गुरुवार, 21 अगस्त 2025
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Written By WD Feature Desk

कुशोत्पटिनी अमावस्या का महत्व और 5 अचूक उपाय जो करेंगे पितृदोष दूर

Kushotpatini Amavasya 2025
Kushotpatini Amavasya Remedies for Pitru Dosh : कुशोत्पटिनी अमावस्या, जिसे भाद्रपद अमावस्या भी कहते हैं, हिन्दू धर्म में एक विशेष महत्व रखती है। यह दिन मुख्य रूप से धार्मिक कार्यों और श्राद्ध के लिए पवित्र कुशा घास, जिसे डाब भी कहते हैं को इकट्ठा करने के लिए समर्पित है। इसी कारण इसे कुशोत्पाटिनी यानी कुश को उखाड़ने वाली अमावस्या कहा जाता है।

यह तिथि पितृ पक्ष की शुरुआत का भी संकेत देती है, जिससे यह पितरों की आत्मा की शांति और पितृदोष को दूर करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाती है।कई मायनों में बेहद खास मानी जाने वाली भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पिठोरी अमावस्या भी कहते है।  ALSO READ: कब से होंगे गणेश उत्सव प्रारंभ, क्या है गणपति स्थापना और पूजा का शुभ मुहूर्त, मंगल प्रवेश
 
वर्ष 2025 में यह अमावस्या अगस्त 23, 2025, शनिवार को पड़ रही है। 
भाद्रपद, कृष्ण अमावस्या का प्रारम्भ- 22 अगस्त को 11:55 ए एम से, 
समापन- 23 अगस्त को 11:35 ए एम पर होगा। 
 
शनिवार, अगस्त 23, 2025 
तिथि अमावस्या- 11:35 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त- 12:16 पी एम से 01:06 पी एम
अमृत काल- 10:27 पी एम से 24 अगस्त 12:05 ए एम तक। 
 
आइए यहां जानते हैं इस अमावस्या का महत्व और पितृ दोष निवारण के 5 उपाय...
 
कुशोत्पटिनी अमावस्या का महत्व: इस दिन, धार्मिक अनुष्ठानों और श्राद्ध के लिए पूरे साल उपयोग होने वाली कुशा को विधिपूर्वक उखाड़ा जाता है। माना जाता है कि इस दिन उखाड़ी गई कुशा सबसे शुद्ध और पवित्र होती है। साथ ही यह दिन पितरों को समर्पित है। इस दिन श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इतना ही नहीं जिन लोगों की कुंडली में पितृदोष होता है, उनके लिए यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन किए गए उपाय पितृदोष के अशुभ प्रभावों को कम करते हैं।
 
पितृदोष दूर करेंगे ये 5 अचूक उपाय: कुशोत्पटिनी अमावस्या के दिन ये उपाय करके आप पितृदोष से मुक्ति पा सकते हैं:
 
1. तर्पण और श्राद्ध: इस दिन सुबह स्नान करके अपने पितरों का तर्पण करें। जल में काला तिल, जौ और कुशा मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अर्पित करें। संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण से श्राद्ध कर्म करवाएं और उन्हें भोजन कराकर दक्षिणा दें।
 
2. पीपल के पेड़ की पूजा: अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। पीपल के पेड़ की जड़ में कच्चा दूध, गंगाजल और काला तिल मिलाकर चढ़ाएं। इसके बाद पितरों का स्मरण करते हुए पेड़ की सात परिक्रमा करें और संध्याकाल में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। साथ ही तुलसी के पास शुद्ध घी का एक दीपक जलाएं।
 
3. गाय को भोजन: अमावस्या के दिन गाय को हरा चारा खिलाएं। साथ ही, भोजन बनाते समय पहली रोटी गाय के लिए निकालें और उसे खिलाएं। ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति आती है।
 
4. गरीबों को दान: इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों, जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करें। पितरों के नाम से दान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
 
5. श्रीमद् भगवत गीता का पाठ: पितृदोष के निवारण के लिए इस दिन घर पर श्रीमद् भगवत गीता के गजेंद्र मोक्ष अध्याय का पाठ करें। यह पाठ पितरों को मोक्ष दिलाता है और उनकी आत्मा को शांति प्रदान कर ता है।
 
शनि अमावस्या का संयोग: कुशोत्पाटिनी अमावस्या और शनिवार का दुर्लभ संयोग बन रहा है। जब यह अमावस्या शनिवार के दिन पड़ती है, तो इसे शनि अमावस्या भी कहते हैं। इस संयोग से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि इस दिन शनि देव की पूजा से शनि दोष भी शांत होता है।
 
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