Lilavati Hospital black magic : मुंबई के प्रतिष्ठित लीलावती अस्पताल से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां मौजूदा ट्रस्टियों ने दावा किया है कि अस्पताल परिसर में काला जादू किया जा रहा था। ट्रस्टियों के कार्यालय के फर्श के नीचे से 8 कलश बरामद हुए हैं, जिनमें इंसानी हड्डियां, बाल और काले जादू में इस्तेमाल होने वाला सामान मिला है। इस घटना ने न केवल अस्पताल की साख पर सवाल उठाए हैं, बल्कि भारत में अंधविश्वास और काले जादू की प्रथा की गहरी पैठ को भी एक बार फिर रेखांकित किया है।
लीलावती अस्पताल के ट्रस्टी प्रशांत मेहता और कार्यकारी निदेशक परमबीर सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि यह खुलासा तब हुआ, जब पूर्व ट्रस्टियों पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जांच के दौरान उनके केबिन की खुदाई की गई। खुदाई में मिले इन कलशों को देखकर ट्रस्टियों ने आरोप लगाया कि यह काला जादू का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मौजूदा बोर्ड को नुकसान पहुंचाना या उनकी साख को कमजोर करना हो सकता है। इस मामले की शिकायत बांद्रा पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई है, और कोर्ट ने भी जांच शुरू कर दी है।
भारत में अंधविश्वास का बोलबाला: यह घटना भारत में अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के प्रति लोगों की आस्था को उजागर करती है। देश के कई हिस्सों में, खासकर ग्रामीण इलाकों में, काला जादू आज भी बदला लेने, संपत्ति हासिल करने या व्यक्तिगत दुश्मनी को सुलझाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और असम जैसे राज्यों में काले जादू के नाम पर हिंसक घटनाएं आए दिन सुर्खियां बनती हैं। हाल ही में ओडिशा के नुआपाड़ा जिले में एक व्यक्ति को काला जादू करने के संदेह में जिंदा जला दिया गया था, जो इस प्रथा की भयावहता को दर्शाता है।
शहरी क्षेत्रों में भी यह अंधविश्वास अपनी जड़ें जमाए हुए हैं। मुंबई जैसे महानगर में लीलावती अस्पताल जैसी आधुनिक संस्था में काले जादू का मामला सामने आना इस बात का सबूत है कि शिक्षा और विकास के बावजूद कुछ लोग तंत्र-मंत्र पर भरोसा करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रथा न केवल अज्ञानता का परिणाम है, बल्कि कई बार व्यक्तिगत लाभ या सत्ता की चाहत से भी जुड़ी होती है।
काला जादू एक खतरनाक प्रथा: काला जादू, जिसे तंत्र-मंत्र या टोने-टोटके के नाम से भी जाना जाता है, भारत में सदियों से चली आ रही एक परंपरा है। कुछ लोग इसे अलौकिक शक्तियों से जोड़ते हैं, तो कुछ इसे मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का तरीका मानते हैं। इस प्रथा में मानव हड्डियां, बाल, राख और अन्य वस्तुओं का इस्तेमाल आम है, जैसा कि लीलावती अस्पताल के मामले में देखने को मिला। पुणे में हाल ही में एक महिला को तांत्रिक ने बच्चा पैदा करने के लिए मानव हड्डियों का पाउडर खाने को मजबूर किया था, जिससे इस प्रथा का क्रूर चेहरा सामने आया।
मनोवैज्ञानिक डॉ. अनिता शर्मा कहती हैं, “काला जादू लोगों के डर और असुरक्षा की भावना पर काम करता है। यह एक तरह का मानसिक खेल है, जो समाज में जागरूकता की कमी के कारण फल-फूल रहा है।” वहीं, पुलिस और कानून व्यवस्था भी इस तरह के मामलों को गंभीरता से ले रही है। महाराष्ट्र सरकार ने काले जादू और अंधविश्वास के खिलाफ सख्त कानून बनाए हैं, लेकिन लीलावती जैसी घटनाएं बताती हैं कि इनका असर अभी सीमित है।
लीलावती अस्पताल का यह मामला अभी जांच के दायरे में है। ट्रस्टियों का कहना है कि पूर्व ट्रस्टियों ने न केवल काला जादू किया, बल्कि 1,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का गबन भी किया। इस घटना ने समाज से एक सवाल पूछा है- क्या हम आधुनिकता की राह पर चलते हुए भी अंधविश्वास की बेड़ियों से मुक्त हो पाएंगे? जब तक शिक्षा और जागरूकता इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचेगी, तब तक काले जादू जैसी प्रथाएं हमारे समाज का हिस्सा बनी रहेंगी