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Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 2 जून 2023 (14:14 IST)

Section 124A: क्या बरकरार रहेगा देशद्रोह कानून? जानिए क्या हैं लॉ कमीशन की सिफारिशें

Section 124A: क्या बरकरार रहेगा देशद्रोह कानून? जानिए क्या हैं लॉ कमीशन की सिफारिशें - Section 124A: Will the sedition law remain intact? Know what recommendations of Law Commission
Sedition Act Section 124A: भारतीय लॉ कमीशन ने देशद्रोह (राजद्रोह-धारा 124-ए) कानून को बरकरार रखने की सिफारिश की है। इतना ही नहीं आयोग ने इस अपराध की सजा बढ़ाकर आजीवन कारावास या 7 साल करने का प्रस्ताव रखा है। भारतीय विधि आयोग का कहना है कि भारतीय दंड संहिता के राजद्रोह अपराध (धारा 124ए) को कुछ संशोधनों के साथ बरकरार रखा जाना चाहिए। इतना ही नहीं आयोग ने कानून में अधिक स्पष्टता लाने के लिए कानून में संशोधन की सिफारिश की है। 
 
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को दी अपनी सिफारिश में लॉ कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी (सेवानिवृत्त) ने कुछ सुझाव भी दिए हैं। इससे पहले यह मुद्दा तब भी सुर्खियों में आया था जब अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत कौर राणा और उनके विधायक पति रवि राणा की गिरफ्तारी के चलते राजद्रोह कानून (Sedition Law) के तहत मामला दर्ज किया था। उन पर राज्य की कानून व्यवस्था को चुनौती देना, धार्मिक सौहार्द बिगाड़ना और दंगे भड़काने वाली बयानबाजी करने के आरोप थे। दोनों पर राजद्रोह की धारा 124-ए लगाई गई थी।
 
 
क्या कहा आयोग ने : 
  • देशद्रोह के अपराध लिए सजा बढ़ाई जानी चाहिए। 
  • राजद्रोह को न्यूनतम 3 साल से 7 साल तक की जेल के साथ दंडनीय बनाया जाना चाहिए। 
  • भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए राजद्रोह कानून जरूरी है। 
  • भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा मौजूद है। 
  • राज्य की सुरक्षा में ही नागरिकों की स्वतंत्रता। 
  • देश के विरुद्ध कट्टरता फैलाने और सरकार को नफरत की स्थिति में लाने में सोशल मीडिया की काफी भूमिका है। जरूरी है कि धारा 124ए लागू हो। 
  • आईपीसी की धारा 124ए को केवल इसलिए निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है, उचित नहीं है।
 
क्या है राजद्रोह कानून? : भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है। इस कानून के तहत यदि कोई व्यक्ति सरकार के विरोध में कोई आलेख लिखता है, बोलता है अथवा ऐसी सामग्री का समर्थन अथवा प्रदर्शन करता है तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। किसी व्यक्ति का देश विरोधी संगठन से संबंध होने पर भी उसके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। 
 
अंग्रेजों के जमाने का कानून : भारत में सबसे पहले यह कानून 1860 में यानी ब्रिटिश काल में आया था। इसे 1870 में लागू किया गया था। अंग्रेजी शासन के खिलाफ काम करने वालों लोगों पर उस समय इस कानून का इस्तेमाल किया जाता था। यदि किसी व्यक्ति पर राजद्रोह का केस दर्ज होता है तो वह सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता।
 
राजद्रोह कानून के विरोधी अक्सर दावा करते हैं कि आईपीसी की धारा 124A, अनुच्छेद-19 के तहत प्राप्त ‘स्वतंत्रता के अधिकार’ की भावना के खिलाफ है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष आदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खिलाफ इस कानून का प्रयोग किया गया था। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लेख लिखने के लिए 1908 में लोकमान्य तिलक को 6 साल की सजा सुनाई गई थी। 
 
सजा का प्रावधान : राजद्रोह एक गैर जमानती अपराध है अर्थात इस तरह के मामलों में जमानत नहीं होती। अपराध की प्रकृति के हिसाब से इसमें 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा जुर्माना या फिर सजा और जुर्माना दोनों की सजा का भी प्रावधान किया गया है। 
 
2014 से लेकर 2020 तक 399 लोगों के खिलाफ राजद्रोह के मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से सिर्फ 125 के खिलाफ ही चार्जशीट दाखिल हो सकी। वहीं सिर्फ 8 मामलों में सजा सुनाई गई। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 2 फीसदी मामलों में ही आरोपियों को सजा सुनाई गई। सर्वोच्च न्यायालय ने 1962 विशेष तौर पर ‘केदार नाथ सिंह' मामले (1962) में स्पष्ट किया था कि आईपीसी की धारा 124ए के तहत केवल वे कार्य राजद्रोह की श्रेणी में आते है, जिनमें हिंसा या हिंसा को उकसाना शामिल हो। 
 
इस धारा से जुड़ी समस्याएं : केंद्र और राज्यों की सरकारों द्वारा आमतौर पर विरोधियों, लेखकों, कार्टूनिस्टों के खिलाफ इस धारा का प्रयोग देखने में आता है। 1870 में जब यह कानून बना था तब संभावित विद्रोह के डर से अंग्रेजी सरकार द्वारा देशद्रोह कानून को भारतीय दंड संहिता (IPC) में शामिल किया गया था। स्वतंत्रता के बाद इसे खत्म किए जाने की मांग के बावजूद यह आज भी बना हुआ है
 
क्या वाकई इस कानून की जरूरत है : विधि आयोग ने अपने परामर्श में इस विषय पर पुनर्विचार करने की बात कही है। आयोग के मुताबिक जीवंत लोकतंत्र में सरकार के प्रति असहमति और उसकी आलोचना सार्वजनिक बहस का प्रमुख मुद्दा है। आयोग के पत्र में यह भी कहा गया है कि भारत को राजद्रोह के कानून को क्यों बरकरार रखना चाहिए, जबकि इसकी शुरुआत अंग्रेज़ों ने भारतीयों के दमन के लिए की थी। इतना ही नहीं उन्होंने अपने देश में इस कानून को समाप्त कर दिया है।
 
गांधी जी ने कहा था : महात्मा गांधी भी राजद्रोह कानून के खिलाफ थे। उन्होंने कहा था कि आईपीसी की धारा 124A नागरिकों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए लागू की गई थी। हालांकि यह अलग बात है कि राजद्रोह कानून आज भी उसी रूप में लागू है, जिस रूप में अंग्रेजों ने इसे लागू किया था। 
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