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Written By Author अनिल जैन

कद्दावर नेताओं की आखिरी पारी है इस बार का चुनाव

कद्दावर नेताओं की आखिरी पारी है इस बार का चुनाव - Last election for senior leaders
इस बार का आम चुनाव जहां कई बुजुर्ग दिग्गज राजनेताओं की आखिरी सियासी पारी का गवाह बनने वाला है, वहीं यह कुछ करिश्माई राजनीतिक दिग्गजों की छाया से मुक्त रहेगा। कई दिग्गज नेता पिछले चुनाव तक राजनीति में छाए रहे, आज उम्र के उस मुकाम पर पहुंच गए हैं कि अगला चुनाव लड़ना तो दूर, उसमें कोई भूमिका भी वे शायद ही निभा पाएं। 
 
अलबत्ता इस चुनाव पर उनकी कुछ न कुछ छाप जरूर होगी। इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जो राजनीति में अप्रासंगिक हो चुके हैं या अपनी ही पार्टी में हाशिए पर पटक दिए गए हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो अपने स्वास्थ्य या अन्य वजहों से अपनी भूमिका परदे के पीछे से ही निभाने को विवश है। इस तरह एक पीढ़ी या तो परिदृश्य बाहर हो गई है या धीरे-धीरे बाहर होती जा रही है और उसकी जगह नई पीढ़ी ने ली है।
 
दिलचस्प बात यह कि पुरानी पीढ़ी के ज्यादातर नेताओं ने अपनी विरासत अपने परिवार को ही सौंपी है। जहां तक देश की सबसे बड़ी और सत्तारूढ़ भाजपा की बात है, उसके सबसे ज्यादा नेताओं की सियासी पारी पर इस चुनाव में विराम लगता दिख रहा है। पार्टी ने अपने दो वरिष्ठतम नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के टिकट काट दिए हैं।
 
पार्टी नेतृत्व की मंशा भांपते हुए शांता कुमार, भगतसिंह कोश्यारी और भुवनचंद्र खंडूरी समेत कुछ अन्य नेताओं ने खुद ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। 75 वर्षीय मौजूदा लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का भी इस बार टिकट कटने के आसार हैं। भाजपा के ही विद्रोही नेता यशवंत सिन्हा को इस बार भी टिकट नहीं मिलने वाला है। वैसे भी उनकी उम्र 80 के आसपास है।
 
उधर कांग्रेस में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को चुनाव लड़ने के लिए मनाने के प्रयास हुए हैं, लेकिन अपनी उम्र का हवाला देकर उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। तमिलनाडु में एम. करुणानिधि और जे. जयललिता के निधन के बाद यह पहला आम चुनाव होगा। द्रविड़ राजनीति के इन दोनों दिग्गजों ने पिछले दशकों में न सिर्फ अपने सूबे की राजनीति को बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन के जरिए देश की राजनीति को भी गहरे तक प्रभावित किया था।
 
महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार पिछला चुनाव भी नहीं लड़े थे और इस बार भी अपने चुनाव लड़ने की संभावनाओं को खारिज कर चुके हैं। उनके संसदीय क्षेत्र बारामती से उनकी बेटी सुप्रिया सुले पिछले चुनाव में निर्वाचित हुई थीं और इस बार भी वे वहीं चुनाव लड़ेंगी। पंजाब के वयोवृद्ध नेता प्रकाशसिंह को भी उनकी उम्र अब चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दे रही है। वैसे भी वे अपनी विरासत अपने बेटे सुखबीर बादल को सौंप चुके हैं।
 
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा भी 85 की उम्र पार कर चुके हैं और यह शायद उनका अंतिम चुनाव होगा। हालांकि वे भी अपनी विरासत अपने बेटे को पहले ही सौंप चुके हैं। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठतम नेता मुलायम सिह यादव का रवैया विरासत के मामले में धुंधला रहा है, लेकिन इस बार भी उनका चुनाव लड़ना तय है। वैसे उनकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए माना जा सकता है कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा।
 
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला भी वैसे तो 80 पार कर चुके हैं लेकिन स्वास्थ्य के लिहाज से उनकी स्थिति बेहतर है। वे श्रीनगर से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। वे भी अपनी पार्टी की बागडोर बहुत पहले ही अपने बेटे उमर अब्दुल्ला को सौंप चुके हैं। भारतीय राजनीति के सर्वाधिक चर्चित किरदार लालू प्रसाद वैसे तो 70 साल के हैं, लेकिन बीमार हैं और जेल में हैं। अनुमान है कि जितने मुकदमे उन पर हैं, उनके चलते अब चुनाव तो वे शायद ही लड़ सकें। 
 
हालांकि उनके बेटे ने तेजस्वी यादव ने उनकी विरासत लगभग संभाल ली है, लेकिन अभी भी बिहार में विपक्षी महागठबंधन की राजनीति का वास्तविक सूत्र-संचालन जेल में रहते हुए लालू प्रसाद ही कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि नई पीढ़ी अपने इन बुजुर्ग कद्दावर नेताओं की जगह कैसे भरती है।