मां पर लघुकथा : ममता का गणित
अमर खनूजा चड्ढा | गुरुवार,मई 11,2023
									   									   कितनी कच्ची और खट्टी कीवी रख दी मां आज मेरे टिफ़िन में, चखकर तो देखना तो था ना। ऑफिस से वापस आते ही अजय ने मां को दो ... 
									
								आयशा आत्महत्या केस : सवाल आयशा से नहीं समाज से कीजिए.....
अमर खनूजा चड्ढा | गुरुवार,मार्च 4,2021
									   									   क्यों आयशा क्यों ? लेकिन यह क्यों तुम्हारे लिए भला क्यों कर होना चाहिए? यह तो समाज के ऐसे लोगों पर सजा व सबक़ की गाज ... 
									
								मार्मिक कविता : ओ मेरी उदास अहिल्याओं
अमर खनूजा चड्ढा | शनिवार,अक्टूबर 3,2020
									   									   अपने तप बल से, उठना है तुम्हें, अत्याचार तिरस्कार नफरतों की खाइयों 
दरिंदगी के नर्क से न सहना जुल्म वीरांगनी 
									
								बिटिया दिवस : सांझी होती थीं बेटियां...
अमर खनूजा चड्ढा | रविवार,सितम्बर 27,2020
									   									   कहीं नन्हे फरिश्ते नए रूप और शुभ बंधन लेकर आ रहे हैं। इस पूरे जीवनक्रम और सामाजिकता की बात करें तो पहले आंगन, तंदूर, ... 
									
								lockdown story : रज्जन बी का मास्क
अमर खनूजा चड्ढा | सोमवार,मई 18,2020
									   									   मास्क रज्जन बी के हाथ में था ।उन्होंने ध्यान से देखा और मुराद से कहा ये नीला मास्क तो दो तीन धुलाई में फट जाएगा इसमें ... 
									
								रोमेंटिक हिन्दी कविता : मेरे जिस्म में दिखती तेरी रौशनाई है
अमर खनूजा चड्ढा | शुक्रवार,नवंबर 23,2018
									   									   तू अभी भी यहीं कहीं
है मेरे आसपास
तभी तो मेरे जिस्म में
दिखती तेरी रौशनाई है 
									
								वसंत ऋतु पर कविता : अबकि जो आएगा वसंत
अमर खनूजा चड्ढा | बुधवार,फ़रवरी 1,2017
									   									   अबकि जो आएगा वसंत, मैं जोगी को म ना लूंगी, महुआ बन बस जाऊंगी 
									
								
