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Written By DW
Last Modified: रविवार, 13 अगस्त 2023 (07:59 IST)

भारतः झूठे वादों पर यौन संबंधों के लिए सजा की तैयारी

भारतः झूठे वादों पर यौन संबंधों के लिए सजा की तैयारी - india proposes sweeping overhaul of british era criminal law
स्वाति बक्शी
औपनिवेशिक दौर में बने इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) को बदलने के लिए प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता बिल में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर तवज्जो का दावा है।
 
प्रस्तावित न्याय संहिता बिल में कहा गया है, "अगर कोई, किसी महिला से धोखाधड़ी या शादी के वादे के आधार पर, जिसे पूरा करने का कोई इरादा नहीं है, यौन संबंध बनाता है तो उसे दस साल तक की जेल के साथ जुर्माना भी देना होगा।”
 
भारतीय पुलिस और कोर्ट की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाली आईपीसी में ऐसा कोई निश्चित प्रावधान नहीं है जो झूठे वादे पर बनाए गए यौन संबंधों में सजा निर्धारित करता हो, हालांकि कोर्ट में ऐसे मामले पहुंचते रहे हैं जिनकी सुनवाई बलात्कार और सहमति से जुड़ी धाराओं के आधार पर होती है। नए कानून में इस्तेमाल धोखाधड़ी शब्द में नौकरी या प्रमोशन का लालच देना भी शामिल है।
 
1860 में बना आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में औपनिवेशिक हितों के लिए बनाया गया था। भारत सरकार का कहना है कि इसे हटाना "गुलामी के चिन्हों" को मिटाना है। इसी के मद्देनजर लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता के अलावा, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य बिल भी पेश किए गए हैं। यह दोनों दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम (आईईसी) की जगह प्रस्तावित हैं। इन बिलों में मॉब लिंचिंग और गैंगरेप के लिए सजा का प्रावधान भी किया गया है। मॉब लिंचिंग के मामलों में सात साल से लेकर मृत्युदंड तक की सजा हो सकती है। गृहमंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव पेश करते हुए देशद्रोह कानून को खत्म करने का दावा भी किया।
 
यौन संबंध और सहमति
शारीरिक संबंधों के मामले में सहमति एक जटिल मसला है। बहुत से मामलों में अक्सर यह देखने को मिलता है कि महिलाएं शादी के वादे के आधार पर सेक्स के लिए सहमति की बात कहती हैं। इस तरह के मामलों में सुनवाई बलात्कार की परिभाषा के भीतर होती है। बलात्कार क्या है और सहमति के सात रूप व उनका उल्लंघन किन परिस्थितियों में होगा, यह आईपीसी की धारा 375 में दिए गए हैं। इसके मुताबिक, सहमति का मतलब है "जब महिला ने स्वेच्छा से, साफ तौर पर, शब्दों, हाव-भाव या किसी अन्य तरह से यह जताया हो कि वह यौन संबंध बनाने की इच्छुक है।”
 
इसके विपरीत सहमति का उल्लंघन कई परिस्थितियों में माना जाएगा। जैसे नशे की हालत, मौत या हिंसा का डर दिखाकर ली गई सहमति या फिर महिला की सहमति के बिना बनाए गए शारीरिक संबंध। यौन हिंसा के मामलों में सजा को कड़ा करते हुए सरकार ने प्रस्ताव रखा है कि गैंग रेप के मामलों में आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकती है जबकि किसी बच्चे के साथ बलात्कार के अपराधी को मौत की सजा भी मुमकिन होगी।
 
झूठा वादा या वादा तोड़ना
सुप्रीम कोर्ट की एक डिविजनल बेंच ने 2019 में प्रमोद सूर्यभान पवार केस की सुनवाई के दौरान इन झूठे वादे और वादा तोड़ने को दो अलग परिस्थितियां माना। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बैनर्जी की बेंच ने कहा कि पवार केस में शादी का वादा झूठा था क्योंकि उसे शुरू से ही मालूम था कि वह शादी नहीं करने वाला है। यहां महिला को सही तथ्य ना बताकर यौन संबंधों के लिए सहमति ली गई जो झूठा वादा कहलाएगा लेकिन कोर्ट ने कहा कि वादा तोड़ना इससे अलग है।
 
इसके बाद 2021 में जब उत्तरप्रदेश में सोनू उर्फ सुभाष कुमार का मामला आया तो सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अपने फैसले का आधार लेते हुए कानूनी पक्ष साफ किया कि धारा 375 के तहत एक महिला की सहमति में उसकी सक्रिय भागीदारी और सोच-विचार शामिल होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह स्थापित करने के लिए कि सहमति तथ्यों की गलत जानकारी पर आधारित थी, दो बातें जरूरी हैं। पहली, शादी का वादा बिल्कुल झूठा रहा हो और उसे पूरा करने का कभी कोई इरादा ना रहा हो। दूसरी, यौन संबंध बनाने में महिला की सहमति का सीधा संबंध उस झूठे वादे से हो जिसने उसके यौन संबंध बनाने के फैसले को प्रभावित किया। 
 
सजा के प्रावधान अपराधों को रोकने के लिए जरूरी समझे जाते हैं लेकिन कानूनी भाषा और परिभाषा, सामाजिक बदलाव से कदमताल करने में अक्सर पीछे ही दिखती है। मसलन महिला होने की परिभाषा अब अपने आप में एक सवाल है और एलजीबीटीक्यू समुदाय के अधिकार व शादी का ढांचा इसके जटिल पहलू।
 
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