उपहार और दान दोनों का ही संबंध किसी वस्तु को देने से है, परंतु दोनों के उद्देश्य में भिन्नता है। दान का संबंध परमार्थ या ग्रह-शांति से है, जबकि उपहार किसी खुशी के अवसर पर या किसी को प्रसन्न करने के लिए दिया जाता है। व्यावहारिक रूप से कोई आदमी कल्पना भी नहीं कर सकता कि उसे द्वारा दी जाने वाली या ग्रहण की जाने वाली वस्तु उसके लिए हानिकारक हो सकती है, परंतु जातक की कुंडली इस बात की सूचना अवश्य देती है कि अमुक व्यक्ति को अमुक संग्रह से संबंधित वस्तु लेनी चाहिए या देनी चाहिए।
प्रत्येक ग्रह का उससे संबंधित वस्तुओं पर अधिकार होता है या दूसरे शब्दों में निश्चित वस्तुओं का कारकत्व निश्चित ग्रहों को होता है।
अत: दान के पीछे यही धारणा होती है कि अशुभ फल देने वाले ग्रहों से संबंधित वस्तु को बांट दिया जाए तो उसकी अशुभता कम हो जाती है। परंतु अनजाने में ही यदि शुभ फलदायी ग्रहों से संबंधित वस्तु को दान या उपहारस्वरूप बांट दिया जाए तो उसके शुभत्व में न्यूनता आ जाती है और संबंधित ग्रह उस वर्ष अपेक्षित परिणाम नहीं देता है। जानकारी के लिए हम देखते हैं कि किसी ग्रह का आधिपत्य किन वस्तुओं पर है, किसे लेना चाहिए व किस जातक को देना चाहिए।
सूर्य : तांबे से बनी वस्तु, माणिक्य, राजसी चिह्नयुक्त वस्तु, पुरातन महत्व की वस्तु, विज्ञान से संबंधित सामान आदि। कुंडली में सूर्य अच्छी स्थिति में हो तो ग्रहण करना उचित है और नीच या दु:स्थान में हो तो देना उचित है अन्यथा राज्यमय पदोनति में रुकावटें, पिता को कष्ट आदि कारण से संबंधित फल मिल सकते हैं।
चंद्रमा : चांदी की बनी वस्तु, चावल, सीप, मोती, शंख, वाहन आदि चंद्रमा की अनिष्ट स्थिति में देने चाहिए, ग्रहण नहीं करें। अच्छी स्थिति में लेने चाहिए, अन्यथा ग्रह कलह, चिंता, व्यर्थ भागदौड़ आदि में वृद्धि हो सकती है।
मंगल : कुंडली में मंगल अनिष्ट फल देने वाला हो तो मिठाई का डिब्बा स्वीकार करने में परहेज करें, परंतु देने में कोई संकोच न करें। जिंक धातु की बनी वस्तुएं, चोरी की वस्तुएं आदि मंगल के अधिकार क्षेत्र में हैं।
बुध : बुध अनिष्ट फलदायी हो तो कलम दान नहीं करें, खिलौने, खेलकूद का सामान नहीं दें अन्यथा व्यापार में या छोटी बहन को तकलीफ हो सकती है। शुभयुक्त बुध हो तो तो लेने में संकोच नहीं करें।
गुरु : धार्मिक पुस्तकें, स्वर्ण निर्मित उपहार, पीले वस्त्र, केसर आदि अशुभ फलदायी गुरु के लिए दे सकते हैं, परंतु शुभ फलदाता गुरु के फलों को कम कर सकता है उपरोक्त वस्तुओं का बांटना। गुरु के फलों में कमी का मतलब धन की आवक-जावक में रुकावटें, व्यापार या अगर सरकारी सेवा में हैं तो उसकी तरक्की में रुकावटें हो सकती हैं।
शुक्र : सुगंधित द्रव्य, रेशमी वस्त्र, चार पहिया वाहन, सुख-सुविधा का सामान, स्त्रियों के काम आने वाली वस्तुएं अशुभ फलदायी हों तो बांटें परंतु ग्रहण नहीं करें, अन्यथा स्त्रियों से पीड़ा, वैमनस्य, मूत्र रोग का कारण बन सकते हैं।
शनि : यदि आपको शराब पार्टियों में जाने या लोगों को बुलाने का शौक है तो शनि की जांच अवश्य करें। चुनावों में प्रत्याशी पानी की तरह शराब बहाकर जीत भी हासिल कर लेते हैं और हार भी जाते हैं। अच्छा शनि हो तो ऐसी पार्टियों में जाएं, परंतु स्वयं आयोजन नहीं करें।
राहु : बिजली के उपकरण, कार्बन, दवाइयां, समस्त वर्तुलाकार वस्तुओं पर राहु का अधिकार है। इन सबके आदान-प्रदान से पहले कुंडली में राहु की स्थिति पर विचार कर लें।
केतु : कंबल, जूते, चप्पल, कुत्ता, चाकू, छुरी, मछली से बने व्यंजन आदि केतु की वस्तुएं हैं। मददगार केतु हो तो लेना चाहिए अन्यथा देना चाहिए। विपरीत लेन-देन करने पर कान के रोग, पैरों पर चोट और पुत्र को पीड़ा का कारण बन सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अनुकूल ग्रह से संबंधित वस्तु को ग्रहण करना फायदा दे सकता है, जबकि देने वाले को नुकसान हो सकता है अत: अपनी कुंडली को देखें और उपहार या दान देने और लेने वाली वस्तु को भी।
-श्रीराम स्वामी, जयपुर