कवि प्रदीप की पंक्तियों का सुप्रीम कोर्ट में उल्लेख, एक घर का सपना कभी ना छूटे
Supreme Court guidelines on bulldozer justice: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई ने यह रेखांकित करने के लिए प्रसिद्ध कवि प्रदीप की इन पंक्तियों का बुधवार को उल्लेख किया कि हर किसी की इच्छा होती है कि उसका अपना घर हो और वह नहीं चाहता कि यह सपना कभी छूटे।
अपना घर हो : संपत्तियों को ढहाने पर देशभर के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए, 95 पन्नों के फैसले की शुरूआत न्यायमूर्ति गवई ने कवि की इन पंक्तियों से की, अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है, इंसान के दिल की ये चाहत है कि एक घर का सपना कभी ना छूटे। पीठ ने कहा, प्रसिद्ध कवि प्रदीप ने आशियाना के महत्व का वर्णन इस तरह किया है। न्यायमूर्ति गवई ने पीठ के लिए फैसला लिखा। पीठ में न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन भी शामिल हैं।
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घर उम्मीदों का प्रतीक होता है : न्यायालय ने कहा कि हर व्यक्ति और परिवार एक घर का सपना देखता है। पीठ ने कहा कि एक घर हर परिवार या व्यक्तियों की स्थिरता व सुरक्षा की सामूहिक उम्मीदों का प्रतीक होता है। पीठ ने कहा कि एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या प्राधिकारियों को किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को दंडित करने के उपाय के रूप में उसके परिवार का आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं।
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पीठ ने कहा कि आश्रय का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के पहलुओं में से एक है। देश भर के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करते हुए, न्यायालय ने कहा कि कारण बताओ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाए और प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
'बुलडोजर न्याय' पर सख्त रुख अपनाते हुए पीठ ने कहा कि प्राधिकारी न्यायाधीश का काम नहीं कर सकते, किसी आरोपी को दोषी करार नहीं दे सकते और उसके घर को ध्वस्त नहीं कर सकते। न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि यदि प्राधिकारी मनमाने तरीके से किसी नागरिक के घर को सिर्फ इस आधार पर ध्वस्त करते हैं कि वह एक अपराध में आरोपी है, तो वह कानून के शासन के सिद्धांतों के विपरीत काम करता है। (एजेंसी/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala