आखिर क्यों पाकिस्तान, चीन और ईरान कर रहे हैं ‘तालिबान’ का समर्थन, इमरान ने कहा, ‘टूट गईं गुलामी की जंजीरें’
'तालिबान खान' के नाम से भी जाने जाने वाले इमरान खान ने एक बार फिर से अपना खतरनाक इरादा जाहिर किया है। इमरान खान ने सोमवार को तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने का स्वागत किया। उन्होंने तालिबान की वापसी को 'दासती की जंजीरों को तोड़ने वाला' बताया है।
महिलाओं, युवाओं और आधुनिकतावादी विचारों को मानने वाले लोगों के लिए खतरनाक तालिबान का चीन और ईरान ने भी स्वागत किया है। एक तरफ चीन ने उम्मीद जताई है कि तालिबान का शासन स्थायी होगा तो वहीं ईरान का कहना है कि अमेरिका की हार से स्थायी शांति की उम्मीद जगी है।
अंग्रेजी, शिक्षा और कामकाज की भाषा को लेकर बात करते हुए इमरान खान ने कहा, 'जब आप दूसरे का कल्चर अपनाते हैं तो फिर मानसिक रूप से गुलाम होते हैं। याद रखें कि यह वास्तविक दासता से भी बुरा है। सांस्कृतिक गुलामी की जंजीरों को तोड़ना आसान नहीं होता है। अफगानिस्तान में इन दिनों जो हो रहा है, वह गुलामी की जंजीरों को तोड़ने जैसा है।
तालिबान ने रविवार को काबुल शहर पर कब्जा जमा लिया और अमेरिका समर्थित सरकार के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर ही भाग गए हैं। वहीं काबुल एयरपोर्ट पर लोगों का हुजूम उमड़ रहा है, जो देश छोड़कर निकलना चाहते हैं।
अफगानिस्तान में तालिबान का राज आने के बाद अमेरिका, ब्रिटेन, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने अपने दूतावासों को ही बंद कर दिया है और राजनयिकों को वापस निकाल रहे हैं। वहीं ईरान, चीन, रूस, तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों ने तालिबान में अब भी अपने दूतावासों में काम जारी रखा है। इन देशों की तरफ से भी तालिबान की सरकार को मान्यता दिए जाने की खबरें आ रही हैं।
उधर चीन ने तालिबान के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जाहिर की है। चीन ने कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि तालिबान अपने वादे पर खरा उतरेगा और देश में खुली एवं समावेशी विचारों वाली सरकार बनाएगा।'
ईरान, रूस और चीन की अमेरिका से कई मुद्दों पर असहमति रही है। ऐसे में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को ये तीनों ही देश अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक अवसर के तौर पर देख रहे हैं। रूस ने तो तालिबान से पहले ही बात शुरू कर दी थी।