कब्ज में राहत देगा उषापान करना, जानिए कब करते हैं?
Kabj ka ilaj gharelu upay: कॉन्स्टिपेशन यानी कब्ज से अधिकतर लोग परेशान है। कब्ज का मतलब यह की पूरी तरह से मल त्याग नहीं हो रहा है जिसके चलते कई तरह की परेशानियां खड़ी हो रही है। मलाशय का खाली होना जरूरी है। यदि आप भी इस समस्या से परेशान हैं तो सुबह जल्दी उठकर उषापान करेंगे तो इस समस्या से मुक्ति पा लेंगे। आओ जानते हैं उषापान का सही तरीका।
इसके लिए करें उषापान:-
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रात को तांबे के एक लोटे में पानी भरकर रख लें।
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सुबह उस पानी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पी लें।
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इसके बाद भले ही आप सो जाएं।
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एक से दो घंटे के बाद आपको प्रेशर आएगा और फिर पेट पूरा साफ हो जाएगा।
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शुरुआत में यह प्रेशर कम रहेगा, परंतु लगातार इस उपाय से पाचन तंत्र सुधार जाएगा।
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आप चाहें तो इस पानी को थोड़ा गुनगुना करके भी पी सकते हैं।
सावधानी : वात, पित्त, कफ, हिचकी संबंधी कोई गंभीर रोग हो तो पानी ना पीएं। अल्सर जैसे कोई रोग हो तो भी पानी ना पीएं।
क्या होता है उषापान:-
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24 घंटे में आठ प्रहर होते हैं।
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दिन के चार और रात के चार मिलाकर कुल आठ प्रहर होते हैं।
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दिन के चार प्रहर- 1.पूर्वान्ह, 2.मध्यान्ह, 3.अपरान्ह और 4.सायंकाल।
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रात के चार प्रहर- 5. प्रदोष, 6.निशिथ, 7.त्रियामा एवं 8.उषा।
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रात्रि के अंति प्रहर उषा को ही ब्रह्म मुहूर्त या उषाकाल कहते हैं।
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उषाकाल में पानी पीने को ही उषापान कहते हैं।
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रात के 3 बजे से सुबह के 6 बजे के बीच के समय को रात का अंतिम प्रहर भी कहते हैं।
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यह प्रहर शुद्ध रूप से सात्विक होता है। इस प्रहर में जल की गुणवत्ता बिल्कुल बदल जाती है।
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इसीलिए यह जल शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होगा है।
उषा पान के फायदे :
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उषाकाल में जल की गुणवत्ता बदल जाती है। इसीलिए यह जल अमृत के समान माना गया है।
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इस काल में उठकर गुनगुना पानी पीकर थोड़ा खुली हवा में घूमते से फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
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उषापान करने से मल त्याग करने में कोई परेशानी नहीं होती है और पाचन तंत्र में सुधार होता है।
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उषापान करने से कब्ज, अत्यधिक एसिडिटी और डाइस्पेसिया जैसे रोगों को खत्म करने में लाभ मिलता है।
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उषापान करने वाले की त्वचा भी साफ और सुंदर बनी रहती है।
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प्रतिदिन उषापान करने से किडनी स्वस्थ बनी रहती है।
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प्रतिदिन उषापान करने से आपको वजन कम करने में भी लाभ मिलता है।
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उषापान करने से पाचन तंत्र दुरुस्त होता है।
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'काकचण्डीश्वर कल्पतन्त्र' नामक आयुर्वेदीय ग्रन्थ के अनुसार रात के पहले प्रहर में पानी पीना विषतुल्य, मध्य रात्रि में पिया गया पानी दूध सामान और प्रात: काल (सूर्योदय से पहले उषा काल में) पिया गया जल मां के दूध के समान लाभप्रद कहा गया हैं।
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आयुर्वेदीय ग्रन्थ 'योग रत्नाकर' के अनुसार जो मनुष्य सूर्य उदय होने के निकट समय में आठ प्रसर (प्रसृत) मात्रा में जल पीता हैं, वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त होकर 100 वर्ष से भी अधिक जीवित रहता हैं।