नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से आग्रह किया कि वह दिल्ली के पुलिस आयुक्त के तौर पर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली लंबित याचिका पर अच्छा हो कि 2 हफ्ते के अंदर निर्णय करे।
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1984 बैच के अधिकारी अस्थाना को गुजरात काडर से यूनियन काडर में लाया गया था। सीमा सुरक्षाबल के महानिदेशक अस्थाना को 31 जुलाई को सेवानिवृत्त से चार दिन पहले, 27 जुलाई को दिल्ली का पुलिस आयुक्त नियुक्त किया गया। उनका राष्ट्रीय राजधानी के पुलिस प्रमुख के तौर पर कार्यकाल एक साल का होगा।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) को अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ लंबित याचिका में हस्तक्षेप के लिए उच्च न्यायालय जाने की अनुमति दी।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, हम दिल्ली उच्च न्यायालय से रिट याचिका पर सुनवाई के लिए यथाशीघ्र विचार करने का अनुरोध करते हैं…, जो उसके समक्ष लंबित है, अच्छा हो कि आज की तारीख से दो हफ्तों के अंदर जिससे हमें भी उक्त अदालत के फैसले का लाभ मिले।
न्यायालय ने कहा, याचिकाकर्ता अगर उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित मामले में कोई हस्तक्षेप याचिका दायर करना चाहता है और/या उक्त अदालत की सहायता करना चाहता है तो उसे ऐसा करने की आजादी है। पीठ ने एनजीओ की जनहित याचिका अपने समक्ष लंबित रखते हुए सुनवाई को दो हफ्तों के लिए स्थगित कर दिया और कहा, रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह दो हफ्तों बाद मामले को उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करे।
दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त के तौर पर अस्थाना की नियुक्ति और उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दिए जाने को चुनौती देने वाली एक अधिवक्ता की याचिका को अपने पास रखते हुए इस मामले में सुनवाई की तारीख 24 सितंबर तय की थी। उच्च न्यायालय की पीठ को वकील प्रशांत भूषण ने बताया था कि सीपीआईएल की याचिका सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय में सूचीबद्ध है।
केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मामला एक राज्य के पुलिस प्रमुख की नियुक्ति से जुड़ा है और संबंधित उच्च न्यायालय को इसे देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को दो हफ्ते के बजाए कुछ और समय दिया जाना चाहिए क्योंकि अब तक केंद्र को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है जिसे अपना जवाब दाखिल करना होगा।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिका में न्यायालय से अस्थाना को सेवा विस्तार देकर नियुक्त करने के केंद्र के आदेश को दरकिनार करने की मांग की गई है। सुनवाई की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश ने जनहित याचिका पर सुनवाई करने में अपनी अक्षमता व्यक्त करते हुए कहा, मैंने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के दौरान अपनी राय व्यक्त की थी।
उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की पूर्व में हुए एक बैठक में प्रधान न्यायाधीश ने विधिक स्थिति को सामने रखा था जिसके बाद सीबीआई निदेशक के तौर पर नियुक्ति के लिए अस्थाना के नाम पर विचार नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष भी इस समिति का हिस्सा थे।
प्रधान न्यायाधीश रमण ने कहा, यहां दो मुद्दे हैं। एक मेरी भागीदारी के बारे में, सीबीआई निदेशक के चयन के दौरान इन श्रीमान के चयन के बारे में मैंने अपनी राय व्यक्त की थी। दूसरी चीज, किसी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, सही या गलत। हम समझते हैं कि इस मामले में समय महत्वपूर्ण है। इसलिए हम इस मामले पर उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के लिए दो हफ्ते की समय सीमा तय करते हैं और हमारे पास भी उच्च न्यायालय के फैसले का लाभ होगा।
एनजीओ की तरफ से पेश हुए प्रशांत भूषण ने गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कहा कि कई बार घात लगाकर याचिकाएं सरकार के साथ मिलकर सिर्फ समय लेने के लिए दायर की जाती हैं। न्यायालय ने भूषण को उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित याचिका में हस्तक्षेप के लिए याचिका दायर करने या एक नई याचिका दायर करने की छूट दे दी।
मेहता ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष ऐसी ही एक याचिका लंबित है और एनजीओ से वहां अपनी बात रखने को कहा जा सकता है। उन्होंने पूछा कि भूषण के किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है जिसकी वजह से उन्हें न्यायालय में याचिका दायर करनी पड़ी।
भूषण ने दलील दी कि उनकी याचिका पर पूर्व में केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति रद्द हो चुकी है और अस्थाना की नियुक्ति नियमों का गंभीर उल्लंघन कर की गई है, जिसके फलस्वरूप नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने नियमों के प्रति घोर उल्लंघन दर्शाया है और सेवानिवृत्ति के कुछ दिनों पहले अस्थाना को नियुक्त कर सेवा विस्तार दिया है। भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत ने प्रकाश सिंह मामले में शर्तें तय की थीं कि अनुशंसा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के जरिए होनी चाहिए और नियुक्ति के समय अधिकारी का सेवाकाल कम से कम छह महीने बचा होना चाहिए।
सुनवाई के अंत में मेहता ने कहा, जहां तक घात लगाकर याचिकाएं दायर करने की बात है, जितना कम कहा जाए बेहतर है। हमारे यहां पेशेवर जनहित याचिकाकर्ता हैं जो दौड़ में हार चुके लोगों की तरफ से याचिकाएं दायर करते हैं। एनजीओ ने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह केंद्र को निर्देश दे कि वह अस्थाना की गुजरात कैडर से एजीएमयूटी कैडर में अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति को मंजूरी देने वाले 27 जुलाई के आदेश को पेश करे।
एनजीओ ने उनके सेवा विस्तार और उनकी नियुक्ति के अवैध होने की दलील देते हुए कहा कि उनके पास पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्त करने के लिए जरूरी छह महीने का सेवाकाल नहीं बचा था, क्योंकि वह चार दिन में सेवानिवृत्त होने वाले थे।(भाषा)