दशहरा पर्व पर कविता: हम रावण नहीं बनाएंगे
इस साल दशहरे पर भैया,
हम रावण नहीं बनाएंगे।
हर साल बनाया है रावण,
खुश होकर उसे जलाया है।
जब फट-फट करके जला खूब,
मस्ती में हर्ष मनाया है।
लेकिन हर बार हुआ जिन्दा,
तो कब तक उसे जलाएंगे।
रावण तो अब तक जला नहीं,
दफ़्ती, बारूद जलाई है।
न जले दोष, दुर्गुण अब तक,
क्यों झूठी आस लगाईं है।
रावण के नकली चेहरों पर,
धन, समय न व्यर्थ गवाएंगे।
दादा-दादी का कहना है,
अपने दोषों को जाने हम।
अपने भीतर जो रावण है,
उसको भी तो पहचाने हम।
दृढ इच्छा का चाबुक लेकर,
हम उसको मार भगाएंगे।
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