मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Supreme Court mentions Five K's on comparison with Sikhism
Written By
Last Updated : शुक्रवार, 9 सितम्बर 2022 (00:15 IST)

karnataka hijab ban: सिख धर्म से तुलना पर सुप्रीम कोर्ट ने किया फाइव K का जिक्र, कहा- उचित नहीं

karnataka hijab ban: सिख धर्म से तुलना पर सुप्रीम कोर्ट ने किया फाइव K का जिक्र, कहा- उचित नहीं - Supreme Court mentions Five K's on comparison with Sikhism
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में याचिकाकर्ताओं से मुसलमानों और सिखों की प्रथाओं की तुलना न करने की सलाह देते हुए कहा कि सिख धर्म की प्रथाओं की तुलना करना बहुत उचित नहीं है,, क्योंकि वे देश की संस्कृति में अच्छी तरह से समाहित हैं।
 
शीर्ष अदालत ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई करते हुए कहा कि सिख धर्म में 5 क (केश, कड़ा, कंघा, कच्छा और कृपाण) पूरी तरह से स्थापित हैं।
 
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मामले में एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए एक वकील द्वारा सिख धर्म और पगड़ी का उदाहरण दिए जाने के बाद यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि सिख धर्म के अधिकारों या प्रथाओं की तुलना करना बहुत उचित नहीं है। 5 क अच्छी तरह से स्थापित हैं।
 
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला दिया और कहा कि यह सिखों द्वारा कृपाण ले जाने का प्रावधान करता है। संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता, आचरण और धर्म के प्रचार से संबंधित है। पीठ ने कहा कि इन प्रथाओं की तुलना न करें, क्योंकि उन्हें 100 से अधिक वर्षों से मान्यता दी गई है।
 
याचिकाकर्ताओं में से एक के लिए पेश हो रहे अधिवक्ता निजाम पाशा ने कहा कि अनुच्छेद 25 में केवल कृपाण का उल्लेख है, अन्य किसी क का नहीं। पाशा ने अपनी दलीलों में कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले में पवित्र कुरान की कुछ आयतों के साथ-साथ कुछ टिप्पणियों का भी उल्लेख किया गया है।
 
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने पीठ को बताया कि कर्नाटक सरकार ने कहा है कि अगर छात्राएं सिर पर दुपट्टा लेकर आएंगी तो अन्य लोग नाराज होंगे, लेकिन यह इस पर प्रतिबंध लगाने का कारण नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि सिर पर दुपट्टा पहनना अनुच्छेद 19 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हिस्सा होने के अलावा धार्मिक मान्यता का भी एक हिस्सा है।
 
कामत ने कुछ अधिवक्ताओं के माथे पर लगाए जाने वाले एक दिव्य चिह्न नमाम का जिक्र करते हुए कहा कि यह हिंदू धर्म का अभिन्न अंग नहीं हो सकता है। उन्होंने पूछा कि यह अदालत में अनुशासन को कैसे नुकसान पहुंचाता है? क्या यह सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है? इसपर पीठ ने कहा कि वकीलों के लिए अदालत में पेश होने के लिए एक विशेष पोशाक है।
 
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि राजस्थान में लोग मौसम की वजह से पगड़ी पहनते हैं और गुजरात में भी लोग इसे पहनते हैं। सार्वजनिक व्यवस्था के बारे में दलीलों पर, पीठ ने कहा कि यह मुद्दा तब पैदा हो सकता है, जब कोई सड़क पर हो।
 
पीठ ने कहा कि सड़क पर हिजाब पहनने से किसी पर कोई असर नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि लेकिन एक बार जब आप एक स्कूल की इमारत, स्कूल परिसर के बारे में बात कर रहे हैं, तो सवाल यह है कि स्कूल वहां किस तरह की सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना चाहता है।
 
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि यह सरकार का कर्तव्य है कि वह ऐसा माहौल तैयार करे जहां लोग अनुच्छेद 25 के अनुसार अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें। उन्होंने कहा कि अगर मैं सिर पर दुपट्टा पहनता हूं, तो मैं किसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा हूं?
 
पीठ ने कहा कि यह दूसरे के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का सवाल नहीं है। उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि आपके पास किस तरह का मौलिक अधिकार है जिसका आप प्रयोग करना चाहते हैं। इस मामले में बहस 12 सितंबर को जारी रहेगी।(भाषा)
ये भी पढ़ें
कोरोनिल से जुड़े मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने बाबा रामदेव को भेजा नोटिस