• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Dawoodi Bohra community, women
Written By
Last Updated : सोमवार, 24 सितम्बर 2018 (23:11 IST)

दाऊदी बोहरा समुदाय की महिलाओं के खतना प्रथा के खिलाफ याचिका संविधान पीठ को भेजी

दाऊदी बोहरा समुदाय की महिलाओं के खतना प्रथा के खिलाफ याचिका संविधान पीठ को भेजी - Dawoodi Bohra community, women
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दाऊदी बोहरा मुस्लिमों में प्रचलित महिलाओं के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को 5 न्यायाधीशों वाली एक संविधान पीठ को भेज दी।

 
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने दाऊदी बोहरा वीमन्स एसोसिएशन फॉर रिलीजियस फ्रीडम (डीबीडब्ल्यूआरएफ) की दलीलों पर विचार किया कि महिलाओं के खतना की प्रथा दाऊदी बोहरा समुदाय में सदियों से है और इसकी वैधता का परीक्षण एक बड़ी पीठ को करना चाहिए कि क्या यह अनिवार्य धार्मिक प्रथा है, जो संविधान के तहत संरक्षित है?
 
केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार के पुराने रुख को दोहराया था कि वह इस प्रथा के खिलाफ है, क्योंकि इससे मौलिक अधिकारों का हनन होता है। उन्होंने कहा था कि यह अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और करीब 27 अफ्रीकी देशों में प्रतिबंधित है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 25 का भी उल्लेख किया था जिसमें कहा गया है कि अगर कोई धार्मिक प्रथा लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के खिलाफ जाती है तो इसे रोका जा सकता है।
 
वेणुगोपाल ने एफजीएम की प्रथा के खिलाफ दिल्ली की वकील सुनीता तिवारी की जनहित याचिका को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने की डीबीडब्यूआरएफ की दलीलों का सोमवार को समर्थन किया। डीबीडब्ल्यूआरफ का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी कर रहे थे। न्यायालय ने केंद्र समेत पक्षकारों के लिखित कथन पर विचार किया और कहा कि वह याचिका को 5 सदस्ईय संविधान पीठ के पास भेजने के लिए आदेश देगी।
 
मामले को संविधान पीठ के पास भेजने पर निराशा जाहिर करते हुए अधिवक्ता और एनजीओ 'वी स्पीक आउट' की संस्थापक मासूमा रानालवी ने कहा कि एफजीएम के संवैधानिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले मुद्दे से धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में इस भेदभावपूर्ण प्रथा को जारी रखने के अधिकार की ओर ले जाने का प्रयास है।
 
उन्होंने कहा कि यह साफतौर पर मामले में फैसले में विलंब करने के इरादे से किया गया है जिसमें 3 न्यायाधीशों की पीठ पहले ही विस्तार से दलीलें सुन चुकी है जिसके समक्ष यह लंबित है। इससे पहले डीबीडब्ल्यूआरएफ ने कहा था कि अदालतों को जनहित याचिका के माध्यम से महिलाओं के खतना की सदियों पुरानी धार्मिक प्रथा की संवैधानिकता पर फैसला नहीं करना चाहिए। (भाषा)