- आमिर अंसारी
उत्तर प्रदेश के कानपुर में बारावफात के मौके पर आई लव मोहम्मद लिखे बैनर का विवाद अब कई शहरों में फैल गया है। मुसलमान समुदाय के लोग पैगंबर मोहम्मद के नाम वाले बैनर के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर से शुरू हुआ आई लव मोहम्मद विवाद उत्तराखंड, तेलंगाना, गुजरात और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में फैल गया है। मुस्लिम समुदाय के सदस्य अपने पैगंबर से मोहब्बत जाहिर करने के लिए जुलूस निकाल रहे हैं और बैनर के साथ सड़कों पर उतर रहे हैं।
'आई लव मोहम्मद' पर कैसे शुरू हुआ विवाद?
पूरा विवाद कानपुर के रावतपुर में बारावफात के जुलूस (ईद मिलाद-उन-नबी) को लेकर शुरू हुआ। यह जुलूस 5 सितंबर को निकाला गया था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जुलूस के दौरान 'आई लव मोहम्मद' वाले बैनर लगाए जाने पर कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों ने आपत्ति जताई और इसे एक नई परंपरा बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह जानबूझकर उकसाने वाला कदम है।
मौके पर पहुंचकर कानपुर पुलिस ने दोनों पक्षों में समझौता करवाया। लेकिन 10 सितंबर को कानपुर पुलिस ने बारावफात जुलूस के दौरान एक सार्वजनिक सड़क पर कथित तौर पर 'आई लव मोहम्मद' लिखे बैनर लगाने के लिए नौ नामजद और 15 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
मुसलमान समुदाय ने इसका विरोध किया। एफआईआर दर्ज होने बाद यूपी ही नहीं, बल्कि कई और प्रदेशों में विरोध प्रदर्शन हुए। इस मामले पर कानपुर पुलिस का कहना है कि 'आई लव मोहम्मद' के बैनर बनाने या लगाने पर एफआईआर नहीं हुई, बल्कि तय स्थान से अलग हटकर टेंट लगाने पर मामला दर्ज किया गया।
कानपुर के डीसीपी वेस्ट दिनेश त्रिपाठी ने एक्स पर पोस्ट किए गए एक बयान में बताया, थाना रावतपुर में सैयद नगर मोहल्ले से बारावफात का एक परंपरागत जूलूस निकलना था। मोहल्ले के कुछ लोगों द्वारा परंपरागत स्थान से अलग स्थान पर हटकर एक टेंट लगा दिया गया और उस पर 'आई लव मोहम्मद' का एक बैनर लगा दिया गया, जिसका एक पक्ष के द्वारा विरोध किया गया।
उस सूचना पर रावतपुर थाने की पुलिस जब पहुंची तो टेंट लगाने वालों के द्वारा भी पुलिस के सामने विरोध किया गया। बाद में दोनों पक्षों की सहमति से टेंट और 'आई लव मोहम्मद' का बैनर परंपरागत स्थान पर लगवा दिया गया था।
डीसीपी दिनेश त्रिपाठी ने सोशल पोस्ट में यह भी लिखा कि एफआईआर 'आई लव मोहम्मद' लिखने या बैनर को लेकर नहीं की गई। उन्होंने लिखा, 'आई लव मोहम्मद' के लिखने या बैनर लगाने पर कोई एफआईआर नहीं की गई, बल्कि परंपरागत स्थान से अलग हटकर नए स्थान पर बैनर लगाने और जुलूस निकालने के दौरान इस पक्ष के द्वारा दूसरे पक्ष का बैनर फाड़ने पर हुई है।
मुस्लिम युवकों पर हिंदू धार्मिक पोस्टर फाड़ने का आरोप
एफआईआर में यह भी लिखा गया है कि अज्ञात मुस्लिम युवकों ने हिंदू धार्मिक पोस्टरों को फाड़ा, जिससे तनाव की स्थिति पैदा हो गई। रावतपुर थाने में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 196 और 299 के तहत की गई एफआईआर में दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और नफरत फैलाने के आरोप लगाए गए हैं।
कानपुर पुलिस का यह स्पष्टीकरण जब तक आता, तब तक कई प्रदेशों में आई लव मोहम्मद को लेकर प्रदर्शन होने लगे। सोशल मीडिया और वॉट्सऐप पर भी कई लोग 'आई लव मोहम्मद' की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं और स्टेटस डाल रहे हैं।
पुलिस कार्रवाई पर उठते सवाल
इस मामले पर मानवाधिकार कार्यकर्ता पुलिस के रवैए पर सवाल उठा रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद आरोप लगाते हैं, यह जो सरकार बार-बार ये कह रही है कि वह मुसलमानों की किसी भी अभिव्यक्ति को, जो उनकी शर्त पर हो मंजूर नहीं करेगी। 'आई लव मोहम्मद' वाले मामले में भी यही बहाना बनाया गया कि यह एक नई परंपरा है और इसे हम नहीं चलने देंगे।
उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से बात करते हुए कहा, पुलिस ने इस मामले पर अत्यधिक और गैरकानूनी तौर पर कार्रवाई की है। 'आई लव मोहम्मद' बैनर लगाने से या फिर 'आई लव मोहम्मद' के नारे लगाने से किसी कानून का उल्लंघन नहीं हो रहा है। इस तरह के नारे लगाने से किस शांति के भंग होने की आशंका है? तो सवाल उठता है कि किस नजर से इस कार्रवाई को जायज ठहरा जा सकता है।
अपूर्वानंद ने आरोप लगाया, पिछले 11 सालों से जो भारत में निजाम कायम हुआ है, वह मुसलमानों की हर भावना को दबाना चाहता है खासकर धार्मिक, सांस्कृतिक और यहां तक की धर्मनिरपेक्ष भावना को भी। अगर वह सीएए विरोधी प्रदर्शन करेंगे या जुलूस निकालेंगे, तो उनको गोली मार दी जाएगी। ये पूरी तरह से मुसलमानों की जिंदगी को कंट्रोल करना और दबाना है। हमने यह पिछले 11 सालों में देखा है। और, 'आई लव मोहम्मद' पर एफआईआर भी उसी सिलसिले की एक कड़ी है।
मुसलमानों ने लगाया भेदभाव का आरोप
कानपुर के बाद उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों और अब महाराष्ट्र, उत्तराखंड और गुजरात समेत कई राज्यों में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। मुसलमान समुदाय में कई लोगों का आरोप है कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है और धर्म के नाम पर उन्हें दबाने की कोशिश की जा रही है। कुछ जगहों पर हमला करने और तोड़फोड़ के आरोप में गिरफ्तारियां भी हुई हैं।
समाचार एजेंसी 'पीटीआई' की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर में कथित तौर पर अनधिकृत धार्मिक जुलूस निकालने, पुलिस कर्मियों पर हमला करने और सरकारी वाहनों में तोड़फोड़ करने के आरोप में 22 सितंबर को मुख्य आरोपी समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया गया।
पुलिस ने बताया कि रविवार (21 सितंबर) रात करीब आठ बजे काशीपुर के अलीखान चौक पर कुछ लोग अचानक वाल्मीकि बस्ती की ओर जुलूस निकालने लगे, उनके हाथों में 'आई लव मोहम्मद' के बैनर थे और वे नारे लगा रहे थे। पुलिस का कहना है कि जब जुलूस बढ़ने लगा, तो भीड़ ने हंगामा शुरू कर दिया। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन पर लाठियों और पत्थरों से हमला किया गया और सरकारी वाहनों में तोड़फोड़ की गई। इस दौरान एक पुलिसकर्मी के साथ मारपीट का भी आरोप लगा है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने 15 सितंबर को कानपुर पुलिस को टैग करते हुए एक्स पर लिखा, आई लव मोहम्मद, कानपुर पुलिस ये जुर्म नहीं है। अगर है, तो इसकी हर सजा मंजूर है। उन्होंने लिखा, तुम पर मैं लाख जान से कुर्बान या-रसूल, बर आएं मेरे दिल के भी अरमान या-रसूल।
समाजवादी पार्टी का कहना है कि पुलिस की विफलता के कारण विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। एसपी के मुताबिक, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बचाव करती है, चाहे वह आई लव राम हो या आई लव मोहम्मद।
बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने मीडिया से बात करते हुए पुलिस की कार्रवाई का बचाव किया और कहा कि अगर कोई पुलिस को निशाना बनाएगा या कानून का उल्लंघन करने की कोशिश करेगा, तो तुरंत कार्रवाई होगी।