Mahabharat 29 April Episode 65-66 : श्रीकृष्ण को बंदी बनाने का आदेश, कर्ण की सत्यकथा
बीआर चौपड़ा की महाभारत के 29 अप्रैल 2020 के सुबह और शाम के 65 और 66वें एपिसोड में शांतिदूत बने श्रीकृष्ण जब हस्तिनापुर पहुंचे तो दुर्योधन उनका अपमान करता है तो वे अपना विराट रूप प्रदर्शित कर देते हैं। दूसरी ओर कर्ण को उसके सत्य के बारे में जब पता चलता है तो वह श्रीकृष्ण से वचन लेते हैं।
सुबह के एपिसोड की शुरुआत विदुर और कुंती द्वारा श्रीकृष्ण का स्वागत कर उनका आदर सत्कार करना और उन्हें प्रेम पूर्वक भोजन कराना।
दूसरे दिन श्रीकृष्ण हस्तिनापुर के दरबार में शांतिदूत बनकर उपस्थित होते हैं। वहां धृतराष्ट्र पूछते हैं कि आप पांडवों की ओर से क्या प्रस्ताव लाए हैं। तब वे कहते हैं कि मैं उनकी ओर से कोई प्रस्ताव नहीं लाया हूं मैं तो स्वयं अपनी ओर से आया हूं और अपना ही प्रस्ताव लाया हूं और जो कुछ मैं स्वीकार कर लूंगा, वहीं पांडव भी स्वीकार कर लेंगे।
श्रीकृष्ण युद्ध की विभीषिका और कुल के नाश के बारे में बताकर युद्ध की जगह शांति की बात करते हैं और कहते हैं कि इंद्रप्रस्थ उन्हें लौटा दीजिए। यह कहकर वे बैठ जाते हैं। तब दुर्योधन सभा में खड़ा होकर ऊंची आवाज में कहता है कि मुझे यह शांति प्रस्ताव स्वीकार नहीं है। द्रोणाचार्य और भीष्म उसे समझाते हैं लेकिन दुर्योधन कहता है कि इंद्रप्रस्थ तो में नहीं दूंगा। वासुदेव के पास और कोई प्रस्ताव हो तो बताएं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरे पास एक और प्रस्ताव है। मैं पांडवों की ओर से पांच गांव मांग रहा हूं। वे उन्हें दे दें।
दुर्योधन ये प्रस्ताव भी ठुकरा देता है और कहता है कि मैं उन पांडवों को सुई की नोक जितनी भूमि भी नहीं दूंगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं, हे दुर्योधन अपनी माताश्री को अपने शव पर विलाप करने के लिए क्यूं आमंत्रित कर रहे हो? यह सुनकर दुर्योधन भड़क जाता है और कहता है कि यदि तुम दूत नहीं होते तो मैं तुम्हें बंदी बना लेता। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह प्रयत्न भी करके देख लो।
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तब दुर्योधन सैनिकों को आदेश देता है कि इस ग्वाले को बंदी बना लो। तभी श्रीकृष्ण के हाथ में चक्र आ जाता है। यह देखकर सभा डर जाती है, सैनिक पीछे हट जाते हैं और श्रीकृष्ण अपना विराट रूप प्रकट करते हैं। सभी उनके हाथ जोड़ कर खड़े हो जाते हैं। उन्हें वे ही देख पाते हैं जिनके पास दिव्य दृष्टि होती है, लेकिन बाकी सभी की आंखें चुंधिया जाती हैं।
बाद इसके कर्ण और दुर्योधन का संवाद होता है। कर्ण कहता है कि मेरे जीवन का लक्ष्य अर्जुन का वध है। कर्ण अपने अपमान की बात करता है। वह द्रोण, अर्जुन, भीम के द्वारा किए गए अपने अपमान के बारे में सोचता है। फिर कर्ण के सपने मैं उसके पिता सूर्यदेव आकर आगाह करते हैं कि इंद्र तुमसे दान में कवच-कुंडल मांगने आएंगे।
दूसरे दिन इंद्र ब्राह्मण वेश में उससे दान मांगने आते हैं और कर्ण उन्हें कवच-कुंडल दे देता है। बाद में इंद्र उसकी दानवीरता से प्रसन्न होकर उससे कहते हैं कि वर मांगो। लेकिन वह कहता है कि कुछ देने के उपरांत कुछ मांग लिया तो उसका अर्थ भंग हो जाएगा। फिर कर्ण कहता हैं कि आपकी जग में निंदा ना हो इसलिए आप मुझे शक्ति दीजिए। इंद्र उसे अपना अमोघ अस्त्र देकर कहते हैं कि तुम इसका प्रयोग एक बार ही कर सकते हो। फिर मेरा अस्त्र मेरे पास लौट आएगा।
शाम के एपिसोड में महात्मा विदुर के घर से श्रीकृष्ण विदा लेते हैं। तभी कर्ण वहां पहुंचकर श्रीकृष्ण से दुर्योधन की ओर से क्षमा मांगते हैं। कर्ण को श्रीकृष्ण एकांत में ले जाते हैं और उन्हें बताते हैं कि तुम्हारी माता कुंती है और तुम्हारे भाई पांचों पांडव और तुम्हारे ईष्ट देव ही तुम्हारे पिता है।
यह सुनकर कर्ण के पैरों तले की जमीन हिल जाती है। कर्ण कहता है कि मैं दुर्योधन का बहुत ऋणि हूं इसलिए मैं उन्हीं के पक्ष से युद्ध करूंगा। कर्ण बाद में श्रीकृष्ण से वचन लेता है कि आप मेरे वीरगति को प्राप्त होने तक मेरे अनुजों को यह राज मत बताना।...अंत में कौरव पक्ष युद्ध की रणनीति पर चर्चा करते हैं। भीष्म कौरव पक्ष की ओर से युद्ध करने के लिए अपनी शर्त बताते हैं।
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