शुक्र, शनि, बुध आदि ग्रह जब भी वक्री होते हैं तो ज्योतिष उसका असर भिन्न-भिन्न राशियों पर अलग-अलग बताते हैं। ज्योतिषियों में वक्री ग्रह के असर को लेकर मतभेद हैं। हमने यहां सामान्य जानकारी दी है। आओ संक्षिप्त में जानते हैं कि ग्रहों का वक्री होना क्या होता है और किस राशि पर किस ग्रह के वक्री होने का प्रारंभिक असर या प्रभाव क्या पड़ता है।
नोट- इस लेख को समझने के लिए आपको आपकी राशि, आपकी राशि का स्वग्रह, आपकी राशि की मित्र राशि और आपकी राशि के ग्रह के मित्र ग्रह का नाम आपको याद होना चाहिए, तभी आप समझ सकेंगे कि आपकी राशि के लिए किसी ग्रह का वक्री होने का क्या असर होगा।
वक्री ग्रह क्या होते हैं? सूर्य और चन्द्र को छोड़कर सभी ग्रह वक्री होते हैं। वक्री अर्थात किसी राशि में उल्टी दिशा में गति करने लगते हैं। वस्तुतः कोई भी ग्रह कभी भी पीछे की ओर नहीं चलता भ्रम मात्र है। घूमती हुई पृथ्वी से ग्रह की दूरी तथा पृथ्वी और उस ग्रह की अपनी गति के अंतर के कारण ग्रहों का उलटा चलना प्रतीत होता है। किंतु ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कालीन समय पर ग्रहों की ऐसी उलटी गति के कारण उनका प्रभाव जीवन पर उनकी सामान्य गति से अलग होता है।
ज्योतिष में वक्री ग्रह के फल के बारे में अलग-अलग मत है। सभी के मतों को पढ़ने के बाद छह तरह के मत प्रकट होते हैं। हम यहां छटवें मत की चर्चा करेंगे।
पहला मत- जब ये वक्री होते हैं, तब इनकी दृष्टि का प्रभाव अलग-अलग होता है। वक्री ग्रह अपनी उच्च राशिगत होने के समतुल्य फल प्रदान करता है। कोई ग्रह जो वक्री ग्रह से संयुक्त हो, उसके प्रभाव में मध्यम स्तर की वृद्धि होती है। उच्च राशिगत कोई ग्रह वक्री हो, तो नीच राशिगत होने का फल प्रदान करता है।
इसी प्रकार से जब कोई नीच राशिगत ग्रह वक्री होता जाए, तो अपनी उच्च राशि में स्थित होने का फल प्रदान करता है। इसी प्रकार यदि कोई उच्च राशिगत ग्रह नवांश में नीच राशिगत होने, तो नीच राशि का फल प्रदान करेगा। कोई शुभ अथवा पाप ग्रह यदि नीच राशिगत हो, परंतु नवांश में अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो वह उच्च राशि का ही फल प्रदान करता है।
दूसरा मत- वक्री ग्रह किसी भी कुंडली में सदा अशुभ फल ही प्रदान करते हैं क्योंकि वक्री ग्रह उल्टी दिशा में चलते हैं इसलिए उनके फल अशुभ ही होंगे।
तीसरा मत- कोई भी ग्रह यदि वक्री हो रहा है तो वह प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली के हिसाब से ही शुभ या अशुभ फल देगा। उदारणार्थ गुरु के वक्री होने पर उसके शुभ या अशुभ फल देने के प्रभाव में कोई अंतर नहीं आता अर्थात किसी कुंडली विशेष में सामान्य रूप से शुभ फल देने वाले गुरु वक्री होने की स्थिति में भी उस कुंडली में शुभ फल ही प्रदान करेंगे तथा किसी कुंडली विशेष में सामान्य रूप से अशुभ फल देने वाले गुरु वक्री होने की स्थिति में भी उस कुंडली में अशुभ फल ही प्रदान करेंगे। हां, वक्री होने से गुरु के व्यवहार जरूर बदलाव आता है जैसे वक्री होने की स्थिति में गुरु कई बार शुभ या अशुभ फल देने में देरी कर देते हैं।.. यही नियम अन्य ग्रहों पर भी लागू होते हैं।
चौथा मत- वक्री ग्रह किसी कुंडली विशेष में अपने कुदरती स्वभाव से विपरीत आचरण करते हैं अर्थात अगर कोई ग्रह किसी कुंडली में सामान्य रूप से शुभ फल दे रहा है तो वक्री होने की स्थिति में वह अशुभ फल देना शुरू कर देता है। इसी प्रकार अगर कोई ग्रह किसी कुंडली में सामान्य रूप से अशुभ फल दे रहा है तो वक्री होने की स्थिति में वह शुभ फल देना शुरू कर देता है।
पांचवां मत- इसके पश्चात यह धारणा भी प्रचचलित है कि वक्री ग्रहों के प्रभाव बिल्कुल सामान्य गति से चलने वाले ग्रहों की तरह ही होते हैं तथा उनमें कुछ भी अंतर नहीं आता। ज्योतिषियों के इस वर्ग का यह मानना है कि प्रत्येक ग्रह केवल सामान्य दिशा में ही भ्रमण करता है तथा कोई भी ग्रह सामान्य से उल्टी दिशा में भ्रमण करने में सक्षम नहीं होता।
वक्री ग्रह की दृष्टि का छठा मत-
ज्योतिषियों का एक वर्ग के अनुसार अगर कोई ग्रह अपनी उच्च की राशि में स्थित होने पर वक्री हो जाता है तो उसके फल अशुभ हो जाते हैं तथा यदि कोई ग्रह अपनी नीच की राशि में वक्री हो जाता है तो उसके फल शुभ हो जाते हैं।
सूर्य : यह ग्रह मेष में उच्च का और तुला में नीच का होता है। लेकिन यह वक्री नहीं होता है।
चंद्र : यह ग्रह वृषभ में उच्च का और वृश्चिक में नीच का होता है। लेकिन यह वक्री नहीं होता है।
1.मंगल- मंगल की दो राशियां है- पहली मेष और दूसरी वृश्चिक। यह ग्रह मकर राशि में उच्च का और कर्क राशि में नीच का होता है। जब मंगल वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से मकर राशि वालों के लिए सकारात्मक और कर्क राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। मतलब यह कि उच्च राशि पर अच्छा, नीच राशि पर बुरा और सम राशि पर मिलाजुला असर रहता है। लेकिन मंगल जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वालों लोगों के लिए फल अलग होता है। यही बात सभी राशियों पर लागू होती है।
2.बुध- बुध ग्रह की दो राशियां हैं- पहली मिथुन और दूसरी कन्या। यह ग्रह कन्या में उच्च का और मीन में नीच का होता है। जब बुध वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से कन्या राशि वालों के लिए सकारात्मक और मीन राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन बुध जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वालों लोगों के लिए फल अलग होता है।
3.बृहस्पति- इस ग्रह की दो राशियां हैं- पहली धनु और दूसरी मीन। यह ग्रह कर्क में उच्च का और मकर में नीच का होता है। जब बृहस्पति ग्रह वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से कर्क राशि वालों के लिए सकारात्मक और मकर राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन बृहस्पति जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वालों लोगों के लिए फल अलग होता है।
4.शुक्र ग्रह- इस ग्रह की दो राशियां हैं- पहली वृषभ और दूसरी तुला। यह ग्रह मीन राशि में में उच्च और कन्या राशि में नीच का होता है। जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से मीन राशि वालों के लिए सकारात्मक और कन्या राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन शुक्र जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वालों लोगों के लिए फल अलग होता है।
5.शनि- इस ग्रह की दो राशियां है- पहली कुंभ और दूसरी मकर। यह ग्रह तुला में उच्च और मेष में नीच का होता है। जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से तुला राशि वालों के लिए सकारात्मक और मेष राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन शनि जब अन्य राशियों में भ्रम करता है तो उसका अलग असर होता है। यदि वह मेष की मित्र राशि धनु में भ्रमण कर रहा है तो मेष राशि वालों पर नकारात्मक असर नहीं डालेगा।
6.राहु- राहु मिथुन मतांतर से यह ग्रह वृषभ में उच्च का और वृश्चिक में नीच का होता है। जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से वृषभ राशि वालों के लिए सकारात्मक और वृश्चिक राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन राहु जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वाले लोगों के लिए फल अलग होता है।
7.केतु- राहु मिथुन मतांतर से यह ग्रह वृश्चिक में उच्च का और वृषभ में नीच का होता है। जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से वृश्चिक राशि वालों के लिए सकारात्मक और वृषभ राशि वालों के लिए नकारात्मक होता है। लेकिन केतु जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वाले लोगों के लिए फल अलग होता है।
सवाल- उक्त राशियों के अलावा सवाल यह उठता है कि शनि का वक्री होना तो मेष राशि वालों के लिए भी अच्छा होता है तो फिर यहां शनि के वक्री होने को मेष राशि वालों के लिए नकारात्मक क्यों लिखा गया?
उत्तर-
राशि मैत्री- दरअसल शनि यदि मेष राशि की मित्र राशियों में वक्री हो रहा है तो शनि का मेष राशि वालों पर उतना नकारात्मक असर नहीं होगा। जैसे मेश राशि की मित्र राशियां दो हैं- सिंह और धनु। इसी तरह की वृष की कन्या और मकर मित्र राशि है। मिथुन की तुला और कुंभ राशियां मित्र है। कर्क की वृश्चिक और मीन राशियां मित्र है।
ग्रह मैत्री- इसी तरह ग्रह मैत्री भी देखी जाती है। जैसे मंगल का चंद्रमा अधिमित्र है, बुध, राहु और केतु मित्र है, सूर्य, गुरु व शु्क्र सम है और शनि शत्रु है। अब जैसे मेष राशि का स्वामी मंगल है, जो शुक्र के साथ सम माने जाते हैं। मेश राशि पर शुक्र के वक्री होने से इसका मिला-जुला असर रहता है।
-बुध का अधिमित्रता सूर्य, मित्र मंगल व शनि, सम मित्र राहु, शुक्र व चंद्रमा और केतु शत्रु और गुरु अति शत्रु है।
-गुरु का मित्र राहु और शनि, सम सूर्य, चंद्र व मंगल, केतु शत्रु और बुध व शुक्र अतिशत्रु है।
-शुक्र का शनि अधिमित्र, मंगल मित्र, बुध, राहु, सूर्य व चंद्रमा सम, केतु शत्रु, बुध और शुक्र अतिशत्रु।
-शनि का बुध, शुक्र और राहु अधिमित्र है। गुरु व केतु मित्र है। मंगल और सूर्य सम है। चंद्रमा अतिशत्रु है। राहु का शनि अधिमित्र, गुरु -मित्र, बुध, शुक्र व मंगल सम, केतु शत्रु और सूर्य व चंद्रमा। केतु का अधिमित्र शनि, सम शुक्र और बुध, शत्रु गुरु, राहु, चंद्र, मंगल, सूर्य सम है।