पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा कहा जाता है।
27 नक्षत्रों के क्रम में आठवें स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है।
रविवार, बुधवार व गुरुवार को आने वाला पुष्य नक्षत्र अत्यधिक शुभ होता है।
ऋग्वेद में इसे मंगलकर्ता, वृद्धिकर्ता एवं आनंदकर्ता कहा गया है।
पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु बहुत लंबे समय तक उपयोगी रहती है, शुभ फल प्रदान करती है, क्योंकि यह नक्षत्र स्थाई होता है।
हर महीने में पुष्य नक्षत्र का शुभ योग बनता है।
दीपावली के पहले आने वाला पुष्य नक्षत्र सबसे खास माना जाता है।
चंद्र वर्ष के अनुसार महीने में एक दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र के साथ संयोग करता है। इस मिलन को अत्यंत शुभ कहा गया है।
पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं और स्वामी शनि हैं।
पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग सर्वगुण संपन्न, भाग्यशाली तथा अतिविशिष्ट होते हैं।
पुष्य नक्षत्र के सिरे पर बहुत से सूक्ष्म तारे हैं जो कांति घेरे के अत्यधिक समीप हैं।
मुख्य रूप से इस नक्षत्र के तीन तारे हैं जो एक तीर (बाण) की आकृति के समान आकाश में दिखाई देते हैं। इसके तीर की नोक कई बारीक तारा समूहों के गुच्छ (पुंज) के रूप में दिखाई देती है।
आकाश में इसका गणितीय विस्तार 3 राशि 3 अंश 20 कला से 3 राशि 16 अंश 40 कला तक है।
पुष्य नक्षत्र पर गुरु, शनि और चंद्र का प्रभाव होता है इसलिए सोना, चांदी, लोहा, बही खाता, परिधान, उपयोगी वस्तुएं खरीदना और बड़े निवेश आदि अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जिसका कारक सोना है। स्वामी शनि है अत: लोहा और चंद्र का प्रभाव रहता है इसलिए चांदी खरीदते हैं। स्वर्ण, लोहा (वाहन आदि) और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सकती है।