• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. प्रादेशिक
  4. Tulip garden opened after 2 years in Kashmir
Last Updated : गुरुवार, 25 मार्च 2021 (17:00 IST)

Coronavirus के बीच कश्मीर में 2 साल बाद खुला ट्यूलिप गार्डन

Coronavirus के बीच कश्मीर में 2 साल बाद खुला ट्यूलिप गार्डन - Tulip garden opened after 2 years in Kashmir
जम्मू। 2 साल के अरसे के बाद एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन को गुरुवार को आम जनता के लिए उस समय खोल दिया गया जब कोरोनावायरस (Coronavirus) के दूसरे चरण की वापसी हुई है। आज आयोजित समारोह की अध्यक्षता उपराज्यपाल के सलाहकार बशीर अहमद खान ने की थी और उन्होंने फीता काट कर इसको खोलने की घोषणा की।

इस अवसर पर ट्यूलिप गार्डन के प्रभारी इनाम रहमान सोफी ने बताया कि गुरुवार को गार्डन को जनता के लिए खोल दिया गया है। सोफी ने कहा कि विभाग ने इस वर्ष विभिन्न किस्मों के लगभग 15 लाख फूल लगाए हैं। उन्होंने कहा कि उद्यान में अब तक लगभग 25 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। अधिकारी ने कहा कि उद्यान में इस वर्ष ट्यूलिप की 62 किस्में हैं। ट्यूलिप के फूल औसतन तीन-चार सप्ताह तक रहते हैं, लेकिन भारी बारिश या बहुत अधिक गर्मी इन्हें नष्ट कर सकती है।

कृषि विभाग चरणबद्ध तरीके से ट्यूलिप के पौधे लगाता है ताकि फूल एक महीने या उससे अधिक समय तक बगीचे में रहें। पर्यटन विभाग ने घाटी में नए पर्यटन सीजन की शुरुआत के तहत अगले महीने के पहले सप्ताह में बाग में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम की योजना बनाई है।

ट्यूलिप गार्डन स्थापित करने का उद्देश्य पर्यटकों को एक और विकल्प देना और पर्यटन सीजन को आगे बढ़ाना था, जो हर साल मई में शुरू होता था। हर साल हजारों पर्यटक यहां आते हैं। हालांकि बाग को दो साल के अंतराल के बाद खोला गया क्योंकि यह पिछले साल कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन के कारण आगंतुकों के लिए बंद रहा था।

डल झील का इतिहास तो सदियों पुराना है, पर ट्यूलिप गार्डन का मात्र 12 साल पुराना। मात्र 12 साल में ही यह उद्यान अपनी पहचान को कश्मीर के साथ यूं जोड़ लेगा कोई सोच भी नहीं सकता था। डल झील के सामने के इलाके में सिराजबाग में बने ट्यूलिप गार्डन में ट्यूलिप की 55 से अधिक किस्में आने-जाने वालों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहती हैं। यह आकर्षण ही तो है कि लोग बाग की सैर को रखी गई फीस देने में भी आनाकानी नहीं करते। जयपुर से आई सुनिता कहती थीं कि किसी बाग को देखने का यह चार्ज ज्यादा है पर भीतर एक बार घूमने के बाद लगता है यह तो कुछ भी नहीं है।

सिराजबाग हरवान-शालीमार और निशात चश्माशाही के बीच की जमीन पर करीब 700 कनाल एरिया में फैला हुआ है। यह तीन चरणों का प्रोजेक्ट है जिसके तहत अगले चरण में इसे 1360 और 460 कनाल भूमि और साथ में जोड़ी जानी है।शुरू-शुरू में इसे शिराजी बाग के नाम से पुकारा जाता था। असल में महाराजा के समय उद्यान विभाग के मुखिया के नाम पर ही इसका नामकरण कर दिया गया था।

जम्मू कश्मीर प्रशासन को कोरोना को लेकर कोई चिंता नहीं : लगता है जम्मू कश्मीर प्रशासन कोरोना की दूसरी लहर को लेकर कतई चिंता में नहीं है। कारण स्पष्ट है। ऐसे में जबकि देशभर में कोरोना की दूसरी लहर की दस्तक के कारण कोरोना मरीजों की संख्या उछाल मार रही है प्रदेश प्रशासन जम्मू कश्मीर में कई मेलों और महोत्सवों को मंजूरी देकर कोरोना को न्यौता भी दे चुका है।

ताजा घटनाक्रम में आज एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन को श्रीनगर में लोगों के लिए खोल दिया गया है। तीन दिन पहले ही बदामबारी को भी खोल दिया गया था। दो दिनों के बाद जश्ने राजौरी और जम्मू में फुल्कारी महोत्सव भी घोषित किया जा चुका है। जम्मू समेत कई शहरों में मेले भी आयोजित हो रहे हैं। एक तारीख से ट्यूलिप गार्डन में जश्ने बहार कश्मीर महोत्सव भी आरंभ होगा, जो 15 दिनों तक चलेगा।

दरअसल यह सब प्रदेश में पटरी से उतर चुके पर्यटन व्यवसाय में जान फूंकने की मंशा से किया जा रहा है जिसमें इसे भूला दिया गया है कि यह सभी महोत्सव ऐसे समय में आयोजित होने जा रहे हैं जबकि कोरोना की दूसरी लहर खतरनाक रूप से सामने आई है और केंद्र सरकार कोरोना पाबंदियों को सख्ती से लागू करने के दिशा निर्देश बार-बार जारी कर रहा है।

इतना जरूर था कि इन महोत्सवों को ‘कोई खतरा न मानने वाले’ जम्मू कश्मीर प्रशासन के अधिकारी कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए जिन सख्त पाबंदियों की घोषणा करते थे वे पहले से ही प्रदेश में लागू हैं। उन्होंने प्रदेश के प्रवेश द्वार लखनपुर में सख्ती बढ़ाने और मास्क न पहनने वालों के विरुद्ध कार्रवाई के निर्देश दिए थे।

साथ ही रात को होने वाली गतिविधियों पर नकेल कसने की भी तैयारी की जाने लगी थी, पर आम नागरिक का सवाल था कि इन महोत्सवों और प्रदेश में कई शहरों में आयोजित हो रहे मेलों से क्या कोरोना खुद दूरी बनाए रखेगा, जबकि इन महोत्सवों और मेलों में न ही लोग सामाजिक दूरी का पालन कर रहे थे और न ही मास्क का इस्तेमाल कर रहे थे। दूसरे शब्दों में कहें तो यह अधिकारी सिर्फ प्रदेश के बाहर से आने वालों को ही खतरा मानते थे।