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Written By DW
Last Modified: गुरुवार, 21 अगस्त 2025 (08:10 IST)

बिहार: एसआईआर पर यात्रा राहुल-तेजस्वी के लिए कितनी फायदेमंद

वोटर अधिकार यात्रा को मिलाकर राहुल गांधी की इस वर्ष यह छठवीं बिहार यात्रा है। विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और एसआईआर को आधार बनाकर अब वो अपनी चुनावी रणनीति को धार देने की कोशिश में लगे दिख रहे हैं।

tejashwi yadav and rahul gandhi in voter adhikar yatra
मनीष कुमार पटना, बिहार
बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) के विरोध में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी प्रसाद यादव रविवार से बिहार के सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा पर निकले हैं। उनकी यह यात्रा राज्य के 25 जिलों से गुजरेगी। एक सितंबर को पटना के गांधी मैदान में इसका समापन होगा। 14 करोड़ बिहारवासियों से सीधा संपर्क स्थापित करने के मकसद से की जा रही इस यात्रा में इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों के बड़े नेता उनके साथ हैं।
 
राहुल गांधी ने जहां इसे सबसे बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार (एक व्यक्ति, एक वोट) की रक्षा की लड़ाई बताते हुए संविधान को बचाने की अपील की है, वहीं तेजस्वी यादव ने इसे सिर्फ चुनाव की नहीं, बल्कि बिहार और बिहार के लोगों के सम्मान, स्वाभिमान, अधिकार और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई करार दिया है।
 
यात्रा के पहले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग राहुल गांधी के निशाने पर रहे। उन्होंने कहा कि जहां-जहां चुनाव हो रहे, वहां-वहां बीजेपी वोट चोरी कर अपनी सरकार बना रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में भी एसआईआर के जरिए यही साजिश की जा रही है लेकिन, वो ऐसा होने नहीं देंगे।
 
राहुल गांधी ने सोमवार को औरंगाबाद में कहा, "मोदी सरकार ने ऐसा कानून बना दिया कि चुनाव आयोग पर केस हो ही नहीं सकता।" उसी दिन देर शाम गया में राहुल गांधी ने इससे एक कदम आगे बढ़कर कह दिया कि केंद्र और बिहार में इंडिया गठबंधन की सरकार बनने पर वोट चोरी के लिए मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों पर कार्रवाई की जाएगी और पूरा देश उनसे हलफनामा मांगेगा। वहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपने संबोधन में कहा, "मुख्य निर्वाचन आयुक्त को यह एफिडेविट देना चाहिए कि वे रिटायरमेंट के बाद मोदी सरकार की ओर दिया जाने वाला कोई लाभ का पद नहीं लेंगे और न ही देश छोड़कर विदेश भागेंगे।"
 
चुनाव आयोग के खिलाफ विपक्षी सांसदों का बड़ा प्रदर्शन :  राजनीतिक समीक्षक सौरव सेनगुप्ता कहते हैं, "नि:संदेह इंडिया गठबंधन को एक जबरदस्त मुद्दा मिला हुआ है। लेकिन, इसमें सबके अपने-अपने निहितार्थ हैं। यह घटक दलों के लिए उन इलाकों में कनेक्ट का बेहतर मौका है, जहां पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन उनके लिहाज से बेहतर रहा।" करीब 13 दिनों तक राहुल बिहार में रहेंगे। संभवत: उनके बिहार प्रवास की यह सबसे लंबी अवधि होगी। इससे प्रशांत किशोर जैसे उन लोगों को जवाब भी मिल जाएगा, जो राहुल को बिहार के गांवों में एक रात गुजारने की चुनौती देते रहे हैं।
 
1988 के बाद विपक्षी दलों का सबसे बड़ा जुटान : चुनाव प्रचार के दौर में यात्राएं पहले भी होती रही हैं, जो किसी दल विशेष द्वारा आयोजित की जाती थीं। लेकिन बिहार में 1988 के बाद यह ऐसी पहली यात्रा है, जिसमें किसी एक गठबंधन के सभी दल एकसाथ सड़क पर उतरे हैं। उस वक्त वीपी सिंह ने जनमोर्चा के बैनर तले बिहार के कई इलाकों की यात्रा की थी, जिसमें कई दल शामिल हुए थे। उसके बाद केंद्र और बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ था। वैसे, किसी भी गठबंधन के दल जिलों में साथ मिल कर रैली या सभाएं करते रहे हैं। लेकिन, किसी यात्रा के रूप में ऐसा करीब 37 साल बाद देखा जा रहा है।
 
इस दौरान महागठबंधन बिहार के करीब पौने दो सौ विधानसभा क्षेत्र के लोगों के बीच अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। सभी घटक दलों ने अपने-अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं को काफी बढ़-चढ़ कर भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। ताकि, टिकट बंटवारे के समय इस आधार पर वे अपना दावा पेश कर सकें। इस यात्रा पर राज्य के श्रम संसाधन मंत्री संतोष सिंह कहते हैं, ‘‘उन्हें न तो संविधान पर भरोसा है, न चुनाव आयोग पर और न ही न्यायालय पर। इस तरह की नौटंकी से राहुल गांधी को कोई लाभ नहीं होने वाला। चुनाव में महागठबंधन का सूपड़ा साफ हो जाएगा।''
 
क्या है यात्रा का प्रयोजन : एसआईआर के नाम पर हेराफेरी का विरोध इस यात्रा का मुख्य विषय तो है ही। किंतु, अपने-अपने भाषणों में घटक दलों के नेता राज्य सरकार की बखिया भी उधेड़ रहे, नीतीश सरकार की कमजोरियों का भी बखान कर रहे। वादों को नकल करने का आरोप लगा रहे और साथ ही यह भी बता रहे कि उनकी सरकार बनने पर क्या-क्या सुविधाएं दी जाएंगी। आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा की भी चर्चा कर रहे। तेजस्वी कह रहे, राज्य सरकार ने आरक्षण की सीमा को बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दिया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगा दी गई है।
 
इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजनीति में यात्राओं का बड़ा महत्व रहा है। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने लोगों से जुड़ने की कोशिश की थी, वहीं न्याय यात्रा के जरिए आमजन से जुड़े मुद्दे उठा कर हर श्रेणी के वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश की थी। लेकिन, वोटर अधिकार यात्रा के जरिए वे एसआईआर को मुद्दा बनाने की कोशिश कर ही रहे, यह भी संदेश देना चाह रहे हैं कि पूरा इंडिया गठबंधन एक है। यह यात्रा उन इलाकों से गुजर रही, जिसे महागठबंधन अपनी राजनीति के लिए उर्वर व अनुकूल मानता है। 
 
दिया संदेश, तेजस्वी ही ड्राइविंग सीट पर : पत्रकार श्रीनिवास तिवारी कहते हैं, "याद कीजिए, पिछले लोकसभा चुनाव से पहले आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने राहुल गांधी से कहा था कि आप दूल्हा बनिए, हम लोग बाराती बनेंगे। लेकिन यहां तो वे कतई ऐसा न होने दें। इसलिए यह संदेश देने की भी कोशिश की गई है कि बिहार में इंडिया गठबंधन में ड्राइविंग सीट पर तेजस्वी यादव ही हैं।"
 
यह कांग्रेस की विवशता हो या आरजेडी की रणनीति, वर्तमान राजनीतिक स्थिति में कांग्रेस और आरजेडी को यह समझ में आ रहा कि एकजुट रहे बिना सत्ता दूर ही रहेगी। वह भी तब, जब दोनों की राजनीति विशेषकर मुसलमान, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के संदर्भ में समरूप नीति पर ही आगे बढ़ रही। इस बीच सोमवार को राहुल व तेजस्वी दोनों ही नेता औरंगाबाद के देव मंदिर में एक साथ पूजा-अर्चना करते दिखे। रोड़ी और चंदन का तिलक लगवा कर, गुलाबी चादर ओढ़ कर, माला पहन उन्होंने मंदिर की घंटी बजाई और उसकी परिक्रमा की। इसके बाद एक्स हैंडल पर पोस्ट किया: "आज सुबह-सुबह प्राचीन देव सूर्य मंदिर में दर्शन करने का अवसर मिला। हमें अंधकार से लड़कर न्याय के सूर्योदय की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा मिली। वोट चोरी अब नहीं चलेगी।"
 
आधार के साथ नाम जोड़ने के लिए करना पड़ेगा आवेदन :  अब ऐसे सभी मतदाता, जिनके नाम ड्राफ्ट लिस्ट में दर्ज नहीं हैं, वे अपने ईपिक नंबर के माध्यम से अपनी प्रविष्टि से संबंधित सूचना प्राप्त कर सकते हैं और इतना ही नहीं, अब आधार कार्ड की एक प्रति के साथ नाम जोड़ने के लिए अपना दावा भी पेश कर सकते हैं।

इससे पहले बीते रविवार की देर रात बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) की ओर से एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) बनाम भारत निर्वाचन आयोग के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश पर अमल करते हुए मृत, स्थानांतरित, अनुपस्थित तथा दोहरी प्रविष्टि वाले मतदाताओं की सूची सार्वजनिक कर दी गई। इनमें लगभग 65 लाख वैसे मतदाता हैं, जिनके नाम एसआईआर की ड्राफ्ट लिस्ट में प्रकाशित नहीं किए गए थे। जिन मतदाताओं के नाम शामिल नहीं किए गए हैं, उनमें 22 लाख 34 हजार की मृत हैं, 36 लाख 28 हजार लोग स्थाई रूप से अपने स्थान को छोड़कर कहीं चले गए हैं, तथा सात लाख मतदाताओं के नाम एक से अधिक विधानसभा क्षेत्र की वोटर लिस्ट में हैं, यानी दोहरी प्रविष्टि वाले हैं।
 
एसआईआर के कारण काफी संख्या में वोटरों के बूथ भी बदले जाने का अंदेशा है। इसका कारण बूथों का पुनर्गठन, वोटरों के नाम सूची से बाहर होना और नए मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में शामिल होना है। आयोग की ओर से एक बूथ पर मतदाताओं की संख्या 1,500 से घटाकर 1,200 करने से भी यह परिवर्तन संभावित है। शहरी क्षेत्रों में कम हो रहे मतदान प्रतिशत को देखते हुए भारत निर्वाचन आयोग ने अब अपार्टमेंट और रिहायशी कालोनियों के भीतर ही बूथ स्थापित करने का निर्देश दिया है। आयोग की नई रणनीति से वोटरों के लिए दूरी भी घटेगी, कतारें भी छोटी होंगी, लेकिन वोटरों का बूथ बदल जाएगा।
 
जाहिर है, एसआईआर के रूप में विपक्ष के हाथ लगा तुरुप का इक्का इंडिया गठबंधन की राह कितनी आसान कर पाएगा या फिर एनडीए की राह कितनी दुरूह होगी, यह तो ईवीएम खुलने के बाद ही पता चल सकेगा।
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