मालदीव एक छोटा सा द्विपीय मुल्क है। क्षेत्रफल महज़ 300 वर्ग किलोमीटर। अगर क्षेत्रफल के मामले में तुलना करें तो दिल्ली मालदीव से क़रीब पाँच गुनी बड़ी है।
मालदीव छोटे-छोटे क़रीब 1200 द्वीपों का समूह है। मालदीव की कुल आबादी 5।21 लाख है। कहा जाता है कि मालदीव भौगोलिक रूप से दुनिया का सबसे बिखरा हुआ देश है। मालदीव के भीतर भी एक द्वीप से दूसरे द्वीप में पानी के जहाज से पहुँचा जा सकता है।
कई लोग इन्हीं तथ्यों का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि इसके बावजूद मालदीव भारत को डेडलाइन दे रहा है।
भारत के जाने-माने सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने ट्विटर पर लिखा, ''हिंद महासागर के देश मालदीव में मुश्किल से साढ़े पाँच लाख लोग रहते हैं। लेकिन इसके नए इस्लामिक झुकाव वाले चीन समर्थक राष्ट्रपति बीजिंग की अपनी यात्रा से इतना साहस जुटा पा रहे हैं कि भारत को डेडलाइन दे रहे हैं और भारत को लेकर आक्रामक बयान दे रहे हैं ताकि मालदीव को तोहफे में जो हेलिकॉप्टर दिए गए थे, उनके रख-रखाव के लिए मौजूद कुछ दर्जन सैनिकों को भारत भेजा जा सके।''
मालदीव इतना अहम क्यों?
पिछले हफ़्ते ही मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू चीन के पाँच दिवसीय दौरे से लौटे हैं। लौटने के बाद मोहम्मद मुइज्जू ने राजधानी माले में कहा कि मालदीव भले छोटा है लेकिन इससे किसी भी देश को धमकाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है।
कहा जा रहा है कि मुइज्जू ने भले भारत का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा भारत की ओर ही था।
भारत की सरकार की ओर से मालदीव के जवाब में सार्वजनिक रूप से कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। लेकिन मुइज़्ज़ू सरकार अपने तेवर में है।
मालदीव ने भारत को 15 मार्च तक अपने सैनिकों को वापस बुलाने की डेडलाइन दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत मालदीव के ग़ुस्से को इतनी चुप्पी से क्यों सुन रहा है?
मालदीव क्या भारत के लिए इतना अहम है कि उसके आक्रामक बयान को भी बर्दाश्त करना समझदारी है?
मालदीव जहाँ स्थित है, वही उसे ख़ास बनाता है। हिन्द महासागर के बड़े समुद्री रास्तों के पास मालदीव स्थित है।
हिन्द महासागर में इन्हीं रास्तों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता है। खाड़ी के देशों से भारत में ऊर्जा की आपूर्ति इसी रास्ते से होती है। ऐसे में भारत का मालदीव से संबंध ख़राब होना किसी भी लिहाज से ठीक नहीं माना जा रहा है।
कहा जा रहा है कि अभी मालदीव का विपक्ष भारत के साथ है लेकिन भारत के आक्रामक बयान से वहाँ की आम जनता नाराज़ होगी तो विपक्ष को भी साधना आसान नहीं होगा। ऐसे में चीन की मौजूदगी वहाँ की सत्ता और विपक्ष दोनों में बढ़ेगी।
मालदीव मुस्लिम बहुल देश है। भारत में सांप्रदायिक विवादों का असर भी वहाँ होता है। नुपूर शर्मा मामले में भी मालदीव से प्रतिक्रिया आई थी। इंटरनेट के ज़माने में घरेलू राजनीति का विवाद सीमाओं से परे होता है।
हिन्द महासागर में बढ़ती होड़
हाल के दशकों में हिन्द महासागर में आर्थिक और सैन्य गतिविधियों को लेकर होड़ बढ़ी है। हिन्द महासागर में चीन अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। ऐसे में मालदीव उसके साथ आता है तो उसे पैर जमाने में और मदद मिलेगी।
कहा जा रहा है कि मालदीव की मौजूदा मुइज़्ज़ू सरकार खुलकर चीन के साथ है। मुइज़्ज़ू ने जब चुनाव जीता तो हेडलाइन बनी कि मालदीव में चीन परस्त उम्मीदवार को मिली जीत।
जुलाई 2015 में मालदीव ने अपना संविधान संशोधन किया था। इसके तहत विदेशी स्वामित्व वाले लैंड लेने की अनुमति दी गई थी। इसके बाद अटकलें तेज़ हो गई थीं कि चीन मालदीव में रणनीतिक ठिकाने विकसित करेगा।
पिछले हफ़्ते शनिवार को नागपुर में मंथन टाउनहॉल में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर बोल रहे थे।
इसी दौरान उनसे मालदीव से ख़राब होते संबंधों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था, ''राजनीति तो राजनीति है। मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता कि हर देश, हर दिन, हर व्यक्ति हमारा समर्थन करे या हमसे सहमत हो। हम इसकी बेहतर कोशिश करते हैं और पिछले 10 सालों में कामयाबी भी मिली है। हमने कई मामलों में मज़बूत संपर्क स्थापित किए हैं। राजनीति में उठापटक की स्थिति रहती है लेकिन भारत के बारे में वहां के आम लोगों की राय अच्छी है और उन्हें भारत से अच्छे संबंधों की अहमियत पता है।''
जानकार क्या कह रहे हैं?
भारत के पूर्व राजनयिक भी मुइज्जू सरकार के ग़ुस्से पर ईंट का जवाब पत्थर से देने की बजाय समझदारी से काम लेने की सलाह दे रहे हैं।
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू से भारत के पूर्व राजनयिक राकेश सूद ने कहा, ''मुइज्जू तो अपनी राजनीति कर रहे हैं और इससे फ़ायदा भी उठाना चाहेंगे। वो जानबूझकर उकसाने वाली बयानबाज़ी कर रहे हैं लेकिन जैसे को तैसा जवाब देने की स्थिति भारत के लिए अच्छी नहीं है। भारत के लिए सही ये रहेगा कि मालदीव को समाजिक आर्थिक नज़रिए से भारत की अहमियत का अहसास करवाया जाए।''
मुइज़्ज़ू का मानना है कि इब्राहिम सोलिह की सरकार में मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रा से समझौता किया गया।
इब्राहिम सोलिह की सरकार को भारत समर्थक कहा जाता था। मुइज़्ज़ू मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी के ख़िलाफ़ बोलते रहे हैं और अब राष्ट्रपति बनने के बाद हटाने की डेडलाइन भी दे चुके हैं। चुनावी अभियान में उन्होंने इंडिया आउट कैंपेन भी चलाया था।
मुइज़्ज़ू जिस प्रोग्रेसिव अलायंस के नेता हैं, उसका मानना है कि इब्राहिम सोलिह की सरकार में भारत के साथ हुए तीन रक्षा समझौते मालदीव की संप्रभुता के ख़िलाफ़ थे।
इन तीनों समझौतों से मुइज़्ज़ू सरकार ने मालदीव को अलग कर लिया है। सोलिह सरकार ने भारत के साथ 2021 में उथुरु थिला फलहु (यूटीएफ़) समझौते पर हस्ताक्षर किया तो विपक्ष और हमलावर हो गया। यह एक रक्षा समझौता था, जिसके तहत संयुक्त रूप से नेशनल डिफेंस फोर्स कोस्ट गार्ड हार्पर बनाना था।
राष्ट्रपति चुनाव में भारत विरोधी अभियान
मालदीव में पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव हुआ और भारत विरोधी अभियान एक लोकप्रिय मुद्दा बन गया।
कुछ ही महीनों में मोहम्मद मुइज्जू विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में उभरे क्योंकि कई मामलों के कारण पूर्व राष्ट्रपति यामीन चुनाव में हिस्सा नहीं ले सके।
मुइज्जू राष्ट्रपति बनने से पहले मालदीव की राजधानी माले के मेयर थे। इब्राहिम सोलिह ने अपनी विदेश नीति में भारत को तवज्जो देते हुए 'इंडिया फर्स्ट' की नीति अपनाई थी। सोलिह के नेतृत्व में मालदीव और भारत के बीच कई रक्षा और आर्थिक समझौते हुए।
मुइज्जू ने राष्ट्रपति बनते ही संकेत दे दिया कि उनकी विदेश नीति में भारत से दूरी बनाना प्राथमिकता में है। उन्होंने पहला विदेश दौरा तुर्की का किया। मुइज्जू ने एक परंपरा तोड़ी क्योंकि इससे पहले मालदीव का नया राष्ट्रपति पहला विदेशी दौरा भारत का करता था।
तुर्की के बाद मुइज्जू यूएई गए और हाल ही में चीन से मालदीव लौटे। मुइज्जू ने चीन को अहम साझेदार बताया है और कई महत्वपूर्ण समझौते किए हैं।
मुइज्जू ने शपथ लेने के बाद राष्ट्र के नाम पहले संबोधन में मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी की बात दोहराई। उन्होंने कहा कि मुल्क की स्वतंत्रता और संप्रभुता उनकी सरकार के लिए ज़्यादा ज़रूरी है।
साल 2019 में मालदीव के समुद्री इलाक़े में सर्वे को लेकर भारत से समझौता हुआ था, जिसे मुइज़्ज़ू की सरकार ने ख़त्म कर दिया। इब्राहिम सोलिह के राष्ट्रपति रहते पीएम मोदी ने मालदीव का दौरा किया था, तभी हाइड्रोग्राफिक सर्वेइंग को लेकर एमओयू हुआ था।
इसका मक़सद समुद्री सुरक्षा में सहयोग बढ़ाना था। सोलिह सरकार इस समझौते को लेकर भी विपक्ष के निशाने पर रही थी। दिसंबर में मुइज्जू सरकार ने घोषणा कर दी कि यह समझौता अब आगे नहीं बढ़ेगा।
इन समझौते से अलग होने को मुइज्जू की चीन से बढ़ती क़रीबी के रूप में देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि मालदीव में जो रक्षा बढ़त भारत को सोलिह सरकार में मिली थी वो अब पूरी तरह से चीन के साथ शिफ़्ट हो गई है।