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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : बुधवार, 18 अगस्त 2021 (17:42 IST)

तालिबान भारत का दुश्मन नहीं, भारत को तालिबान से करनी चाहिए बात: वेद प्रताप वैदिक

UNSC के अध्यक्ष होने के नाते भारत को अफगानिस्तान में शांति-सेना भेजने का प्रस्ताव लाना चाहिए

तालिबान भारत का दुश्मन नहीं, भारत को तालिबान से करनी चाहिए बात: वेद प्रताप वैदिक - Taliban not enemy of India, India should talk to Taliban: Ved Pratap Vaidik
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अब काबुल में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। काबुल में फंसे लोगों को लेकर भारतीय वायुसेना का C-17 ग्लोब मास्टर विमान भारतीय राजदूत समेत 150 भारतीयों को लेकर जामनगर पहुंचा। वहीं एक अनुमान के मुताबिक अब भी डेढ़ हजार से अधिक भारतीय काबुल में फंसे हुए है। अफगानिस्तान पर देखते ही देखते तालिबान के कब्जे के बाद अब भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। पिछले 20 सालोंं से अफगानिस्तान भारत का मित्र पड़ोसी देश था ऐसे में तालिबान के कब्जे के बाद भारत को क्या रुख अपना चाहिए इसके लेकर 'वेबदुनिया' ने अफगान मामलों के विशेषज्ञ डॉ वेदप्रताप वैदिक से खास बातचीत की।   
 
'वेबदुनिया' से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक कहते हैं कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से उनको कुछ भी हैरत नहीं लग रहा है। वह पिछले दो हफ्तों से लगातार विदेश मंत्रालय के साथ-साथ मीडिया के जरिए भी यह कह रहे थे कि काबुल पर तालिबान का कब्जा होने ही वाला है लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि  प्रधानमंत्री कार्यालय, विदेश मंत्रालय और गुप्तचर विभाग सोता रहा।  
वेदप्रताप वैदिक कहते हैं कि अफगानिस्तान में कोई भी उथल-पुथल होती है तो उसका सबसे ज्यादा असर पाकिस्तान और भारत पर होता है लेकिन ऐसा लग रहा था कि भारत खर्राटे खींच रहा है जबकि पाकिस्तान अपनी गोटियाँ बड़ी उस्तादी के साथ खेल रहा है। एक तरफ वह खून-खराबे का विरोध कर रहा है और पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अशरफ गनी के समर्थक नेताओं का इस्लामाबाद में स्वागत कर रहा है और दूसरी तरफ वह तालिबान की तन, मन, धन से मदद में जुटा हुआ है बल्कि ताजा खबर यह है कि अब वह काबुल में एक कमाचलाऊ संयुक्त सरकार बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत की बोलती बिल्कुल बंद है। वह तो अपने डेढ़ हजार नागरिकों को भारत भी नहीं ला सका है।
भारत सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष है लेकिन वहाँ भी उसके नेतृत्व में सारे सदस्य जबानी जमा-खर्च करते रहे। UNSC  के अध्यक्ष होने के नाते पहले दिन ही भारत को अफगानिस्तान में संयुक्तराष्ट्र की एक शांति-सेना भेजने का प्रस्ताव पास करवाना था। यह काम वह अभी भी करवा सकता है। कितने आश्चर्य की बात है कि जिन मुजाहिदीन और तालिबान ने रूस और अमेरिका के हजारों फौजियों को मार गिराया और उनके अरबों-खरबों रुपयों पर पानी फेर दिया, वे तालिबान से सीधी बात कर रहे हैं लेकिन हमारी सरकार की अपंगता और अकर्मण्यता आश्चर्यजनक है।
 
वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री को पता होना चाहिए कि 1999 में हमारे अपहृत जहाज को कंधार से छुड़वाने में तालिबान नेता मुल्ला उमर ने हमारी सीधी मदद की थी। प्रधानमंत्री अटलजी के कहने पर पीर गैलानी से मैं लंदन में मिला, वाशिंगटन स्थित तालिबान राजदूत अब्दुल हकीम मुजाहिद और कंधार में मुल्ला उमर से मैंने सीधा संपर्क किया और हमारा जहाज तालिबान ने छोड़ दिया।

तालिबान पाकिस्तान के प्रगाढ़ ऋणी हैं लेकिन वे भारत के दुश्मन नहीं हैं। उन्होंने अफगानिस्तान में भारत के निर्माण-कार्य का आभार माना है और कश्मीर को भारत का आतंरिक मामला बताया है। हामिद करजई और डॉ अब्दुल्ला हमारे मित्र हैं। यदि वे तालिबान से सीधी बात कर रहे हैं तो हमें किसने रोका हुआ है? अमेरिका ने अपनी शतरंज खूब चतुराई से बिछा रखी है लेकिन हमारे पास दोनों नहीं है। न शतरंज, न चतुराई !
 
वेद प्रताप वैदिक कहते हैं कि तालिबान भारत के दुश्मन नहीं है। भारत विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को तुरंत तालिबान से बात करना चाहिए था। अफगानिस्तान मामले को लेकर  पाकिस्तान बहुत चालाकी से हैंडल कर रहा है जबकि भारत पूरे मामले पर चुप बैठा हुआ है  जो कि काफी हैरान कर देता है।
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