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Last Modified: बुधवार, 22 जनवरी 2020 (17:57 IST)

स्वास्थ्य बजट में कम से कम 25 फीसदी वृद्धि किए जाने का सुझाव

Health budget | स्वास्थ्य बजट में कम से कम 25 फीसदी वृद्धि किए जाने का सुझाव
नई दिल्ली। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी हस्तियों ने आगामी बजट में लोगों की सेहत का खास ख्याल रखे जाने की उम्मीद जताते हुए कहा है कि इतना धन तो उपलब्ध कराया ही जाना चाहिए जिससे उपचार कराना आम आदमी की पहुंच में हो सके और गरीबों को भी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा सकें।
 
डिजिटल हेल्थ केयर के क्षेत्र में अग्रणी शिफा केयर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं संस्थापक मनीष छाबड़ा ने कहा कि पिछले वर्ष के स्वास्थ्य क्षेत्र के 62,398 करोड़ रुपए के बजट में कम से कम 25 फीसदी की वृद्धि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को करनी चाहिए। इससे स्वास्थ्य क्षेत्र में आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराए जाने के साथ ही गरीबों का भी उपचार कराए जाने में सक्षम हुआ जा सकेगा।
 
छाबड़ा ने बजट के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र की ओर से सरकार को दिए गए सुझावों को मीडिया के साथ साझा करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में लागू वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) हटा दिया जाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
 
उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसी नीति लागू करनी चाहिए जिससे गंभीर बीमारियां जैसे हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर, रक्तचाप दर्द, जलन और सूजन आदि में बायोसिमिलर का उपयोग करके पीड़ितों का उपचार किया जा सके। बायोसिमिलर से जुड़ी नीति लागू करने पर 50 करोड़ डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। ऑस्ट्रेलिया में इस नीति के लागू करने से उपचार में खर्च होने वाले सरकारी धन में 50 से 70 प्रतिशत तक कमी आई है।
 
केयरकवर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं संस्थापक निवेश खंडेलवाल ने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी खर्च में हालांकि काफी बढ़ोतरी की गई है और यह 72,000 करोड़ से बढ़कर 2.13 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है लेकिन अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप इसमें वृद्धि नहीं की जा सकी है। सरकार को स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च में बढ़ोतरी का एक फॉर्मूला तय कर देना चाहिए जिससे यह राशि प्रतिवर्ष बढ़ती रहे।
 
खंडेलवाल ने कहा कि सरकार को एक टास्क फोर्स का गठन करना चाहिए जिससे स्वास्थ्य देखभाल में आने वाले खर्च में कमी के उपाय निरंतर जारी रखे जा सकें। इस प्रयास के तहत सेवा प्रदाताओं पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि दिल्ली आरोग्य कोष जैसी सफल योजनाएं पूरे देश में लागू की जा सकती हैं।
 
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से देश में 70 प्रतिशत मरीजों को इलाज के लिए जेब से ही पैसा खर्च करना पड़ रहा है। बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करते हैं। इन सब तथ्यों को ध्यान में रखकर नीति निर्माताओं को योजनाएं बनानी पड़ेंगी और उन्हें इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों से सहयोग लेना चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि उनका सुझाव है कि मरीजों के इलाज के खर्च की राशि बिना किसी ब्याज के 12 मासिक किस्तों में विभाजित करने के प्रावधान किए जाएं जिससे कि उन्हें उपचार व्यय को चुकाने में सहूलियत हो सके।
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