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Last Modified: रविवार, 22 अगस्त 2021 (21:30 IST)

Taliban को मान्यता दिलाने की जल्‍दी में China, Pakistan, भारी पड़ सकती है जल्दबाजी, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

Taliban को मान्यता दिलाने की जल्‍दी में China, Pakistan, भारी पड़ सकती है जल्दबाजी, विशेषज्ञों ने दी चेतावनी - china pakistan mull to push for recognition of taliban in afghanistan experts warn long term losses
बीजिंग। अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) शासन को वैश्विक मान्यता दिलाने की चीन (China) और पाकिस्तान (Pakistan) की संयुक्त रणनीति को लेकर विशेषज्ञों ने दोनों देशों को दीर्घकालिक नुकसान की चेतावनी दी है।
 
15 अगस्त को तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद चीन और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में 20 साल के युद्ध के बाद इस मामले में दूसरे देशों के साथ संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर तालिबान की वापसी पर चिंता बनी हुई है, जिसके उदय से अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी समूहों फिर से सिर उठा सकते हैं।
हांगकांग के ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ के एक लेख में कुछ पाकिस्तानी विश्लेषकों के हवाले से कहा गया है कि पाकिस्तान अक्सर कहता रहा है कि अफगानिस्तान में उसका कोई पसंदीदा सहयोगी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तानी सरकार तालिबान की वापसी से स्पष्ट रूप से सहज नजर आ रही है।
 
काबुल पर तालिबान के कब्जे के कुछ ही घंटों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अफगान लोगों ने पश्चिम की 'गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया।'

लेख में कहा गया है कि पाकिस्तान विशेष रूप से चीन और रूस के करीब माने जाने वाले अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तालिबान के साथ सामूहिक राजनयिक जुड़ाव स्थापित करने के लिए पैरवी कर रहा है। वह अफगानिस्तान में समावेशी प्रशासन सुनिश्चित करने, आतंकवादी हमलों को रोकने और महिलाओं को शिक्षा तथा रोजगार की अनुमति प्रदान के वादे पर तालिबान के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है।
 
ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने कहा कि 'पाकिस्तान को अपने पड़ोसी देश में शांति से सबसे अधिक लाभ और संघर्ष तथा अस्थिरता से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है।'
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अपनी पश्चिमी सीमा पर स्थिरता से तभी फायदा होगा जब तालिबान प्रभावी ढंग से शासन करने, अन्य जातीय समूहों को समायोजित करने और स्थायी शांति स्थापित करने में सक्षम होगा।
 
उन्होंने कहा कि इसके विपरीत, यदि वे ऐसा करने में असमर्थ रहे तो अफगानिस्तान को अनिश्चित तथा अस्थिर भविष्य का सामना करना पड़ सकता है, जो पाकिस्तान के हित में नहीं होगा।
 
सिंगापुर में एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (आरएसआईएस) के एक सहयोगी रिसर्च फेलो अब्दुल बासित ने कहा, “पाकिस्तान तालिबान की मदद करके भारत को अफगानिस्तान से बाहर रखना चाहता था। जबकि तालिबान का मकसद पाकिस्तान में मिली पनाह का लाभ उठाकर अमेरिका को अफगानिस्तान से बाहर करना था।
2 जुलाई को पाकिस्तान के राजनेताओं की एक गोपनीय संसदीय ब्रीफिंग में इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद ने तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) समूह को 'एक ही सिक्के के पहलू' बताया था।
 
साथ ही विश्लेषकों ने कहा कि पाकिस्तान और चीन दोनों को अमेरिका से एक मजबूत झटके का सामना करना पड़ सकता है जो अपने सैनिकों की वापसी के बाद स्वतंत्र रूप से चीन और क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के विश्लेषक असफंदयार मीर ने कहा कि अमेरिका पाकिस्तान पर आतंकवाद और तालिबान पर लगाम लगाने के लिये दबाव डाल रहा है। ऐसे में दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण बने रहेंगे। 
 
 
बासित ने कहा, 'अगर तालिबान जिम्मेदारी से व्यवहार करता है और अपनी सरकार को संयम से चलाता है, तो अमेरिका-पाकिस्तान के संबंध में भले ही कोई सुधार न हो, लेकिन यह अपनी जगह बना रहेगा। अगर अफगानिस्तान में स्थिति बिगड़ती है तो अमेरिका-पाकिस्तान संबंध खराब हो जाएंगे।' चीनी विश्लेषकों ने भी चीन के लिए इसी तरह की चेतावनी दी है।
 
साउथ चाइन मॉर्निग पोस्ट के पूर्व प्रधान संपादक वांग जियांगवेई ने अखबार में अपने कॉलम में लिखा है कि अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध एक विनाशकारी विफलता के साथ समाप्त हो गया है।
 
उन्होंने कहा, 'चीनी आधिकारिक मीडिया रिपोर्ट और टिप्पणीकार जाहिर तौर पर अफगानिस्तान में अमेरिकी हार का मजाक उड़ाने में मशगूल नजर आ रहे हैं। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिये कि अफगानिस्तान वह देश है जिसे 'साम्राज्यों की कब्रगाह' के रूप में जाना जाता है।' उन्होंने कहा कि चीन को ऐसा कोई कदम उठाने से बचना होगा जिससे उसे ब्रिटेन, सोवियत संघ और अब अमेरिका की तरह अफगानिस्तान में झटका झेलना पड़े। 

वांग ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि अफगानिस्तान में अमेरिका की पराजय से चीन को अमेरिका की खिल्ली उड़ाने और अमेरिका के पतन की बात को फैलाने का मौका मिल गया है। लेकिन कुछ अंतराराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इससे चीन को एक अधूरी रणनीतिक जीत मिली है। (भाषा)
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