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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 21 अगस्त 2023 (09:08 IST)

रोमियो-जूलिएट कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगी सरकार की राय

रोमियो-जूलिएट कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगी सरकार की राय - Supreme Court seeks government's opinion on Romeo Juliet law
-स्वाति बक्शी
 
Romeo-Juliet Law: भारतीय सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नाबालिगों के बीच यौन संबंधों को अपराध न मानने से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सरकार का रुख पूछा है। इसे आमतौर पर 'रोमियो और जूलिएट कानून' (romeo juliet law) कहा जाता है, जो दुनिया के कई देशों में लागू है। इस याचिका में दावा किया गया है कि 18 साल से कम उम्र के लाखों लड़के-लड़कियां अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध बनाते हैं, लेकिन कानूनी तौर पर यह अपराध है।
 
यह बलात्कार की श्रेणी में आता है। कानून के अनुसार कई मामलों में लड़का सजा का हकदार बनता है, लड़कियां गर्भवती हो जाती हैं और मां-बाप पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंचते हैं। याचिका नाबालिगों के बीच यौन संबंधों के मामले में बलात्कार से जुड़े कानून को चुनौती देती है।
 
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने राष्ट्रीय महिला आयोग समेत कानून व न्याय मंत्रालय और गृह मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया है। इस याचिका में दलील दी गई है कि किशोरों के पास इतनी क्षमता है कि वह जोखिम समझकर सही फैसला ले सकें। यह याचिका वकील हर्ष विभोर सिंघल ने दायर की है।
 
कई देशों में लागू 'रोमियो और जूलिएट कानून' नाबालिगों के बीच संबंधों के मामले में सुरक्षा देता है, अगर इसमें दोनों के बीच सहमति हो और उम्र का अंतर बहुत बड़ा न हो। सुप्रीम कोर्ट ने भारत के लिए इसी तरह के एक रोमियो-जूलिएट कानून की संभावनाएं तलाशते हुए सरकार की प्रतिक्रिया पूछी है, जो किसी किशोर लड़के को गिरफ्तारी सुरक्षा देता है, अगर उसकी उम्र लड़की से 4 साल से ज्यादा न हो।
 
फिलहाल भारत में बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए पॉक्सो यानी द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफंसेंस ऐक्ट, 2012 लागू है। इसके तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों की सहमति कोई मायने नहीं रखती। उनके साथ किसी भी तरह का यौन व्यवहार, यौन अपराध के दायरे में ही आता है। साथ ही, सेक्शन 375 के अंतर्गत, 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सहमति के साथ बनाया गया यौन संबंध भी बलात्कार है।
 
याचिका की मांग
 
इस याचिका में मांग रखी गई है कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 142 में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल करते हुए रिट या किसी और रूप में ऐसे निर्देश जारी करे, जो 16 से 18 बरस के किशोरों के बीच स्वेच्छा से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दे।
 
याचिका कहती है कि इस उम्र के किशोर, शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तौर पर इतने सक्षम होते हैं कि जोखिम समझ सकें, सोच-समझकर आजादी से फैसला ले सकें और यह समझ सकें कि वे अपने शरीर के साथ क्या करना चाहते हैं?
 
इस याचिका पर सरकार की प्रतिक्रिया बलात्कार से जुड़े कानून की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगी। यह वह मोड़ है, जहां तय होगा कि सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर नाबालिगों की क्षमताओं को स्वीकार करते हुए कानून में फेरबदल होगा या नहीं? इस याचिका पर बेंच ने कहा कि यह कानून का धुंधला हिस्सा है, एक शून्य, इसे दिशा-निर्देशों से भरने की जरूरत है कि कैसे 16 साल से ज्यादा और 18 से कम उम्र वालों के मामले में बलात्कार के कानून लागू होंगे, जिनके बीच सहमति है।
 
जस्टिस चंद्रचूड़ की पहल
 
दिसंबर 2022 में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कानूनी सुधार की गुंजाइश जताई थी ताकि पॉक्सो जैसे सख्त कानून की वजह से नाबालिगों के रिश्तों को हमेशा अपराध के दायरे में न रखा जाए। मुख्य न्यायाधीश का कहना था कि कईं हाई कोर्ट भी इस बारे में चिंता जता चुके हैं। 2019-2021 के बीच हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 में पता चला कि 39 फीसदी महिलाओं ने जब पहली बार यौन संबंध बनाए तो उनकी उम्र 18 साल से कम थी।
 
पॉक्सो ने सहमति की उम्र 16 से बढ़ाकर 18 कर दी। इंडियन पीनल कोड और दूसरे कानूनों में हुए संशोधनों ने पॉक्सो को ही मजबूत किया। इसका नतीजा यह हुआ कि ट्रॉयल कोर्ट में इन मामलों में सजा से बचने की बहुत कम गुंजाइश बचती है। ज्यादातर मामलों में परिवारों को नरमी की आस में उच्च न्यायालयों की शरण लेनी पड़ती है। सामाजिक और कानूनी, दोनों ही नजरिए से यह याचिका बहुत अहम है। फिलहाल गेंद सरकार के पाले में है जिसका रुख आगे की दिशा का इशारा देगा।
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