हनुमानजी जब उजाड़ देते हैं द्वारिका की वाटिका तब टूट जाता है बलरामजी का घमंड
महाभारत काल अर्थात द्वापर युग में हनुमानजी की उपस्थित और उनके पराक्रम का वर्णन मिलता है। हनुमानजी ने रामायण काल में भी कई बड़े बड़े महाबलियों का घमंड तोड़ दिया था। फिर चाहे वह रावण हो, मेघनाद हो या बाली। यहां तक की खुद लक्ष्मणजी भी महाबली हनुमानजी के पराक्रम को मान गए थे। लक्ष्मणजी को शेषावतार माना जाता है। उन्होंने ही बाद में महाभारत काल में बलरामजी के रूप में जन्म लिया था। तब भी उन्हें अपने बलशाली होने का घमंड हो चला था।
द्वारिका में बलरामजी ने कई दानवों और असुरों का वध किया था। उन्हें अपनी भुजाओं, गदा और हल पर बहुत घमंड था। एक बार उन्होंने पौंड्रक द्वारा भेजे विशालकाय वानर द्वीत से मुकाबला करके उसे परास्त कर दिया था और उसे अपने एक ही मुक्के से मार दिया था। उसे मारने के बाद तो बलरामजी का अहंकार सातवें आसमान पर चढ़ गया था।
बलरामजी ने जब विशालकाय वानर द्वीत को अपनी एक ही मुक्के से मार दिया था तो उन्हें अपने बल पर घमंड हो चला था। तब श्रीकृष्ण के आदेश पर हनुमानजी गंधमादन पर्वत से उड़ते हुए आए और द्वारिका की वाटिका में घुस गए। द्वारिका की वह वाटिका सबसे सुंदर थी। उस वाटिका को उन्होंने उसी तरह उजाड़ना प्रारंभ कर दिया जिस तरह की उन्होंने रावण की वाटिका को उजाड़ दिया था।
द्वारिका की वाटिका में में वह फलों को वृक्ष सहित उखाड़कर खाने लगे और वृक्ष को दूसरी ओर फेंकने लगे। कई सैनिकों ने उन्हें ऐसा करने के रोका परंतु वे सैनिकों से कहां संभलने वाले थे। आखिकर कार सैनिकों ने जाकर बलरामजी को बताया कि एक वानर हमारी वाटिका में घुस आया है और उत्पात मचा रहा है। यह सुनकर बलरामजी क्रोधित हुए और सैनिकों पर भड़कर गए और कहने लगे कि तुम एक तुच्छ वानर को नहीं भगा सकते? तब सैनिकों ने बताया कि वह बड़ा ही बलशाली है, सैनिकों के बस का नहीं है।
यह सुनकर बलरामजी खुद उन्हें एक साधारण वानर समझकर अपनी गदा लेकर वाटिका से भगाने के लिए पहुंच गए। वहां कई चेतावनी देने के बाद भी जब हनुमानजी नहीं माने तो फिर बलरामजी ने अपनी गदा निकाल ली और फिर वहां उनका हनुमानजी से गदा युद्ध हुआ। युद्ध करते करते बलरामजी थक हारकर हांफने लगे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह इस वानर को काबू में करूं।
थक-हारकर तब उन्होंने कहा कि सच कहो वानर तुम कौन हो वर्ना में अपना हल निकाल लूंगा। हनुमानजी ऐसे में श्रीकृष्ण का ध्यान कर कहते हैं कि प्रभु ये तो हल निकालने की बात कर रहे हैं। बताओं अब क्या करूं?
यह मानसिक संदेश सुनकर तब वहां पर श्रीकृष्ण और रुक्मिणी दोनों ही प्रकट होकर बलरामजी को बताते हैं कि ये पवनपुत्र हनुमानजी हैं। यह सुनकर बलरामजी चौंक जाते हैं और वे तब हनुमानजी से क्षमा मांगते हैं और स्वीकार कर लेते हैं कि हां मुझे अपनी गदा पर घमंड था। जय हनुमान। जय श्रीराम।