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  4. Relief to Shinde faction, Speaker Narvekar told Eknath faction to be real Shiv Sena
Last Updated : गुरुवार, 11 जनवरी 2024 (10:09 IST)

maharashtra politics : मुख्यमंत्री शिंदे को राहत, एकनाथ गुट के विधायक अयोग्य नहीं

ठाकरे को झटका, कहा- एकनाथ शिंदे को हटाने का अधिकार उद्धव को नहीं

Rahul Narvekar
  • एकनाथ शिंदे गुट को बड़ी राहत
  • नार्वेकर ने कहा- उद्धव को शिंदे को हटाने का अधिकार नहीं
  • शिंदे गुट को कहा असली शिवसेना
Maharashtra political crisis: विधायक अयोग्यता मामले पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बड़ी राहत मिली है। महाराष्‍ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने मुख्‍यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट के 16 विधायकों अयोग्यता को लेकर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि शिंदे गुट ही असली शिवसेना है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के लिए उन्हें 10 जनवरी तक का समय दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के लिए उन्हें 10 जनवरी तक का समय दिया था।  
 
नार्वेकर ने फैसला सुनाते हुए वह आधार भी पढ़कर सुनाया, जिसके तहत उन्होंने यह फैसला दिया। उन्होंने कहा कि संशोधित संविधान पर दोनों का भरोसा है। ईसीआई रिकॉर्ड में भी शिंदे गुट ही असली शिवसेना है। मैंने चुनाव आयोग के फैसले को ध्यान में रखा है। उद्धव गुट ने आयोग के फैसले को चुनौती दी थी। शिवसेना का 1999 का संविधान ही मान्य है। उन्होंने कहा कि 2018 के शिवसेना के संविधान को स्वीकार नहीं कर सकते।
 
उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे एकनाथ शिंदे को विधायक दल के नेता पद से नहीं हटा सकते। उद्धव का नेतईत्व संवैधानिक नहीं। स्पीकर ने शिंदे को हटाने का फैसला नामंजूर कर दिया।  
 
6 बिंदुओं पर सुनाया फैसला : स्पीकर ने राहुल नार्वेकर ने 6 बिंदुओं पर अपना फैसला सुनाया। इसमें पहला था- असली शिवसेना कौन? इस पर सुप्रीम कोर्ट में चले सुभाष देसाई Vs महाराष्ट्र सरकार केस का संदर्भ उन्होंने लिया। स्पीकर ने कहा कि शिंदे गुट ने कहा है कि उद्धव ठाकरे गुट ने 2018 का संविधान गुपचुप तरीके से लागू किया है।
 
नार्को टेस्ट हो : कोला जिले के बालापुर से उद्धव ठाकरे गुट के विधायक नितिन देशमुख ने कहा कि स्पीकर राहुल नार्वेकर का नार्को टेस्ट होना चाहिए। इससे यह क्लियर होगा कि नार्वेकर कहीं किसी के दबाव में तो फैसला नहीं ले रहे हैं। 

इस तरह चला पूरा घटनाक्रम : जून 2022 में शिंदे के साथ 39 शिवसेना विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी जिससे शिवसेना में विभाजन हो गया और महाविकास आघाड़ी (एमवीए) की गठबंधन सरकार गिर गई थी। गठबंधन में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस भी शामिल थी। शिंदे इससे पहले उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। इसके बाद शिंदे और ठाकरे गुटों द्वारा दलबदलरोधी कानूनों के तहत एक-दूसरे के विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए याचिकाएं दायर की गई थीं।
 
भाजपा के समर्थन से शिंदे बने मुख्‍यमंत्री : जून 2022 में विद्रोह के बाद एकनाथ शिंदे भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे। वरिष्‍ठ भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया था। संतुलन बनाने के लिए फडणवीस को कई महत्वपूर्ण मंत्रालय दिए गए। 41 दिन बाद 18 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। भाजपा और शिवसेना शिंदे गुट के बीच विभागों का बंटवारा भी हो गया।
 
निर्वाचन आयोग से मिली राहत : निर्वाचन आयोग ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को 'शिवसेना' नाम और 'तीर धनुष' चुनाव चिह्न दिया जबकि ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट को शिवसेना (यूबीटी) नाम और मशाल चुनाव चिह्न दिया गया।
 
फडणवीस बने चाणक्य : महाराष्‍ट्र की राजनीति के इस पूरे परिदृश्य में देवेंद्र फडणवीस एक ऐसा नाम थे, जो शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के इन सारे मुद्दों को समय समय पर भुना रहे थे। उन्‍होंने शिवसेना की हर गलती को अवसर मानकर भुनाया, उसे मीडिया में उठाया। यह तो उनका वो चेहरा था जो परदे के सामने नजर आ रहा था, लेकिन वे परदे के पीछे भी शिवसेना सरकार की जमीन खिसकाकर अपनी जमीन बनाने में जुटे हुए थे। जैसे ही उन्‍हें शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे के रूप में सत्‍ता हथियाने का एक बड़ा मौका मिला उन्‍होंने कोई गलती नहीं की और महाराष्‍ट्र की राजनीति के ‘चाणक्‍य’ बन गए।
ऐसा लगता है कि देवेंद्र फडणवीस ने अपनी वापसी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। शायद यही वजह थी कि सत्ता छोड़ने से पहले उन्‍होंने विधानसभा में कहा था... ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा’। दरअसल, शिवसेना को तभी समझ जाना चाहिए था, जब फडणवीस यह शेर पढ़ रहे थे। 
 
कहां चूके उद्धव ठाकरे : शिवसेना के इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि बाल ठाकरे सत्‍ता में आए बगैर सत्‍ता चलाते थे और 'सरकार' कहलाए जाते थे। शिवसेना सरकार का मुख्‍यमंत्री कोई भी रहा हो, लेकिन रिमोट कंट्रोल तो बाला साहेब ठाकरे के हाथ में ही होता था। वो एक तरह से किंग मेकर की भूमिका में रहते थे। लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के साथ आकर उद्धव खुद उनका राजनीतिक रिमोट कंट्रोल बन गए।
 
मई 2023 में मिली शिंदे सरकार को राहत : मई 2023 में शिंदे सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्‍ट्र की शिंदे सरकार को बरकरार रखते हुए कहा कि उद्धव ठाकरे अगर इस्तीफा नहीं देते तो स्थिति कुछ ओर होती। उद्धव ठाकरे को महाराष्‍ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से पहले इस्तीफा देना भारी पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने उनका पक्ष सही माना लेकिन फिर भी उन्हें मुख्‍यमंत्री के रूप में बहाल करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ ने राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर की भूमिका पर भी सवाल उठाए।
 
2023 में NCP में भी बगावत : जुलाई 2023 में एक बार फिर महराष्‍ट्र में सियासी संकट दिखाई दिया। इस बार उद्धव ठाकरे के बाद शरद पवार की बारी थी। भतीजे अजित पवार और प्रफल्ल पटेल ने शरद पवार के साथ बगावत करते हुए शिंदे सरकार को समर्थन दे दिया। इनाम में उन्हें डिप्टी सीएम की कुर्सी मिल गई तो 9 एनसीपी विधायकों को मंत्री बनाया गया।
 
कौन है स्पीकर राहुल नार्वेकर : भाजपा नेता राहुल नार्वेकर को जुलाई 2023 में महाराष्ट्र विधानसभा का अध्यक्ष चुन लिया गया। 45 वर्षीय नार्वेकर मुंबई के कोलाबा निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए चुने गए थे। वह पूर्व में शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे हैं। नार्वेकर वरिष्ठ एनसीपी नेता रामराजे नाइक-निंबालकर के दामाद हैं, जो महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष भी हैं। 2014 में पार्टी छोड़ने से पहले वह शिवसेना की यूथ विंग के प्रवक्ता थे। शिवसेना में अपने कार्यकाल के बाद, वह शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चले गए।
 
राहुल नार्वेकर 2014 के लोकसभा चुनाव में मावल से असफल रहे थे। उस समय वह शिवसेना के श्रीरंग अप्पा बार्ने से हार गए थे। नार्वेकर 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने कांग्रेस के अशोक जगताप को हराकर कोलाबा से विधानसभा चुनाव जीता।
 
सुप्रीम कोर्ट ने दी थी 10 जनवरी की डेडलाइन : महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर बुधवार को मुख्यमंत्री शिंदे और अन्य विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएंगे जिनकी बगावत के कारण जून 2022 में शिवसेना में विभाजन हुआ था। उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाने की समय-सीमा 31 दिसंबर, 2023 तय की थी, लेकिन उससे कुछ दिन पहले 15 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने अवधि को 10 दिन बढ़ाकर फैसला सुनाने के लिए 10 जनवरी की नई तारीख तय की।