Swastik ka rahasya : स्वस्तिक शब्द को 'सु' और 'अस्ति' दोनों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्तिका' अर्थ है होना यानी जिससे 'शुभ हो', 'कल्याण हो' वही स्वस्तिक है। दूसरे अर्थ अनुसार 'सु' का अर्थ है अच्छा या शुभ, 'अस' का अर्थ है 'शक्ति' या 'अस्तित्व' और 'अ' का अर्थ है 'कर्ता' या कर्ता। स्वास्तिक का अर्थ है 'स्वास्तिक' कौशल या कल्याण का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इसे बहुत ही शुभ कल्याणकारी और मंगलकारी माना गया है। जानें स्वास्तिक का रहस्य।
ॐ स्वस्ति नऽइन्द्रो वृद्धश्रवाः, स्वस्ति नः पूषा विश्ववेद्राः।
स्वस्ति नस्ताक्षर्योऽअरिष्टनेमिः, स्वस्ति तो बृहस्पतिर्दधातु॥- यजुर्वेद
यह चार वेदों में से एक है। इसकी पूर्व दिशा में वृद्धश्रवा इंद्र, दक्षिण में वृहस्पति इंद्र, पश्चिम में पूषा-विश्ववेदा इंद्र तथा उत्तर दिशा में अरिष्टनेमि इंद्र अवस्थित हैं। ऋग्वेद में स्वस्तिक के देवता सवृन्त का उल्लेख है। यजुर्वेद की इस कल्याणकारी एवं मंगलकारी शुभकामना, स्वस्तिवाचन में स्वस्तिक का निहितार्थ छिपा है।
1. चार दिशा : स्वास्तिक चार दिशाओं का ज्ञान कराता है। ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है।
2. सूर्य मंडल : प्राचीन मान्यता के अनुसार यह सूर्य मंडल के चारों ओर चार विद्युत केंद्र के समान लगता है।
3. सृष्टिचक्र : स्वास्तिक को सृष्टिचक्र की संज्ञा दी गई है। सिद्धांतसार नामक ग्रन्थ में इन्हें जगत् जगत का प्रतीक माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथों के रूप में वर्णित किया गया है। यह ब्रह्मा के चार सिरों के बराबर भी माना गया है, तो इसके परिणामस्वरूप मध्य में बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिससे भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं।
4. यज्ञ वेद : यज्ञ करने के लिए यज्ञवोदी स्वास्तिक के अनुसार ही बनती है और चारों और सभी वर्णों के आसन लगते हैं।
5. सप्तऋषि : सप्तऋषि तारामंडल में जो पहले दो तारे हैं उनकी सीध में ध्रुव तारा है। इसी के आसपास यह सप्तऋषि तारामंडल मौसम के अनुसार चक्कर लगाते रहते हैं। केंद्र में यदि ध्रुव तारे को रखकर इनके द्वारा चारों दिशाओं में लगाए गए चक्कर की आकृति को देखेंगे तो वह स्वस्तिक के आकार की ही बनेगी।
6. मंगल कार्यों में स्वास्तिक : बिना स्वास्तिक बनाए कोई भी पूजा, विधान और यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य की शुरुआत में और त्योहारों पर हर घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक लगाना अतिशुभ फलदायी माना जाता है। इसे कुशलक्षेम, शुभकामना, आशीर्वाद, पुण्य, शुभभावना, पाप-प्रक्षालन तथा दान स्वीकार करने के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
7. किस से बनाते हैं स्वास्तिक : स्वास्तिक कई चीजों से बनाए जाते हैं, जैसे कुंमकुंम, हल्दी, सिंदूर, रोली, गोबर, रंगोली तथा अक्षत का स्वास्तिक।
8. धर्म का प्रतीक : स्वास्तिक को चार वर्ण, चार दिशा, चार वेद, चार आश्रम और चार सिद्धांत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक भी माना गया है। स्वास्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां समाहित हैं। स्वास्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना गया है। स्वस्तिक का बायां भाग गणेश की शक्ति 'ग' बीज मंत्र का स्थान है।
9. स्वास्तिक की आकृति: स्वास्तिक में एक दूसरे को काटने वाली दो सीधी रेखाएं होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएं उनके सिर पर थोड़ा आगे मुड़ जाती हैं। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद बीच में बने बिंदु को भी अलग-अलग मान्यताओं से परिभाषित किया जाता है। स्वास्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। पहला स्वस्तिक, जिसमें रेखाएं आगे की ओर इशारा करते हुए हमारे दाहिनी ओर मुड़ जाती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यह शुभ संकेत है, जो हमारी प्रगति का संकेत देता है।
10. उल्टा स्वस्तिक : बहुत से लोग किसी देव स्थान, तीर्थ या अन्य किसी जागृत जगह पर जाते हैं तो मनोकामना मांगते वक्त वहां पर उल्टा स्वस्तिक बना देते हैं और जब उनकी उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो पुन: उक्त स्थान पर आकर सीधा स्वस्तिक मनाकर धन्यवाद देते हुए प्रार्थना करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं। ध्यान रखें कभी भी मंदिर के अलावा कहीं और उल्टा स्वस्तिक नहीं बनाना चाहिए।