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Written By समय ताम्रकर

सिने-मेल (13 सितंबर 2007)

सिने-मेल (13 सितंबर 2007) -
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प्रिय पाठको, वेबदुनिया के बॉलीवुड के सेक्शन में नित नई, मनोरंजक, आकर्षक, दिलचस्प और चटपटी सचित्र जानकारियाँ देने की हमारी कोशिश रहती है। इन्हें पढ़कर आपको कैसा लगता है, हम जानना चाहते हैं।

आपकी बॉलीवुड संबंधी प्रतिक्रिया और सुझाव हम ‘सिने-मेल’ में प्रकाशित करेंगे। हमें इंतजार है आपके ई-मेल का

‘डार्लिंग’ फिल्म में निर्देशक ने फरदीन खान को जो भूमिका सौंपी है, वह फरदीन के लिए सही नहीं है। फरदीन इस कहानी में कहीं से फिट नहीं बैठते हैं।
- अरूण मिश्रा (mishraarun_79@yahoo.co.in)

‘धमाल’ फिल्म की कहानी हॉलीवुड की फिल्म ‘इट्स ए मेड मेड वर्ल्ड’ से चुराई गई है।
- होतीलाल (lalgupta@rediffmail.com)

‘हे बेबी’ फिल्म बहुत ही अच्छी फिल्म है।
- अनिल (anil_gargi@yahoo.com)

पार्टनर फिल्म की समीक्षा बहुत अच्छी तरह लिखी गई है। इतनी अच्छी समीक्षा करने के लिए मैं आपको दस में से दस देना चाहूँगा क्योंकि फिल्म के बारे में आपके विचार बिलकुल सही है।
- भगवती लाल दवे (bhagwati.dave@yahoo.com)

‘चक दे इंडिया’ की सफलता का श्रेय शाहरुख को दिया जा रहा है, जो गलत है। फिल्म इसलिए सफल हुई क्योंकि हमारी टीम विश्वकप जीतती है। इसमें भला शाहरुख ने क्या किया।
- जतिन ओबेरॉय (jatinoberoi18@rediffmail.com)

मैं अक्षय कुमार का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। उनकी फिल्मों का मुझे हमेशा इंतजार रहता है। मैं चाहता हूँ कि वे हमेशा हास्य और एक्शन‍ फिल्म ही करें।
- साकेत कुमार सिंह (saketyash@yahoo.co.in)

शाहरुख से कोई पंगा नहीं : सुष्मिता सेन पढ़ा। सुष्मिता बहुत ही अच्छी अभिनेत्री है। उसने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया है। शाहरुख को मि. शाहरुख कहने से उसकी निर्भीकता का पता चलता है।
- सुनीता पाटीदार (sonu_patidar1976@yahoo.com)

‘डार्लिंग’ फिल्म का संगीत सुपर हिट है, खासतौर पर ‘तड़प’ वाला गाना।
- नितिन (nitinbamdale@yahoo.co.in)

‘सिने-मेल’ बहुत अच्छा स्तम्भ है। इसमें सभी के विचार पढ़ने को मिलते हैं।
- राजेन्द्र घोरपड़े (rkghorpade2004@yahoo.com)

‘बच्चन परिवार ने लगाई ऐश पर रोक’ पढ़ा। आखिर लड़कियों को ही यह सब क्यों भुगतना पड़ता है। यदि ऐश परदे पर ग्लैमरस दृश्य नहीं कर सकती, तो अभिषेक को भी किसी नायिका के साथ चुम्बन दृश्य नहीं करना चाहिए।
- शोब (shobikatandon@yahoo.com)

करीना कभी भी शादी करें, मेरी शुभकामनाएँ उसके साथ हैं।
- गणेश राणे (ganeshrane@hotmail.com)

मैं ‘चक दे इंडिया’ सात बार देख चुका हूँ। ऐसी फिल्म सालों में एक बार बनती है। मैं इस फिल्म से जुड़े सभी लोगों को बधाई देना चाहता हूँ।
- निलाभ वर्मा (nilabh.v@rediffmail.com)

‘हे बेबी’ में जबरदस्त हास्य है। यह फिल्म हर वर्ग के लोगों को अच्छी लगेगी। अक्षय और रितेश तो हास्य भूमिकाओं में हमेशा अच्छे लगते हैं।
- अंकुर उपाध्याय (ankur.upadhyay@webdunia.net)

मुझे बॉलीवुड के सभी स्तम्भ बेहद पसंद आते हैं। मेरी पत्नी कहती है कि खाना खा लो, लेकिन जब तक मैं सब कुछ पढ़ न लूँ तब तक मुझे नींद नहीं आती।
- हिमांशु कालिया (himanshulic@yahoo.co.in)

मैं अजय देवगन का प्रशंसक हूँ। शाहरुख खान मुझे ज्यादा पसंद नहीं है, लेकिन ‘चक दे इंडिया’ देखने के बाद मेरी धारणा बदल गई है। इस फिल्म को मैंने दो बार देखा और कई दृश्यों में तो मेरी आँखों से आँसू निकल आए।
- जगजीत सिंह (www.be_a_rebel_jeet@yahoo.com)

‘दो वर्ष बाद शादी करेगी करीना’ पढ़ा। मैं शर्त लगा सकता हूँ कि करीना शाहिद से शादी नहीं करेगी क्योंकि मुझे फिल्मी कलाकार के कहे पर बिलकुल भी विश्वास नहीं है।
- बलवंत (balwantsr@epatra.com)

‘चक दे इंडिया’ बहुत अच्छी फिल्म है। ऐसी फिल्म हर भारतवासी को देखनी चाहिए। हॉकी में क्रिकेट से ज्यादा रोमांच होता है। हम भारतीय हॉकी को भूल चूके हैं। मैं इस फिल्म को 5 में से 4.5 अंक देना चाहूँगा।
- प्रवीण जैन (praveenjaincs@yahoo.co.in)

‘चक दे इंडिया’ जबरदस्त फिल्म है। इस फिल्म में अभिनय, संगीत, पटकथा सब कुछ अद्‍भुत है। देशप्रेम को जगाने वाली यह फिल्म आदमी को ऊर्जा से भर देती है।
- निखिल गुप्ता (nikhilagupta@yahoo.co.in)
- पवन (pawanthakur123@webduniya.com)

‘दो वर्ष बाद शादी करेंगी करीना’ आलेख बहुत पसंद आया। करीना बहुत ही सुन्दर अभिनेत्री हैं।
- कौशलेन्द्र (kaushv@rediffmail.com)

गीत-गंगा ‘जीना यहाँ, मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ?’ बेहद पसंद आई।
- सतीश कुमार (Satishky84@yahoo.co.in)

अमिताभ बच्चन बहुत अच्छे कलाकार हैं। मैं उनकी खातिर ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ देखना पसंद करूँगा।
- राजेश कल्याणे (rajesh.kalyane@rediffmail.com)
- श्रवण कुमार (shravankumar5@sify.com)

‘रामगोपाल वर्मा की आग’ में दी गई जानकारी सराहनीय है।
- जयेश (bhavikjt9999@webdunia.com)

‘जीना यहाँ, मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ?’ पढ़कर ‘मेरा नाम जोकर’ की याद आ गई। यह फिल्म न होकर एक ग्रंथ है। इस फिल्म में राज कपूर का जवाब नहीं है। मुकेश की आवाज सुनकर ऐसा लगता है मानो दुनिया में सिर्फ दर्द है और कुछ भी नहीं है।
- ब्रजेश कुमार (bbkumar2007@rediffmail.com)