नई दिल्ली। वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार की शिकार और अपने परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के लिए न्याय की तलाश कर रही बिलकिस बानो ने इस मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट के फैसले की समीक्षा के लिए बुधवार को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और कहा कि समय से पहले दोषियों की रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोरकर रख दिया है।
दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका के अलावा उन्होंने एक अलग याचिका भी दायर की है, जिसमें एक दोषी की याचिका पर शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 के आदेश की समीक्षा की मांग की गई है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से 9 जुलाई, 1992 की अपनी नीति के तहत दोषियों की समय से पहले रिहाई की याचिका पर 2 महीने के भीतर विचार करने को कहा था।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने वकील शोभा गुप्ता की उन दलीलों पर गौर किया कि पीड़िता ने खुद दोषियों को सजा में छूट देने तथा उनकी रिहाई को चुनौती दी है तथा मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।
उन्होंने कहा कि सजा में छूट के खिलाफ ऐसी ही अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी अब संविधान पीठ का हिस्सा हैं। सीजेआई ने कहा, सबसे पहले पुनर्विचार याचिका की सुनवाई होगी। इसे न्यायमूर्ति रस्तोगी के समक्ष पेश करने दीजिए।
जब बानो की वकील ने कहा कि मामले की सुनवाई खुली अदालत में की जानी चाहिए तो पीठ ने कहा, केवल संबंधित अदालत उस पर फैसला कर सकती है। सीजेआई ने कहा कि वह इस मुद्दे को सूचीबद्ध करने को लेकर शाम को फैसला लेंगे।
इससे पहले, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा था कि वह मामले में दोषियों को सजा में छूट देने तथा उन्हें रिहा करने को चुनौती देने वाली, महिला संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन की याचिका पर सुनवाई करेगी।
सामूहिक दुष्कर्म के इस मामले में 2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या का मामला भी शामिल है। गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद भड़के दंगों के दौरान बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। उसके परिवार के जिन सात सदस्यों की हत्या की गई थी, उसमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी।
गुजरात सरकार ने सजा से माफी की अपनी नीति के तहत मामले में 11 दोषियों की रिहाई को मंजूरी दे दी थी, जिसके बाद 15 अगस्त को वे गोधरा उप-कारागार से रिहा हो गए थे। वे 15 साल से अधिक समय तक जेल में रहे थे।
बानो ने 15 अगस्त को दोषियों की रिहाई के लिए सजा में दी गई छूट के खिलाफ अपनी याचिका में कहा कि राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून की आवश्यकता को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए एक यांत्रिक आदेश पारित किया।
उन्होंने याचिका में कहा, बिलकिस बानो जैसे बहुचर्चित मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोरकर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देशभर में कई आंदोलन हुए हैं। याचिका में अपराध का सूक्ष्म विवरण दिया गया है और इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता बानो और उनकी बड़ी बेटियां इस अचानक घटनाक्रम से सदमे में हैं।
याचिका में एक गर्भवती महिला के साथ कई बार सामूहिक बलात्कार के इस देश के अब तक के सबसे जघन्य अपराध के सभी दोषियों (प्रतिवादी संख्या 3-13) की समय से पहले रिहाई चौंकाने वाली खबर है।
दोषियों की समय पूर्व रिहाई के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, एक स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा तथा तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने पहले ही जनहित याचिकाएं दायर कर रखी हैं।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)