अदम्य साहस के 5 वर्ष - 29 सितंबर की सुबह आतंकियों के ठिकाने हो गए थे राख में तब्दील
18 सितंबर 2016 की रात मुट्ठीभर आतंकियों ने भारतीय सेना के कैंप उरी सेक्टर में घुसकर देश के जवानों को लहूलुहान कर दिया था। पूरे देश में आक्रोश का माहौल था। देश के वीर सपूतों को इस तरह घर में घुसकर मारने का अंजाम क्या होगा इसका उन्हें अंदाजा नहीं था। देश-दुनिया में आतंकियों के खिलाफ गुस्सा फूट रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए कहा था, हमलावर बेखौफ नहीं जाएंगे, उन्हें माफ नहीं किया जाएगा। हमारे 18 जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा।' देश के वीर सपूतों पर हए आतंकी हमले से गला रूदन से भर गया था। इसके बाद हमले की प्रतिक्रिया में 28-29 सितंबर 2016 को जवाबी हमले की बारी आई। 28 सितंबर की रात जहां समूचा देश सो रहा था वहीं देश के जवान मिशन पर निकल चुके थे। और 29 सितंबर को नए भारत का सूर्योदय हुआ।
साल 2018 से इस ऐतिहासिक दिन को सर्जिकल स्ट्राइक डे के रूप में मनाया जा रहा है। बहादुरी की पराकाष्ठा लिखने वाले शूरवीरों ने आतंकियों को उनके ही घर में घुसकर कतरा-कतरा कर दिया था। आज उस अदम्य साहस की पांचवी वर्षगांठ समूचा देश सर्जिकल स्ट्राइक डे के रूप में मना रहा है।
45 आतंकियों को किया ढेर
सर्जिकल स्ट्राइक किसी युद्ध से कम नहीं था। ये उन चार आतंकियों का खामियाजा था जो आतंकियों को बड़ी कौम को भारत के वीर सपूतों पर हमला करने के लिए भुगतना पड़ा था। यह साहस बहुत जरूरी था कि अगर हिंदुस्तान के सब्र को छेड़ेंगे तो हम छोड़ेंगे नहीं। फिर क्या...कुछ ऐसा ही हुआ। 28-29 सितंबर की रात को भारतीय सेना ने अपने विशेष बलों का प्रयोग करते हुए लाइन ऑफ कंट्रोल को पार किया। और पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी लॉन्च पैड पर सर्जिकल स्ट्राइक कर उन्हें तहस-नहस कर दिया। सर्जिकल स्ट्राइक के तहत आतंकियों के करीब 6 लॉन्च पैड तबाह कर दिए गए और 45 आतंकियों को मौत के घाट उतारा। 150 कमांडो की मदद से सर्जिकल स्ट्राइक ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था। आतंकियों के कैंप में 3 किमी अंदर तक उनके ही घर में घुसकर इसे अंजाम दिया गया था। रात करीब 12 बजे शुरू हुआ ऑपरेशन सुबह करीब 4:30 बजे तक चला था। पूरे
ऑपरेशन पर दिल्ली मुख्यालय से नजर रखी जा रही थी। शायद किसी को अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह समूचे देशवासियों के लिए नए भारत की कहानी होगी। ये एक देश का जवाब था, स्वाभिमान का जवाब था हौसले की मिसाल थी, हिम्मत का जवाब था।
साल 2002 के बाद दूसरा बड़ा आतंकी हमला
साल 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे उस दौरान जम्मू-कश्मीर के कालचुक में आतंकी हमला हुआ था। हमले में सैनिक और उनके परिवार सहित करीब 30 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं साल 2015 में आतंकियों ने सेना के काफिले पर हमला किया था। इस हमले में करीब 20 जवान शहीद हो गए थे। और 11 जवान घायल हो गए थे। हालांकि इसके बाद वायु सेना के साथ मिलकर संयुक्त कार्रवाई की गई। और म्यांमार की धरती पर जाकर विद्रोहियों को गोलियों से भूंद दिया था । जब-जब आतंकियों ने भारत देश पर हमला किया है उन्हें करारा जवाब मिला है। जहां 2016 में हुए आतंकियों के हौसले बुलंद होने लगे थे। पहले 2015 में बड़ा आतंकी हमला, इसके बाद पठानकोट में आतंकी हमला और उरी अटैक। पर अब यह सहनीय नहीं था।
चंद आतंकी जिन्होंने 18 जवानों को मौत के घाट उतार दिया। आतंकी हमला नई बात नहीं थी लेकिन आतंकी द्वारा देश में घुसकर मौत का तांडव करना...गुस्सा उबलना लाजमी था। उरी अटैक के ठीक 10 दिन बाद हमला करने वाले आतंकियों के अंश को 4 घंटो में इस तरह साफ करा कि मात्र राख रह गई थी। और सही मायने में शूरवीरों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।