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Last Updated : बुधवार, 11 अगस्त 2021 (19:34 IST)

11 साल पहले आज ही जीता था अभिनव बिंद्रा ने ऐतिहासिक गोल्ड मेडल, इससे पहले गोल्ड पर था सिर्फ हॉकी का हक

11 साल पहले आज ही जीता था अभिनव बिंद्रा ने ऐतिहासिक गोल्ड मेडल, इससे पहले गोल्ड पर था सिर्फ हॉकी का हक - Abhinav Bindra won Gold Medal today 11 years back
ओलंपिक में भारत की स्वर्णिम यात्रा की शुरुआत 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक से हुई जब भारतीय हॉकी टीम ने पहली बार इन खेलों में हिस्सा लिया। इसके बाद भारत ने लगातार छह ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर हॉकी में अपना दबदबा बनाया।भारत के लिये लंबे समय तक ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक का मतलब पुरुष हॉकी टीम रही। ऐसा माने जाने लगा कि भारत अगर गोल्ड मेडल जीत सकता है तो वह सिर्फ हॉकी के बल बूते पर ही जो 1980 के बाद रसातल में चली गई थी।
 
एम्सटर्डम ओलंपिक में भारत ने फाइनल में नीदरलैंड को 3-0 से हराया था तो इसके चार साल बाद लास एंजिल्स में केवल तीन टीमों ने हिस्सा लिया था। ध्यानचंद की अगुवाई में भारत ने अपने दोनों मैच बड़े अंतर से जीतकर स्वर्ण पदक हासिल किया था।
 
बर्लिन ओलंपिक में तो हिटलर भी भारतीयों की हॉकी के प्रशंसक बन गये थे। भारत ने तब जर्मनी को फाइनल में 8-1 से हराकर खिताबी हैट्रिक बनायी। लंदन ओलंपिक 1948 में कोई टीम भारत के सामने नहीं टिक पायी। भारत ने मेजबान ग्रेट ब्रिटेन को आसानी से 4-0 से पराजित करके चौथा स्वर्ण पदक जीता था।
 
इसके बाद हेलसिंकी 1952 और मेलबर्न 1956 में यही कहानी दोहरायी गयी जहां भारत ने फाइनल में क्रमश: नीदरलैंड को 6-1 और पाकिस्तान को संघर्षपूर्ण मैच में 1-0 से हराया था।
 
भारत को अपने अगले स्वर्ण पदक के लिये आठ साल का इंतजार करना पड़ा था। यह सोने का तमगा उसने तोक्यो ओलंपिक 1964 में पुरुष हॉकी में ही पाकिस्तान को 1-0 से हराकर जीता था। अगले तीन ओलंपिक में भारतीय हॉकी सोने की चमक नहीं बिखेर पायी और भारत के नाम के आगे स्वर्ण पदक दर्ज नहीं था।
 
फिर आया मास्को ओलंपिक जिसमें पुरुष हॉकी में छह टीमों ने हिस्सा लिया। राउंड रोबिन आधार पर शीर्ष पर रहने वाली दो टीमों के बीच फाइनल हुआ। भारत ने फाइनल में स्पेन को 4-3 से हराकर फिर से स्वर्ण गाथा लिखी।
 
लेकिन इसके बाद अगले तीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक तो दूर भारत किसी भी खेल में कोई पदक हासिल नहीं कर पाया।
 
स्वर्ण पदक का इंतजार 28 वर्ष बाद 2008 में बिंद्रा ने जाकर खत्म किया।
 
वह 11 अगस्त 2008 का दिन था जब बीजिंग शूटिंग रेंज में बिंद्रा ने स्वर्ण पदक पर निशाना साधकर भारतीय खेलों में नया इतिहास रचा था। वह भारत की तरफ से ओलंपिक में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी बने थे।
 
बिंद्रा ने क्वालीफाईंग राउंड में 596 अंक के साथ चौथे स्थान पर रहकर फाइनल में जगह बनायी। फाइनल में उन्होंने 104.5 स्कोर बनाया और कुल 700.5 के स्कोर के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया था।
अब ठीक 13 साल बाद नीरज ने 7 अगस्त 2021 को भारतीय खेलों के इतिहास में हमेशा के लिये यादगार बना दिया।  पहले अभिनव बिंद्रा और अब नीरज चोपड़ा ने अपने प्रदर्शन से साबित कर दिया कि भारतीय खिलाड़ी देश के खेल इतिहास में नये अध्याय जोड़ने के लिये तैयार हैं।
 
चोपड़ा ने तोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक की स्पर्धा में 87.58 मीटर भाला फेंककर स्वर्ण पदक जीता जो कि इन खेलों की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में देश का पहला पदक भी है। यह भारत का ओलंपिक खेलों में पिछले 100 वर्षों से भी अधिक समय में 10वां स्वर्ण पदक है और इनमें से आठ सोने के तमगे पुरुष हॉकी टीम ने जीते हैं।
 
नीरज ने कहा था मिलती है अभिनव बिंद्रा से प्रेरणा
 
हाल ही में टोक्यो खेलों के स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा ने कहा था कि ओलंपिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में शीर्ष पदक जीतने के लिये देश के एथलीट अभिनव बिंद्रा से प्रेरणा लेते हैं।
 
चोपड़ा ने कहा, ‘‘हमेशा यह शानदार लगता कि वह भारत के लिये व्यक्तिगत खेलों में एकमात्र स्वर्ण पदकधारी थे। हर कोई उनसे प्रेरित होता। इसलिये आज उनके साथ (इस क्लब) में जुड़ना मेरे लिये सपना सच होने जैसा है। हम सोचते थे कि अभिनव बिंद्रा इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल कर चुके हैं। ’’
 
उन्होंने कहा, ‘‘उनके साथ इस उपलब्धि के लिये जुड़ना बहुत शानदार अहसास है। उन्होंने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता और हमें प्रेरित किया। इसलिये उनका बहुत बड़ा योगदान है। ’’
 
बिंद्रा ने ओलंपिक में एथलेटिक्स में देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाने के लिये बधाई दी थी।उन्होंने लिखा, ‘‘प्रिय नीरज चोपड़ा, इन शब्दों के लिये शुक्रिया लेकिन आपकी जीत सिर्फ आपकी कड़ी मेहनत और दृढ़संकल्प का नतीजा है। यह क्षण आपका है, इसका लुत्फ उठाईये। ’
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