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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024 (08:47 IST)

यूक्रेन से जंग लड़कर भी पुतिन रूस की अर्थव्यवस्था को कैसे जी-7 देशों से आगे ले गए

यूक्रेन से जंग लड़कर भी पुतिन रूस की अर्थव्यवस्था को कैसे जी-7 देशों से आगे ले गए - How putin takes russian economy ahead of ukraine
फ़ैसल इस्लाम, इकोनॉमिक्स एडिटर, बीबीसी न्यूज़
ये मार्च, 2022 की बात है। रूस की मुद्रा रूबल औंधे मुंह गिर चुकी थी। गैज़प्रॉम और एसबरबैंक जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों का मूल्य लंदन के हिसाब से 97 फ़ीसदी तक गिर गया था।
 
मॉस्को में एटीएम के बाहर लंबी कतारें लगने लगीं। बड़े-बड़े कारोबारियों की नौकाएं, फुटबॉल टीमें, आलीशान बंगले और यहां तक कि क्रेडिट कार्ड भी ज़ब्त कर लिए गए। रूस भारी मंदी की चपेट में आ चुका था।
 
ये यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर आर्थिक रूप से दबाव डालने के लिए पश्चिमी देशों की ओर से किए जा रहे असाधारण प्रयासों का नतीजा था।
 
सबसे बड़ी कार्रवाइयों में रूस की सरकारी संपत्तियों और विदेशी मुद्रा भंडार की ज़ब्ती थी। इससे भी सटीक अगर बताया जाए तो रूस के सेंट्रल बैंक रिज़र्व्स की 300 अरब अमेरिकी डॉलर की राशि को फ़्रीज़ करना सबसे बड़ा धक्का था।
 
पश्चिमी मुल्कों की सरकारें जानबूझकर 'इकोनॉमिक वॉर' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से बचती रहीं, लेकिन असलियत ये थी कि ये बहुत हद तक क्रेमलिन के साथ एक आर्थिक जंग की तरह ही दिख रहा था। ये परमाणु संपन्न देशों के बीच सीधे टकराव की बजाय एक बेहतर विकल्प था।
 
रूस की अर्थव्यवस्था
करीब दो वर्ष गुज़र चुके हैं और इस आर्थिक परिदृश्य में बहुत बड़े बदलाव आए हैं। इस सप्ताह एक लंबे और चर्चित इंटरव्यू में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने काफ़ी खुशी ज़ाहिर करते हुए ये दावा किया कि पूरे यूरोप में रूस की अर्थव्यवस्था सबसे तेज़ी से बढ़ रही है।
 
पिछले हफ़्ते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने जब रूस की अर्थव्यवस्था की विकास दर का पूर्वानुमान 1.1 फ़ीसदी से बढ़ाकर 2.6 फ़ीसदी किया, तो इससे रूसी अर्थव्यवस्था की ताकत भी उजागर हुई।
 
आईएमएफ़ के आंकड़ों के अनुसार, रूस की अर्थव्यवस्था बीते साल सभी जी-7 देशों की तुलना में तेज़ी से बढ़ी और 2024 में भी यही स्थिति रहेगी। ये महज़ आंकड़े नहीं हैं।
 
यूक्रेन में चल रहे संघर्ष और उसके उलझे हालात को रूसी अर्थव्यवस्था के फिर से मजबूत होने से सहारा मिला है। यूक्रेन के पूर्व और दक्षिण में चल रही लड़ाई में रूस की सैन्य कोशिशें तेज़ हो गई हैं।
 
क्या रूस ये विकास बरक़रार रख पाएगा?
पश्चिम के नेता लगातार कहते आ रहे हैं कि ये मॉडल लंबे समय तक नहीं टिकेगा। लेकिन सवाल ये है कि ये कितने समय तक टिक पाएगा?
 
रूस ने अपनी अर्थव्यवस्था को एक मोबलाइज़्ड वॉर इकोनॉमी में बदल दिया है, जिसका अधिकांश हिस्सा केवल युद्ध पर खर्च हो रहा है। रूस सोवियत काल के बाद पहली बार इतनी भारी-भरकम राशि खर्च कर रहा है।
 
पूरे बजट का 40 फ़ीसदी हिस्सा सेना और सुरक्षा पर खर्च हो रहा है, जो सोवियत काल के आख़िरी सालों के बराबर पहुंच गया है। इसके अलावा रूस की सरकार टैंक के निर्माण, मिसाइल सिस्टम और अपने नियंत्रण में आए यूक्रेनी क्षेत्रों को बचाए रखने पर भी बड़ी राशि खर्च कर रही है।
 
दिलचस्प है कि रूस के तेल और गैस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बावजूद हाइड्रोकार्बन उत्पादों की बिक्री से मिलने वाला राजस्व अभी भी रूस का सरकारी खजाना भर रहा है।
 
तेल के टैंकर अब भारत और चीन की ओर बढ़ रहे हैं। अधिकांश भुगतान अमेरिकी डॉलर की बजाय चीन की मुद्रा युआन में हो रहा है।
 
रूबल को संभालने में मदद
रूस का तेल उत्पादन अभी भी 9.5 अरब बैरल प्रति दिन बना हुआ है, जो युद्ध से पहले की तुलना में कुछ ही कम है। रूस ने सैकड़ों टैंकर गुप्त तंत्र से खरीदे और उन्हें तैनात भी किया। इस तरह से वह प्रतिबंधों से बचकर निकलने में भी कामयाब रहा।
 
रूसी तेल, गैस और हीरे से मिलने वाली विदेशी मुद्रा ने भी गिरते रूबल को संभालने में मदद की है।
 
पश्चिम के नेता इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ये लंबे समय तक नहीं चलेगा, लेकिन वे इसके असर से भी वाकिफ़ हैं।
 
एक विश्व नेता ने हाल ही में निजी तौर पर ये टिप्पणी की, "हमने जितना सोचा उसकी तुलना में 2024 पुतिन के लिए ज़्यादा सकारात्मक रहने वाला है। हमने जितना सोचा था, वह उससे अधिक बेहतर तरीके से अपने उद्योग जगत को पुनर्गठित करने में सफल रहे।"
 
सामने आएगी रूस की असलियत
लेकिन आर्थिक विकास के इस तरीके ने रूस की निर्भरता उसकी तेल से होने वाली आमदनी, चीन और युद्ध पर हो रहे गैर-उपयोगी खर्च पर बढ़ा दी है।
 
जैसे ही तेल और गैस की मांग पीक पर पहुंचेगी और प्रतिस्पर्धी अरब खाड़ी देशों के उत्पादन के बारे में अगले साल ऑनलाइन जानकारी आएगी, तब रूस की असलियत दिख जाएगी।
 
पूर्वी यूक्रेन में जाकर फटने वाले टैंकों और गोला-बारूद का निर्माण बढ़ने से आंकड़ों में जीडीपी में ज़रूर ऊपर जाती दिख रही है लेकिन इससे रूस के हाथ में कुछ ठोस नहीं बचेगा। इस बीच रूस के कई प्रतिभावान नागरिकों का भी अपने देश से मोहभंग होता दिखा है।
 
पश्चिमी देशों की रणनीति रूसी अर्थव्यवस्था की घेराबंदी करने की नहीं है। बल्कि वे ऐसे खेल में रूस को उलझाना चाहते हैं जहां प्रौद्योगिकी तक उसकी पहुंच प्रतिबंधित होगी, उसकी आमदनी को सीमित करना, महंगाई बढ़ाना और ऐसी परिस्थितियां बनाना है, जिससे ये संघर्ष लंबे समय तक न टिक सके।
 
तेल के बाज़ार
अमेरिका के एक अधिकारी ने मुझसे कहा, "हम चाहेंगे कि रूस टैंक की बजाय तेल के टैंकर खरीदने पर अपना पैसा इस्तेमाल करे।"
 
उदाहरण के लिए तेल के बाज़ार से जुड़ी नीतियों का मक़सद भारत को रूस का तेल खरीदने से रोकना नहीं है। बल्कि उस खरीद-बिक्री से होने वाले मुनाफ़े को सीमित करना है जो क्रेमलिन तक लौट रहा है।
 
लेकिन माना जा रहा है कि कम से कम इस साल के आख़िर तक रूस का ये ठहराव और मज़बूती बनी रहेगी। इस दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव हो जाएंगे और सरकार भी बदल सकती है।
 
इससे यूक्रेन को मिलने वाली पश्चिमी फंडिंग में कटौती की भी संभावना है। ऐसे में रूस को इससे मदद ही होगी।
 
यही वजह है कि अब ध्यान उन सैकड़ों अरब डॉलर की फ़्रीज़ की जा चुकी वित्तीय संपत्ति की केंद्रीय भूमिका पर लौट गया है।
 
फ़्रीज़ की गई संपत्तियां
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने मुझसे पिछले महीने कहा, "अगर दुनिया के पास 300 अरब डॉलर हैं, तो उसे इस्तेमाल क्यों नहीं करते?" उन्होंने कहा था कि सभी ज़ब्त किए गए फ़ंड का इस्तेमाल यूक्रेन के पुनर्निमाण में होना चाहिए।
 
ब्रिटेन के वित्त मंत्री जेरेमी हंट और पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस कदम का समर्थन भी किया। डेविड कैमरन इस समय ब्रिटेन के विदेश मंत्री भी हैं।
 
कैमरन ने मुझसे कहा, "हमने ये संपत्तियां ज़ब्त की हैं। सवाल ये है कि क्या हम इसका इस्तेमाल करेंगे?"
 
कैमरन इस बात पर ध्यान दिलाते हैं कि "इनमें से कुछ पैसों का अभी इस्तेमाल करना यूक्रेन में उनके अवैध घुसपैठ की क्षतिपूर्ति के लिए एडवांस पेमेंट जैसा होगा। और इसका इस्तेमाल यूक्रेन की मदद और पश्चिमी देशों के टैक्सपेयर्स के पैसे बचाने के लिए भी किया जा सकता है।"
 
जी-7 देशों ने अपने-अपने केंद्रीय बैंकों के निदेशकों को एक टेक्निकल और लीगल विश्लेषण तैयार करने को कहा है। माना जा रहा है कि ये मसला उन्हें परेशान कर रहा है।
 
'डॉलर को हथियार' बनाने के जोखिम
एक शीर्ष फ़ाइनेंसर ने मुझे बताया कि 'डॉलर को हथियार' बनाने के जोखिम हैं। पारंपरिक तौर पर केंद्रीय बैंकों को इस तरह की कार्रवाई से छूट हासिल होती है।
 
एक योजना ये भी तैयार की गई है कि रूस के फंड का इस्तेमाल या उसका निवेश ऐसे किया जाए, जिससे यूक्रेन के लिए अरबों डॉलर की रकम उपलब्ध हो सके।
 
लेकिन ये संतुलन बैठाने का एक नाज़ुक तरीका है। अगर रूस की संपत्तियां इस तरह से कब्ज़े में ली जाएंगी तो इससे दूसरे देशों को क्या संदेश जाएगा? ख़ास तौर पर पश्चिमी देशों के केंद्रीय बैंकों में मौजूद खाड़ी, मध्य एशिया या अफ़्रीकी देशों के रिज़र्व की सुरक्षा को लेकर।
 
ये रिश्ते वैश्विक वित्त व्यवस्था के लिए अहम हैं, जिससे दुनिया भर में ऊर्जा संबंधित उत्पादों के भुगतान के लिए इस्तेमाल सैकड़ों-अरब डॉलर एक से दूसरी जगह जाते हैं।
 
वैश्विक अर्थव्यवस्था
पुतिन ने निश्चित तौर पर ये बताने की कोशिश की है कि चीन अब एक उभरता विकल्प है, अगर पश्चिमी मुल्कों के लिए नहीं, तो उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए तो बिलकुल है।
 
रूस ने भी ये संकेत दिए हैं कि अगर उनकी संपत्ति ज़ब्त हुई तो वह भी क़ानूनी कार्रवाई करेगा और बदले में रूस के बैंकों में मौजूद पश्चिमी देशों की कंपनियों की संपत्ति को भी अपने कब्ज़े में ले लेगा।
 
इसलिए रूस की अर्थव्यवस्था पर छाया युद्ध यह समझने के लिए आवश्यक है कि यह संघर्ष और वैश्विक अर्थव्यवस्था किस ओर जा रही है।
 
रूस की वॉर इकोनॉमी लंबे समय के लिए नहीं टिक सकती, लेकिन इसने देश को कुछ समय तो दिया ही है। रूस जिस तरह डटकर खड़ा है, उससे पश्चिमी देशों की कार्रवाई और तेज़ हो सकती है। ये वित्तीय युद्ध जो आकार लेगा, उसका असर रूस और यूक्रेन से कहीं आगे देखने को मिलेगा।
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