-विवेक कुमार
भारत इस साल मालदीव से अपने सैनिकों को वापस बुला लेगा। मालदीव के विदेश मंत्रालय ने पिछले हफ्ते कहा कि भारत अपने सैनिकों को वापस लेने पर राजी हो गया है। कई महीनों से जारी विवाद के बाद मालदीव के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत उसके यहां तैनात अपने सैनिकों को मई तक वापस बुला लेगा। दोनों देशों ने कहा है कि अब भारत सैनिकों की जगह असैन्य नागरिकों को तैनात करेगा।
दोनों देशों के बीच हुए समझौते का हवाला देते हुए मालदीव के विदेश मंत्रालय ने कहा कि मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों की वापसी 10 मार्च से शुरू हो जाएगी। पहली टुकड़ी 10 मार्च को वहां से चली जाएगी और बाकी सैनिक भी 10 मई तक चले जाएंगे।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बारे में कहा, 'दोनों देश आपसी सहमति से ऐसे समाधान पर पहुंचे हैं कि भारतीय विमान मानवीय सेवा के अभियान को जारी रख सकें।'
दबाव बना रहा था मालदीव
पिछले महीने ही भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफ्रीकी देश युगांडा की राजधानी कंपाला में मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर के साथ मुलाकात की थी। इसके बाद सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट में जमीर ने कहा कि एनएएम शिखर सम्मेलन के दौरान जयशंकर से मिलना खुशी की बात थी।
उन्होंने लिखा, 'हमने भारतीय सैन्यकर्मियों की वापसी के साथ-साथ मालदीव में चल रही विकास परियोजनाओं को पूरा करने में तेजी लाने और सार्क और एनएएम के भीतर सहयोग पर चल रही उच्च स्तरीय चर्चा पर विचारों का आदान-प्रदान किया।'
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुईज्जु को चीन का समर्थक माना जाता है और उन्होंने पिछले साल हुए चुनाव में भारत विरोध के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने अपना भारत विरोधी रुख बरकरार रखा और हाल ही में भारत को अपने सैनिक हटाने के लिए 15 मार्च तक की समय सीमा दी थी।
करीब 80 सैनिक
मालदीव में भारतीय सेना की एक छोटी सी टुकड़ी है। कुछ टोही विमानों के साथ यह टुकड़ी हिंद महासागर पर नजर रखती है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक नवीनतम सरकारी आंकड़े बताते हैं कि मालदीव में 88 भारतीय सैन्यकर्मी हैं।
भारतीय नौसेना का एक डोर्नियर विमान और 2 हेलीकॉप्टर मालदीव में तैनात हैं जो यहां-वहां फैले 200 छोटे द्वीपों से मुख्यतया मरीजों को इलाज के लिए अस्पतालों तक पहुंचाने का काम करते हैं। इसके अलावा ये विमान मालदीव के विशाल इकोनॉमिक जोन को अवैध मछली पकड़ने से भी बचाने के लिए इस्तेमाल होते हैं।
मालदीव में पिछले करीब 2 साल से 'इंडिया आउट' अभियान चल रहा है। इस अभियान के समर्थकों का कहना है कि भारत उनके देश के अंदरूनी मामलों में दखल दे रहा है और उनकी संप्रभुता प्रभावित हो रही है। ऑस्ट्रेलिया स्थित नेशनल सिक्यॉरिटी कॉलेज में सीनियर रिसर्च फेलो डॉ. डेविड ब्रूस्टर कहते हैं विपक्षियों की ये चिंताएं जायज नहीं हैं।
डीडब्ल्यू से बातचीत में डॉ. ब्रूस्टर ने कहा, 'विदेशी सैनिकों की तैनाती किसी भी देश के लिए हमेशा एक संवेदनशील मुद्दा होता है। यहां तो बात इसलिए भी अलग थी कि भारतीय सैनिकों को स्थानीय लोगों से छिपाकर रखा गया और मालदीव के लोगों को उनके काम के बारे में कभी ठीक से बताया नहीं गया।'
डॉ. ब्रूस्टर कहते हैं, 'मेरा अनुमान है कि जिन नागरिकों को भेजा जाएगा उनमें भारत के पूर्व सैनिक होंगे। वे लोग सेना के काम को जारी रखेंगे और इस बीच मालदीव के लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि वे खुद ये जिम्मेदारियां संभाल सकें। यह ऐसा समाधान है जो सबको रास आना चाहिए।'
चीन से बढ़ती नजदीकी
राष्ट्रपति बनने के बाद मुईज्जु ने अपना सबसे पहला दौरा चीन का ही किया था। उसके बाद चीन का एक जहाज मालदीव के दौरे पर भी गया। इस बीच भारत और मालदीव के संबंधों में तब तनाव और बढ़ गया जब वहां के तीन उप-मंत्रियों ने भारत के प्रधानमंत्री पर आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं। भारत ने जब आपत्ति जताई तो उन मंत्रियों को निलंबित कर दिया गया था।
पिछले कुछ दशकों से भारत और चीन दोनों ही दक्षिण एशिया में मालदीव पर अपने प्रभाव को लेकर रस्साकशी कर रहे हैं। मुईज्जुू के चुनाव जीतने के बाद ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि मालदीव का रुझान चीन की ओर बढ़ेगा। मालदीव चीन की 'बेल्ट एंड रोड' योजना में भी शामिल हो गया है, जिसके तहत बंदरगाह, रेल लाइनें और सड़कें बिछाई जानी हैं।
डॉ. ब्रूस्टर कहते हैं कि हाल के समय में भारत और मालदीव के बीच जो हुआ है वह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन यह लंबे समय से भारत पर मालदीव की निर्भरता को लेकर लोगों के बीच बेचैनी को दिखाता है।
उन्होंने कहा, 'दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के साथ किसी छोटे देश के लिए रिश्ते बनाए रखना कभी आसान नहीं होता। मालदीव की नई सरकार चीन के साथ निवेश के रास्ते दोबारा खोलने को उत्सुक है और जहां तक मेरी जानकारी है, कई परियोजनाओं पर काम हो रहा है। लेकिन नई सरकार रक्षा संबंधों को विविध करने को लेकर भी उत्सुक है और ऐसे में अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया अहम भूमिका निभा सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि भारत के साथ संबंधों की राह में जो हाल के दिनों में जो झटके लगे हैं, वे सभी पक्षों द्वारा संभाले जा सकते हैं और मालदीव की नई नीतियां क्षेत्र में अस्थिरता का कारण नहीं बनेंगी।'(प्रतीकात्मक चित्र)