भाई दूज के पर्व पर केदारनाथ, यमुनोत्री के कपाट शीतकाल के लिए बंद
गोपेश्वर/ उत्तरकाशी। उत्तराखंड के उच्च हिमालयीन क्षेत्र में स्थित विश्वप्रसिद्ध केदारनाथ और यमुनोत्री धामों के कपाट मंगलवार को भाई दूज के पावन पर्व पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए।
बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के उपाध्यक्ष अशोक खत्री ने बताया कि रूद्रप्रयाग जिले में स्थित भगवान शिव को समर्पित केदारनाथ मंदिर के कपाट परम्परागत विधि विधान व पूजा अर्चना के साथ ही सुबह साढ़े 8 बजे शीतकाल के लिए बन्द कर दिए गए।
मुख्य पुजारी केदार लिंग ने कपाट बंद होने की पूजा संपन्न कराई। इस मौके पर मंदिर परिसर में करीब 1200 श्रद्धालुओं के साथ ही मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह, रूद्रप्रयाग के पुलिस अधीक्षक अजय सिंह मौजूद रहे।
इस दौरान जम्मू-कश्मीर लाईट इन्फैंट्री बैंड की धुनों से केदारपुरी गुंजायमान रही। जय बाबा केदारनाथ, बम—बम भोले के उदघोष के साथ श्री केदारनाथजी की पंचमुखी विग्रह मूर्ति को लेकर डोली ने मंदिर से प्रस्थान किया। विभिन्न पडावों से गुजरते हुए डोली 31 अक्टूबर को केदारनाथ के शीतकालीन प्रवास स्थल उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचेगी।
उधर, उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री धाम के कपाट भी मंगलवार को दोपहर 12:25 बजे अभिजीत मुहूर्त में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूरे विधि विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कपाट बंद होने के मौके पर मंदिर में बहुत से श्रद्धालुओं के साथ जिलाधिकारी डॉ आशीष चौहान भी मौजूद थे।
परंपरा के अनुसार, भैया दूज पर सुबह यमुना के शीतकालीन प्रवास खुशीमठ से पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ मां यमुना के भाई भगवान शनिदेव की डोली उन्हें लेने के लिए यमुनोत्री धाम पहुंची। तीर्थपुरोहितों द्वारा विधि विधान के साथ हवन, पूजा अर्चना के बाद कपाट बंद किए गए और शनिदेव की डोली की अगुआई में मां यमुना की उत्सव डोली अपने शीतकालीन प्रवास खुशीमठ के लिए रवाना हुई।
शाम को मां यमुना की डोली खुशीमठ पहुंची जहां पूजा अर्चना के बाद मां यमुना अपने शीतकालीन प्रवास मंदिर में विराजमान हुई। दुनिया भर में गढ़वाल हिमालय के चार धामों के नाम से प्रसिद्ध इन धामों में से 3 के कपाट अब तक शीतकाल के लिए बंद हो चुके हैं जबकि चौथे अंतिम बद्रीनाथ धाम के कपाट 17 नवंबर को बंद होंगे। गंगोत्री मंदिर के कपाट कल अन्नकूट पर्व पर बंद हुए थे।
सर्दियों में भीषण ठंड और भारी बर्फवारी की चपेट में रहने वाले चारों धामों के कपाट अक्टूबर-नवंबर में श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते हैं, जो अगले वर्ष अप्रैल-मई में दोबारा खुलते हैं।