हैं और खासतौर पर थ्रीडी वर्जन में इनका इफेक्ट और बढ़ जाता है। अतुल-अजय का संगीत अच्छा है और बैकग्राउंड म्यूजिक शानदार है। सिनेमाटोग्राफी लाजवाब है।
राम के रूप में प्रभास बिलकुल प्रभावित नहीं कर पाए। पूरी फिल्म में वे दबे-दबे रहे। इसमें निर्देशक की भी गलती है। कृति सेनन को भी ज्यादा करने को नहीं मिला, लेकिन सीता के रूप में वे अच्छी लगीं। सैफ अली खान टिपिकल बॉलीवुड खलनायक की तरह लगे। वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। लक्ष्मण बने सनी सिंह, बजरंग बने देवदत्ता नागे और इंद्रजीत बने वत्सल सेठ का अभिनय ठीक रहा।
कुल मिलाकर 'आदिपुरुष' महाकाव्य के साथ न्याय नहीं कर पाती।