ममता बनर्जी ने PM मोदी को फिर लिखा पत्र, डीवीसी की शिकायत करते हुए लगाया बड़ा आरोप
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बाढ़ की स्थिति पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक और पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) ने उनकी सरकार से परामर्श किए बिना अपने जलाशयों से पानी छोड़ दिया, जिससे राज्य के कई जिले जलमग्न हो गए।
प्रधानमंत्री को लिखे ममता के पिछले पत्र का जवाब देते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने कहा था कि राज्य के अधिकारियों को हर चरण में डीवीसी के जलाशयों से पानी छोड़े जाने के बारे में सूचित किया गया था, जो एक बड़ी आपदा को रोकने के लिए आवश्यक था।
ममता ने कहा कि हालांकि माननीय मंत्री का दावा है कि डीवीसी के बांधों से पानी दामोदर घाटी जलाशय विनियमन समिति के साथ आम सहमति और सहयोग से छोड़ा गया था, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार के प्रतिनिधियों के साथ परामर्श भी शामिल था, मैं इससे सम्मानपूर्वक असहमति जताती हूं।
उन्होंने आरोप लगाया कि भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय जल आयोग के प्रतिनिधि सभी अहम फैसले आम सहमति के बिना एकतरफा रूप से लेते हैं।
ममता ने दावा किया कि कभी-कभी राज्य सरकार को बिना किसी नोटिस के पानी छोड़ दिया जाता है और उनकी सरकार की राय का सम्मान नहीं किया जाता है।
उन्होंने 21 सितंबर को लिखे पत्र में कहा कि इसके अलावा 9 घंटे की लंबी अवधि तक जलाशयों से होने वाली अधिकतम निकासी केवल 3.5 घंटे के नोटिस पर की गई, जिसके कारण आपदा प्रबंधन के प्रभावी उपाय नहीं किए जा सके।” यह पत्र रविवार को सार्वजनिक किया गया था।
मोदी को 20 सितंबर को लिखे पत्र में ममता ने दावा किया था कि राज्य में 50 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। उन्होंने बड़े पैमाने पर मची तबाही से निपटने के लिए प्रधानमंत्री से केंद्रीय धनराशि को तुरंत मंजूरी देने और जारी करने का आग्रह किया था।
पाटिल ने अपने पत्र में डीवीसी के जलाशयों से पानी छोड़े जाने के कारण राज्य में आई बाढ़ के बारे में मुख्यमंत्री की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि पानी छोड़ने का जिम्मा दामोदर घाटी जलाशय विनियमन समिति (डीवीआरआरसी) पर होता है, जिसमें केंद्रीय जल आयोग, पश्चिम बंगाल, झारखंड और डीवीसी के प्रतिनिधि शामिल हैं।
पाटिल ने स्पष्ट किया कि 14 से 17 सितंबर तक भारी बारिश के कारण पश्चिम बंगाल के अधिकारियों के अनुरोध पर मैथन और पंचेत जलाशयों से पानी छोड़े जाने की दर में 50 प्रतिशत की कटौती की गई थी।