राजवाड़ा टू रेसीडेंसी
बात यहां से शुरू करते हैं : सत्ता के शीर्ष यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फिर अपने तीखे तेवर दिखाना शुरू कर दिया है। प्रदेश की शीर्ष नौकरशाही के मामले में नरम रवैया रखने के लिए ख्यात मुख्यमंत्री ने मैदानी अमले के मामले में अब जो सख्ती दिखाना शुरू की है, उससे सीधा संदेश यही निकल रहा है कि निचले स्तर की नौकरशाही के कारण यदि सरकार या पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचेगा और यदि हम पर जनता उंगली उठाने लगेगी तो उसे वे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। पिछले दिनों राजगढ़ में जिस अंदाज में उन्होंने जिला आपूर्ति अधिकारी और आपूर्ति निरीक्षक को मंच से ही निलंबित कर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और गिरफ्तार करने के निर्देश दिए, वह मुख्यमंत्री के इस इरादे का परिचायक है। देखना यह है कि यह सख्ती आखिर कितने दिन बरकरार रहती है?
बंगाल चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले मध्यप्रदेश के 3 नेताओं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और प्रदेश के गृहमंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा की उत्तरप्रदेश और उत्तरांचल के चुनाव में क्या भूमिका रहेगी, इस पर सबकी नजर है। चर्चा यह भी है कि अब जबकि चुनाव में बहुत ही कम समय शेष है, इन नेताओं की भूमिका आखिर क्यों तय नहीं हो पाई है? वैसे तीनों के शुभचिंतक इसे बंगाल के नतीजों से जोड़कर भी देखने में भी परहेज नहीं कर रहे हैं। तीनों दिग्गज चुनावी रणनीति के विशेषज्ञ माने जाते हैं और समय-समय पर अपनी उपयोगिता भी सिद्ध कर चुके हैं। इस बार जरूर तीनों को मौके का इंतजार है।
श्रीनिवास तिवारी को हराकर 2003 में पहली बार विधायक बने गिरीश गौतम अब विधानसभा अध्यक्ष के उसी पद पर आसीन हैं जिस पर कभी तिवारीजी आसीन हुआ करते थे। संसदीय प्रणाली के वे बहुत अच्छे ज्ञाता हैं और सदन के अंदर व बाहर जिस तरह की भूमिका में वे इन दिनों हैं, उसकी बड़ी ही चर्चा है। सिरोंज के एक मामले में स्पीकर की सख्ती के चलते ही सरकार को न चाहते हुए भी जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को निलंबित कर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने का निर्णय लेना पड़ा। सदन के बाहर वे एक सक्रिय राजनेता की भूमिका में नजर आ रहे हैं और रीवा के अलावा बुंदेलखंड से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णयों में भी उनकी भागीदारी दिखने लगी है। आपको याद आ गया होगा कि जब श्रीनिवास तिवारी स्पीकर थे, तब रीवा में तो वही होता था, जो वे चाहते थे। तब दिग्विजय सिंह भी कहते थे कि रीवा में तो वही होगा, जो पंडितजी चाहेंगे। अब भी कुछ-कुछ ऐसा लगने लगा है।
नरेंद्र सिंह तोमर इन दिनों बेहद लो प्रोफाइल में हैं। जिस अंदाज में भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया को तवज्जो मिल रही है, उसके मद्देनजर तोमर का यह फैसला बिलकुल सही लग रहा है। नेता, नौकरशाह और कार्यकर्ता भी इसे समझ रहे हैं और यही कारण है कि जब भी ग्वालियर-चंबल संभाग के 8 जिलों से जुड़ा कोई मुद्दा होता है तो उनकी निगाहें बरबस ही सिंधिया की ओर घूम जाती हैं। अब तो खुलकर यह बात होने लगी है कि यहां अभी तो जो सिंधिया चाहेंगे, वही होगा। ग्वालियर रेंज के आईजी अविनाश शर्मा की सेवानिवृत्ति के बाद वहां जिस तरह आदेश जारी होने के बाद ताबड़तोड़ श्रीनिवास वर्मा की पोस्टिंग को होल्ड पर रखवाया गया, उससे भी यह तो साफ हो ही गया कि अब 'सरकार' भी सिंधिया को समझने लगे हैं।
प्रदेश कांग्रेस का पुनर्गठन होना है और इस बार यह तय माना जा रहा है कि नई बॉडी 25-30 लोगों की ही होगी। कहा जा रहा है कि इस बॉडी के नाम लगभग तय हो चुके हैं। जब ऐसा है तो फिर आखिर देर किस बात की। पता चला है कि नई बॉडी में अपने समर्थकों के लिए कोई अवसर न देख पार्टी के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं ने दिल्ली दरबार में यह कहते हुए दस्तक दे दी है कि पहले पुरानी कार्यकारिणी तो भंग हो जाए, उसी के बाद नए नामों पर गौर करना चाहिए। गेंद फिर कमलनाथ के पाले में है और ऐसा बताया जा रहा है कि विदेश यात्रा से लौटने के बाद पहले वे पुरानी कार्यकारिणी को भंग करेंगे और इसके बाद ही नई बॉडी आकार लेगी। वैसे साहब के नजदीकी लोग तो कह रहे हैं कि सब कुछ साहब के मुताबिक ही हो रहा है।
वीरा राणा और पल्लवी जैन दोनों बहुत वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं और अपनी निष्पक्ष व पारदर्शी कार्यशैली के कारण इनकी एक अलग पहचान भी है। अपने काम से मतलब रखती हैं और मातहतों से भी इनका तालमेल सामान्यत: अच्छा ही रहता है। लेकिन इन दिनों पता नहीं क्यों ये दोनों अफसर अपने से बहुत जूनियर और उपसचिव स्तर के अधिकारी नंदकुमारम और संजीव सिंह से बेहद नाराज हैं। दोनों जूनियर अफसर इसका कारण भी समझ नहीं पा रहे हैं। संजीव सिंह तो वर्तमान हालात में केंद्र में प्रतिनियुक्ति की संभावनाएं भी तलाशने लगे हैं जबकि नंदकुमारम को राणा अक्सर निशाने पर लेती रहती हैं।
सुधीर सक्सेना की मध्यप्रदेश के नए डीजीपी के रूप में ताजपोशी रोकने के लिए आईपीएस अफसरों का एक वर्ग अभी से सक्रिय हो गया है। इन अफसरों ने मध्यप्रदेश में सत्ता के शीर्ष तक यह बात अलग-अलग माध्यमों से पहुंचाना शुरू कर दी है कि चूंकि सक्सेना के तार सीधे दिल्ली दरबार से जुड़े हुए हैं इसलिए वे आपके लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं रहेंगे। इन अफसरों ने अपना पक्ष मजबूत करने के लिए प्रदेश के कुछ दिग्गज मंत्रियों को भी भरोसे में लिया है। ये मंत्री, मुख्यमंत्री के बेहद विश्वासपात्र हैं और प्रशासन या पुलिस से जुड़े मामलों में इनकी राय को मुख्यमंत्री हमेशा गंभीरता से लेते हैं। वैसे शिवराज सिंह चौहान की खासियत यह है कि यदि उन्हें पता चल जाए कि मध्यप्रदेश से जुड़े किसी मामले में केंद्र के किसी दिग्गज नेता की रुचि है तो वे खुद ही बैकफुट पर आ जाते हैं।
चलते-चलते
कांग्रेस का राष्ट्रीय सचिव और उत्तरप्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद से पूर्व विधायक सत्यनारायण पटेल तो वहां रात-दिन एक किए ही हुए हैं। पता चला है कि उनका उड़नखटोला भी प्रियंका गांधी की सेवा में लगा हुआ है।
पुछल्ला
सुनने में आ रहा है कि वरिष्ठ आईएएस अधिकारी स्मिता भारद्वाज को मंत्रालय में अपनी नई पदस्थापना रास नहीं आ रही है। अपनी पदस्थापना का लंबा समय मध्यप्रदेश के बाहर या इंदौर में गुजारने वालीं भारद्वाज को इंदौर में ही किसी नई भूमिका की तलाश है।