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शुक्र प्रदोष का क्या है महत्व, जानें पूजन सामग्री, मुहूर्त, विधि, कथा और व्रत के फायदे

शुक्र प्रदोष का क्या है महत्व, जानें पूजन सामग्री, मुहूर्त, विधि, कथा और व्रत के फायदे - November Pradosh Vrat
pradosh vrat : वर्ष 2023 में कार्तिक मास के समापन से ठीक 3 दिन पहले प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। यह दिन भगवान शिवशंकर को समर्पित व्रत है। इस दिन भगवान शिव का पूजन-आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

इस बार यह तिथि शुक्रवार, 24 नवंबर 2023 के दिन पड़ रही है, जिस दिन कार्तिक का आखिरी प्रदोष व्रत रखा जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, 27 नवंबर को कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि है और 28 नवंबर 2023 से मार्गशीर्ष यानी अगहन मास का आरंभ हो जाएगा। 
 
24 नवंबर 2023, शुक्रवार के शुक्र प्रदोष व्रत के मुहूर्त
 
कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ- 24 नवंबर 2023, शुक्रवार को 10.36 ए एम बजे से, 
त्रयोदशी तिथि का समाप्ति- 25 नवंबर 2023, शनिवार को 08.52 ए एम तक। 
प्रदोष पूजा समय- 05.34 पी एम से 07.50 पी एम
अवधि- 02 घंटे 17 मिनट्स
 
दिन का चौघड़िया
 
चर- 04.58 ए एम से 06.32 ए एम
लाभ- 06.32 ए एम से 08.07 ए एम
अमृत- 08.07 ए एम से 09.41 ए एमवार वेला
शुभ- 11.16 ए एम से 12.50 पी एम
चर- 03.59 पी एम से 05.34 पी एम
 
रात्रि का चौघड़िया
 
लाभ- 08.25 पी एम से 09.50 पी एम
शुभ- 11.16 पी एम से 25 नवंबर को 12.41 ए एम, 
अमृत- 12.41 ए एम से 25 नवंबर को 02.07 ए एम, 
चर- 02.07 ए एम से 25 नवंबर को 03.32 ए एम तक। 
 
महत्व- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष काल में भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व होता है। प्रदोष काल में पूजा करने से भगवान शंकर जल्दी प्रसन्न होकर अपने  भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। मान्यतानुसार प्रदोष काल शाम को सूर्यास्त के करीब 45 मिनट पहले से आरंभ हो जाता है। कहते हैं कि प्रदोष काल में की गई पूजा का फल शीघ्र मिलता है। 
 
इस बार शुक्रवार को शुक्र प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। शुक्रवार के दिन पड़ने वाले व्रत को ही शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं। इस दिन यह व्रत करने से सुख-समृद्धि, सौभाग्य तथा ऐश्वर्य प्राप्ति का वरदान मिलता है। प्रतिमाह आने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा पाने का सबसे बड़ा दिन होता है। धर्मग्रंथों के अनुसार प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोषकाल में की जाती है। 
 
यह प्रदोष सूर्यास्त से लगभग 1 घंटा पहले का समय होता है, जो प्रदोषकाल कहलाता है और यह व्रत करने से भगवान शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त की जा सकती है। इससे जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रह जाता है। इतना ही नहीं, समस्त आर्थिक संकटों के समाधान के लिए हर व्यक्ति को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए।

इस दिन शिव-पार्वती के साथ विष्णु जी की आराधना करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आशीष मिलता है। शिव चालीसा और शिवाष्टक का पाठ करना अतिलाभकारी माना गया है। इस व्रत को रखने वाले भक्तों के जीवन से दु:ख-दरिद्रता दूर होकर धन, सुख और समृद्धि मिलती है। जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होकर धन और संपदा मिलने के योग बनते हैं और हर कार्य में सफलता भी मिलती है। ऐसा इसका महत्व है। 
 
प्रदोष पूजन सामग्री-
 
एक जल से भरा हुआ कलश, 
बेल पत्र, 
धतूरा, 
भांग, 
कपूर, 
सफेद पुष्प व माला, 
आंकड़े का फूल, 
सफेद मिठाई, 
सफेद चंदन, 
धूप, 
दीप, 
घी, 
सफेद वस्त्र, 
आम की लकड़ी, 
हवन सामग्री, 
आरती के लिए थाली।
 
पूजा की विधि: 
 
1. प्रदोष व्रत के दिन व्रतधारी को प्रात:काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर शिव जी का पूजन करना चाहिए। 
2. पूरे दिन निराहार रहना चाहिए तथा दिनभर मन ही मन शिव का प्रिय मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करना चाहिए। 
3. तत्पश्चात सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करना चाहिए।
4. नैवेद्य में सफेद मिठाई, घी एवं शकर का भोग लगाएं, तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8 दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें। इसके बाद नंदीश्वर (बछड़े) को जल एवं दूर्वा खिलाकर स्पर्श करें।
5. शिव-पार्वती एवं नंदकेश्वर की प्रार्थना करें। 
6. अंत में शिव जी की आरती के बाद प्रसाद बांटें।
7. तत्पश्चात भोजन ग्रहण करें।
8. मंत्र- 'ॐ नम: शिवाय'।
9.- 'शिवाय नम:'। 
- ॐ आशुतोषाय नमः। 
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्। 
इनमें से किसी भी मंत्र का जाप प्रदोष व्रत के दिन कम से कम 108 बार करें।
 
कथा : शुक्र प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक नगर में तीन मित्र रहते थे- राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकिन गौना शेष था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे।
 
ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- 'नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।' धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरंत ही उसने अपनी पत्‍नी को लाने का निश्‍चय कर लिया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया।
 
ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो जिद पर अड़ा रहा और कन्या के माता-पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद पति-पत्‍नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई। दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे। कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकुओं से पड़ा। जो उनका धन लूटकर ले गए। दोनों घर पहूंचे। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डंस लिया। 
 
उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो 3 दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और कहा कि इसे पत्‍नी सहित वापस ससुराल भेज दें। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया, जहां उसकी हालत ठीक होती गई यानी शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए। 
 
इस दिन कथा सुनें अथवा सुनाएं तथा कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार 'ॐ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा' मंत्र से आहुति दें। उसके बाद शिवजी की आरती तथा प्रसाद वितरित करें, उसके बाद भोजन करें। मान्यता के अनुसार शुक्रवार को प्रदोष व्रत सौभाग्य और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि भर देता है। यही कारण है कि आज के प्रदोष व्रत का काफी खास माना जा रहा है। अत: अध्यात्म की राह पर चलने वालों को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए, क्योंकि भगवान शिव को ज्ञान और मोक्ष का दाता माना जाता है। 
 
फायदे- 
 
- शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत से सुख, ज्ञान और मोक्ष मिलता है। 
 
- इस व्रत के प्रभाव से हर तरह के रोग दूर होकर बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आती है। 
 
- प्रदोष व्रत से समस्त आर्थिक संकटों का समाधान होता है।
 
- प्रदोष पर भगवान शिव-पार्वती के साथ श्रीविष्णु की आराधना करने से सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। 
 
- इस व्रत से दु:ख-दरिद्रता दूर होकर धन, सुख, समृद्धि और संपदा प्राप्त होने के योग बनते हैं।
 
- प्रदोष व्रत हर कार्य में सफलता दिलाता है।
 
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