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pushya nakshatra : पुष्य नक्षत्र के बारे में तथ्य, महत्व और महामुहूर्त, जानिए क्या कहता है ज्योतिष

pushya nakshatra : पुष्य नक्षत्र के बारे में तथ्य, महत्व और महामुहूर्त, जानिए क्या कहता है ज्योतिष - guru pushya nakshatra 2021
गुरु पुष्य नक्षत्र


guru pushya nakshatra 2021 
 
हिंदू पंचांग के अनुसार जब पूर्ण चंद्रमा चित्रा नक्षत्र से संयोग करता है तो उस महीने को हम चैत्र नाम कहते हैं। इसी तरह जब पूर्ण चंद्रमा पुष्य नक्षत्र से संयोग करता है वह मास पौष नाम से जाना जाता है। इस तरह पुष्य नक्षत्र साल के 12 महीनों में से एक का निर्धारण करता है।
 
पुष्य नक्षत्र के लोग दिखने में यह सुंदर, स्वस्थ, सामान्य कद-काठी के तथा चरित्र में विद्वान, चपल, स्त्रीप्रिय व बोल-चाल में चतुर होते हैं। इस नक्षत्र में जन्में लोग जनप्रिय और नियम पर चलने वाले होते हैं तथा खनिज पदार्थ, पेट्रोल, कोयला, धातु, पात्र, खनन संबंधी कार्य, कुएं, ट्यूबवेल, जलाशय, समुद्र यात्रा, पेय पदार्थ आदि में क्षेत्रों में सफलता हासिल करते हैं।
कार्तिक माह में इस बार नक्षत्र के राजा पुष्य नक्षत्र पर महासंयोग बन रहा है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार इस बार 677 वर्षों के बाद खरीदी का महासंयोग और महामुहूर्त बन रहा है। वर्तमान में शनि और गुरु के मकर राशि में रहते हुए गुरु पुष्य नक्षत्र का संयोग इससे पहले 5 नवंबर 1344 में बना था। अब 677 वर्षों के बाद ऐसा संयोग बन रहा है जबकि मकर में शनि और गुरु की युति और गुरुवार को पुष्य नक्षत्र रहेगा। आइए जानते हैं पुष्य नक्षत्र के महामुहूर्त, महत्व और किस प्रकार से खरीदारी करना चाहिए -  
 
guru pushya nakshatra 2021  दिवाली 2021 के पहले आने वाले गुरु पुष्‍य नक्षत्र का मुहूर्त
 
28 अक्‍टूबर को सुबह 09 बजकर 41 मिनट से
 
29 अक्टूबर, शुक्रवार की सुबह 11 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। इसी दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग भी है।
 
इसी दिन अमृत सिद्ध योग और रवि योग बन रहा है। सर्वार्थसिद्धि और अमृत सिद्ध योग पूरे दिन रहेगा, जबकि रवि योग प्रात: 06:03 से 09:42 तक रहेगा।
 
महामुहूर्त :
 
अभिजीत मुहूर्त– सुबह 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा।
विजय मुहूर्त– दोपहर 01 बजकर 34 मिनट से 02 बजकर 19 मिनट तक रहेगा।
अमृत काल मुहूर्त : प्रात: 07 बजकर 02 मिनट से 08 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।
गोधूलि मुहूर्त– शाम 05 बजकर 09 मिनट से 05 बजकर 33 मिनट तक रहेगा।
सायाह्न संध्या मुहूर्त– शाम 05 बजकर 20 मिनट से 06 बजकर 36 मिनट तक रहेगा।
निशिता मुहूर्त– प्रातः: 11 बजकर 16 मिनट से दूसरे दिन दोपहर 12 बजकर 07 मिनट तक रहेगा

guru pushya nakshatra 2021 पुष्य नक्षत्र का महत्व : चंद्रमा का राशि के चौथे, आठवें और बारहवें भाव में उपस्थित होना अशुभ माना जाता है। परंतु इस पुष्य नक्षत्र के कारण अशुभ घड़ी भी शुभ घड़ी में परिवर्तित हो जाती है। ग्रहों की विपरीत दशा से बावजूद भी यह योग बेहद शक्तिशाली है, परंतु एक श्राप के चलते इस योग में विवाह नहीं करना चाहिए। इसके प्रभाव में आकर सभी बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं। मान्यता अनुसार इस दौरान की गई खरीदारी अक्षय रहेगी। अक्षय अर्थात जिसका कभी क्षय नहीं होता है। इस शुभदायक दिन पर महालक्ष्मी की साधना करने, पीपल या शमी के पेड़ की पूजा करने से उसका विशेष व मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
 
guru pushya nakshatra 2021 : इस शुभ संयोग में क्या खरीदना चाहिए :
 
1. इस नक्षत्र के स्वामी शनि है जो चिर स्थायित्व प्रदान करते हैं जिसका कारक लोहा है। साथ ही इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जिसका कारक सोना है। पुष्य नक्षत्र पर गुरु, शनि और चंद्र का प्रभाव होता है तो ऐसे में स्वर्ण, लोह (वाहन आदि) और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सकती है।
 
2. मान्यता अनुसार इस दिन खरीदा गया सोना शुभ और स्थायी माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन वाहन, मकान, प्लाट, फ्लैट, दुकान, कपड़े, ज्वेलरी, बर्तन, श्रृंगार की वस्तुएं,स्टेशनरी, मशीनरी आदि खरीदना भी शुभ है।
 
3. इस नक्षत्र में शिल्प, चित्रकला, पढ़ाई प्रारंभ करना उत्तम माना जाता है। इसमें मंदिर निर्माण, घर निर्माण आदि काम भी शुभ माने गए हैं।
 
4. गुरु-पुष्य या शनि-पुष्य योग के समय छोटे बालकों के उपनयन संस्कार और उसके बाद सबसे पहली बार विद्याभ्यास के लिए गुरुकुल में भेजा जाता है।
 
5. इस दिन बहीखाता की पूजा करना और लेखा-जोखा कार्य भी शुरू कर सकते हैं। इस दिन से नए कार्यों की शुरुआत करें, जैसे दुकान खोलना, व्यापार करना या अन्य कोई कार्य।
 
6. इस दिन धन का निवेश लंबी अवधि के लिए करने पर भविष्य में उसका अच्छा फल प्राप्त होता है।
guru pushya nakshatra 2021 : ज्योतिष के तथ्य 
'तिष्य और अमरेज्य' जैसे अन्य नामों से भी पुकारे जाने वाले इस नक्षत्र की उपस्थिति कर्क राशि के 3-20 अंश से 16-40 अंश तक है। 'अमरेज्य' का शाब्दिक अर्थ है, देवताओं के द्वारा पूजा जाने वाला। शनि इस नक्षत्र के स्वामी ग्रहों के रूप में मान्य हैं, लेकिन गुरु के गुणों से इसका साम्य कहीं अधिक बैठता है।
 
जब किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा इस नक्षत्र पर आता है, तो उस व्यक्ति में निम्नलिखित गुण दिखाई देते हैं- ब्राह्मणों और देवताओं की पूजा करने में अटूट विश्वास, धन-धान्य की संपन्नता, बुद्धिमत्ता, राजा या अधिकारियों का प्रिय होना, भाई-बंधुओं से युक्त होना।
 
देखा जाए तो ये सभी गुण गुरु के हैं और यह इन बातों से सिद्ध भी होता है। पहले गुण को देखें तो- गुरु देवताओं के गुरु है और एक ब्राह्मण ग्रह के रूप में जाना जाता है। इसलिए देवताओं की पूजा एवं ब्राह्मणों का सम्मान इसके गुणों में सम्मिलित होगा ही। जहां तक धन-धान्य से संपन्नता का प्रश्न है, गुरु धन प्रदाता होता है। इस कारण से व्यक्ति धनवान होता है। बुद्धिमत्ता और अन्य गुण तो देवगुरु होने से निश्चित रूप से होंगे ही।
 
चूंकि विंशोत्तरी दशा में पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि को माना गया है, इसलिए नक्षत्र में शनि के गुण-दोषों को भी देखना जरूरी माना जाता है। जिस जातक का जन्म शनियुक्त पुष्य नक्षत्र में होता है उसमें धर्मपरायणता, बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, विचारशीलता, संयम, मितव्ययिता, आत्मनिर्भरता, गंभीरता, शांत प्रकृति, धैर्य, अंतर्मुखी प्रकृति, संपन्नता, पांडित्य, ज्ञान, सुंदरता और संतुष्टि होती है।
 
ऐसे जातक किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से करना पसंद करते हैं। लेकिन कभी-कभी ये शंकालु प्रवृत्ति वाले और कुसंगति में पड़ जाने वाले भी हो सकते हैं। इनके जीवन में 35 से 40 की उम्र अत्यंत उन्नतिकारक होती है। विवाह में कुछ विलंब हो सकता है और कई बार इन्हें अपने परिवार में कठिन परिस्थितियां भी देखना पड़ती हैं।
 
अच्छे प्रबंधन के कारण व्यवसाय में इन्हें निश्चित रूप से लाभ मिलता है। पर इनके लिए किसी गंभीर रोग की आशंका से इंकार नहीं किया सकता।
 
इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां भी बहुत ही लजीली, शर्मीली और धीमे स्वर में वार्तालाप करने वाली होती हैं। दांपत्य जीवन में ऐसी स्त्रियों को कभी-कभी पति के संदेह का सामना करना पड़ सकता है।
 
पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है और नीलम शनि का रत्न है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति का जन्म पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में हुआ है, तो उसे नीलम धारण करने से लाभ होता है। जिन जातकों की कुंडली में शनि शुभ भाव के स्वामी के रूप में हों, उनको नीलम धारण करने से बहुत लाभ होता है।
 
यदि आप भी इस श्रेणी में आते हैं तो नीलम धारण करना आपके लिए शुभ होगा। इसके लिए शनिवार को ही नीलम खरीदें, फिर उसे पंचधातु या स्टील की अंगूठी में जड़वाएं। गंगाजल से उसकी शुद्धि के पश्चात- 'ॐ शं शनैश्चराय नम:' शनि के मंत्र का जप करके सूर्यास्त से 1-2 घंटा पहले पहनें।
 
पुष्य नक्षत्र अपने आप में अत्यधिक प्रभावशील एवं मानव का सहयोगी माना गया है। पुष्य नक्षत्र शरीर के अमाशय, पसलियां व फेफड़ों को विशेष रूप से प्रभावित करता है। पुष्य नक्षत्र शुभ ग्रहों से प्रभावित होकर इन अंगों को दृढ़, पुष्ट तथा निरोगी बनाता है। जब यह नक्षत्र दुष्ट ग्रहों के प्रभाव में होता है तब इन अंगों को बीमार व कमजोर करता है।

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