Mahabharat war: कौरवों की ओर से ऐसे 4 योद्धा लड़ रहे थे जो चाहते थे जीत पांडवों की
Mahabharat ka yuddh: वे योद्धा जो कौरवों की ओर होकर भी कौरवों के नहीं थे
kurukshetra war: कौरवों की सेना पांडवों की सेना से बड़ी थी। कौरवों की सेना में एक से बढ़कर एक महारथी थी। हर तरह से कौरवों की सेना सक्षम थी। कौरवों की जीत पक्की थी लेकिन वे जीत नहीं सके क्योंकि इसके 3 कार थे। पहला कारण उनके बाद श्रीकृष्ण नहीं थे। दूसरा कारण उन्होंने अभिमन्यु का वध करके घोर गलती की थी और तीसरा कारण कुछ योद्धा कोरवों की ओर से युद्ध करने के बावजूद वे पांडवों की जीत की कामना करते थे। आओ जानते हैं इसी तीसरे कारण को।
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1. भीष्म पितामह : भीष्म पितामह चाहते थे कि धर्म की जीत हो इसके बावजूद वो अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ रहे थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान था। उन्होंने युद्ध में कोहराम मचा रखा था तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि पितामह से ही पूछो कि उनकी मृत्यु का राज क्या है। तब पितामह ने बताया कि मैं किसी किन्नर या स्त्री के साथ युद्ध नहीं कर सकता और उन पर बाण नहीं चला सकता। बस इसकी कारण उन्हें शरशय्या पर लेटना पड़ा। क्योंकि तब अर्जुन ने अपने आगे अम्बा नामक के एक किन्नर को लगा कर पीछे से भीष्म पितामह पर तीरों की बरसात कर दी थी।
2. शल्य मामा : महाभारत में शल्य तो पांडवों के मामा थे लेकिन उन्होंने कौरवों की ओर से लड़ाई-लड़ते हुए पांडवों को ही फायदा पहुंचाया था। दरअसल, शल्य ने जब हस्तिनापुर का राज्य में प्रवेश किया तो दुर्योधन ने उनका भव्य स्वागत किया। बाद में दुर्योधन ने उनको इमोशनली ब्लैकमेल कर उनसे अपनी ओर से लड़ने का वचन ले लिया। उन्होंने भी शर्त रख दी कि युद्ध में पूरा साथ दूंगा, जो बोलोगे वह करूंगा, परन्तु मेरी जुबान पर मेरा ही अधिकार होगा। दुर्योधन को इस शर्त में कोई खास बात नजर नहीं आई। शल्य बहुत बड़े रथी थे। उन्हें कर्ण का सारथी बनाया गया था। वे अपनी जुबान से कर्ण को हतोत्साहित करते रहते थे। यही नहीं प्रतिदिन के युद्ध समाप्ति के बाद वे जब शिविर में होते थे तब भी कौरवों को हतोत्साहित करने का कार्य करते रहते थे।
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3. द्रोणाचार्य : गुरु द्रोणाचार्य पांडवों के साथ ही कौरवों के भी गुरु थे। उन्होंने सभी को शिक्षा दी थी। उन्होंने ही अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का वचन दिया था। वे हस्तिनापुर के राजगुरु थे इसलिए उनका उत्तरादायित्व हस्तिनापुर के राजा और राजकुमार की ओर से युद्ध करने का था। वे धर्म अधर्म जानते थे इसलिए उनके मन में भी पांडवों की जीत की कामना थी।
4. कृपाचार्य : हस्तिनापुर के कौरवों के कुलगुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के मामा कृपाचार्य महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। महाभारत युद्ध के कृपाचार्य, गुरु द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह की जोड़ी थी। कृपाचार्य जिंदा बच गए 18 महायोद्धाओं में से एक थे। भीष्म और द्रोण के बाद उन्हें ही सेनापति बनाया गया था। वे भी यह चाहते थे कि युद्ध पांडव ही जीते क्योंकि वे सत्य के मार्ग पर थे। युद्ध में कर्ण के वधोपरांत उन्होंने दुर्योधन को बहुत समझाया कि उसे पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए किंतु दुर्योधन ने अपने किए हुए अन्यायों को याद कर कहा कि न पांडव इन बातों को भूल सकते हैं और न उसे क्षमा कर सकते हैं। युद्ध में मारे जाने के सिवा अब कोई भी चारा उसके लिए शेष नहीं है।
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