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'ठेलेवाला' सुनील और 'किन्नर' कमला जान को भी हक है महापौर बनने का

'ठेलेवाला' सुनील और 'किन्नर' कमला जान को भी हक है महापौर बनने का - Kinnar Kamla Jaan Mayor Katni
ये जरूरी नहीं है कि भारत में राजनीति किसी पैसे वाले की बपौती है। यहां पर तो वो हर इंसान नेता बन सकता है, जो लोकप्रिय हो। देहरादून से खबर है कि हाल ही में यहां निकाय चुनाव में चाऊमिन, चाट और आइसक्रीम का ठेला लगाने वाले सुनील उनियाल गामा नाम के शख्स की किस्मत का सितारा ऐसे चमका कि वह भाजपा के टिकट पर न केवल चुनाव जीता बल्कि देहरादून के महापौर भी बन गया। इसी के साथ मध्यप्रदेश के कटनी शहर की कमला जान याद आ गईं, जो देश की पहली किन्नर महापौर बनी थीं।
 
 
आपको यह भी बोलने का हक है कि जब नरेन्द्र दामोदर मोदी 'चायवाला' होकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकते हैं तो फिर एक 'ठेलेवाला' या फिर एक 'किन्नर' महापौर की कुर्सी पर क्यों नहीं बैठ सकता? असल में मोदी ने केवल चाय ही नहीं बेची बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़कर पूरे देश में भटके और राजनीति कैसे की जाती है इसके भी गुर सीखे। लिहाजा, वाकपटुता के बूते पर उनका शीर्ष पर पहुंचना कोई हैरत की बात नहीं है।
 
हैरत इसकी है कि देहरादून में ठेठ सड़क पर अपने फेफड़ों में धूल-मिट्‍टी समेटने वाला एक आम इंसान यानी सुनील उनियाल गामा इतना लोकप्रिय हो गया कि महापौर तक बन गया। दूसरी तरफ कटनी के लोगों ने साल 2000 जनवरी में कमला जान नाम की किन्नर को न केवल चुनाव जितवाया बल्कि महापौर की कुर्सी पर आसीन करवा दिया।
 
आज की युवा पीढ़ी भले ही कमला जान से परिचित न हो, इसीलिए उन्हें बताना जरूरी है कि मध्यप्रदेश की जनता ने दो ऐसे काम किए हैं जिन्हें आज तक याद किया जाता है। कमला जान किन्नर थीं और देश की पहली महापौर बनीं जबकि शबनम मौसी नाम की किन्नर मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के सोहागपुर निर्वाचन क्षेत्र से 20 साल पहले उपचुनाव में निर्दलीय विधायक के रूप में चुनी गई थीं। उन्हें भी देश की पहली महिला किन्नर बनने का तमगा हासिल है।
 
 
राजनीतिक पार्टियों को किन्नर कमला जान का महापौर बनना रास नहीं आया और उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटा दिया लेकिन ढाई साल के कार्यकाल की उपलब्धियों का ही नतीजा था कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने 27 सितंबर 2002 को अपने फैसले में किन्नर कमला जान को महापौर पद से हटाने के जिला जज के आदेश पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के ठीक एक महीने पहले कमला को जिला जज ने हटा दिया था।
 
उस समय यह कहा गया था कि वे एक महिला न होते हुए महिलाओं के लिए आरक्षित पद के लिए चुनाव नहीं लड़ सकती थीं लिहाजा उन्हें महापौर जैसे पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है लेकिन तब कमला जान के वकील ने यह दलील दी कि भारतीय कानून के तहत किन्नर का लिंग निर्धारित करने का प्रावधान नहीं है। महापौर के पद रहते हुए कमला ने कटनी शहर को ढाई साल बहुत सख्ती से चलाया और लोकहित के काम किए थे।
 
 
बहरहाल, जो चीजें सामने दिख रही हैं, उससे साफ जाहिर है कि एक सड़कछाप इंसान और एक किन्नर भी निकाय चुनाव जीतकर महापौर बन सकता है। यही नहीं, एक किन्नर भी विधानसभा भी कुर्सी तक पहुंच सकता है। मध्यप्रदेश में इन दिनों विधानसभा चुनाव का प्रचार शबाब पर है। 
 
मध्यप्रदेश की कुल 230 विधासभा सीटों के लिए बुधवार, 28 नवंबर 2018 को मतदान होना है जिसमें इंदौर जिले की 9 विधानसभा सीटें भी शामिल हैं। क्षेत्र क्रमांक 2 में कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों को चुनौती देने के लिए 29 साल की किन्नर बाला वेशवार भी मैदान में हैं। बाला जोर-शोर से प्रचार कर रही हैं और प्रचार के दौरान बरकती सिक्के भी बांटकर लोगों का दिल जीत रही हैं। इस विधानसभा में जनता ने किसे पसंद किया, इसका पता तो 11 दिसंबर को नतीजे घोषित होने के बाद ही चलेगा।
 
सनद रहे कि मध्यप्रदेश में 4 करोड़ से ज्यादा लोग नई सरकार का भाग्य तय करेंगे। इन 4 करोड़ में 1,286 किन्नर वोटर भी हैं। मध्यप्रदेश चीफ इलेक्ट्रोरल ऑफिसर बीएल कांताराव के अनुसार पिछले चुनाव की तुलना में 31 जुलाई तक फाइनल हुई मतदाता सूची में 300 किन्नर मतदाता के रूप में बढ़े हैं। भले ही मतदाताओं के रूप में किन्नरों का आंकड़ा राई बराबर भी नहीं है लेकिन अकेले इंदौर को देखें तो यहां की जनता ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।