अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और उसके आईटी विशेषज्ञ वर्षों पूर्व अंतरिक्ष में भेजे गए 2 खोजी यानों वोयेजर1 और वोयेजर2 को लेकर इस समय काफ़ी चिंतित हैं। कई दिनों से विशेषकर वोयेजर1 खोजी यान, जो इस समय पृथ्वी से अरबों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष की गहराइयों में कहीं हैं, बड़े ही रहस्यमय संकेत पृथ्वी पर भेज रहा है।
2 सप्ताहों के अंतर से सितंबर 1977 में प्रक्षेपित इन दोनों खोजी यानों से संपर्क रखने का काम कैलिफोर्निया के पासाडेना में स्थित नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (JPL) करती है। उसकी प्रोजेक्ट मैनेजर सुज़ैन डॉड ने जर्मनी की साप्ताहिक पत्रिका श्पीगल को बताया कि यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि वोयेजर1 से आ रहा डेटा अचानक बदल क्यों गया है। उन्होंने कहा, हमें ऐसा डेटा मिल रहा है, जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं।
दोनों वोयेजर यान 45 साल से अंतरिक्ष की अतल गहराइयों में अपनी यात्रा पर हैं। उन्हें भेजा गया था सबसे पहले तो ज्यूपिटर (बृहस्पति), सैटर्न (शनि), यूरेनस (अरुण) और नेपच्यून (वरुण) जैसे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रहों के पास से गुज़रते हुए उनके बारे में जानकारी देने के लिए।
1980-81 में वोयेजर1 ने बृहस्पति और उसके उपग्रहों की शानदार छवियां भेजी थीं। बाद में उसने ऐसे पहाड़ों की तस्वीरें भी भेजीं, जो माउंट एवरेस्ट से भी 30 गुना ऊंचे हैं। इन ग्रहों की झलक देने के बाद दोनों यान अंतरिक्ष की अतल गहराइयों में गोता लगाने के लिए आगे बढ़ चले।
वैज्ञानिकों का एक अनुमान यह है कि उनमें लगे उस समय के कंप्यूटर आज के कंप्यूटरों जैसे आधुनिक नहीं हैं, इसलिए हो सकता है कि उनमें कोई ख़राबी आ गई हो। संभवतः वोयेजर2 तो कुल मिलाकर ठीक काम कर रहा है, पर वोयेजर1 कुछ दिनों से जो संकेत भेज रहा है, वे अजीब हैं। वे केवल 000 के रूप में होते हैं या 377 के रूप में। कुछ लोग यह अटकल भी लगा रहे हैं कि इसमें कहीं किसी परग्रही सभ्यता या अंतरिक्ष में घूमने वाले एलियंस का हाथ तो नहीं है!
पृथ्वी से 23.4 अरब किलोमीटर दूर
वोयेजर1 इस समय पृथ्वी से 23.4 अरब किलोमीटर दूर है। उसके संकेत पृथ्वी तक पहुंचने और पृथ्वी पर से भेजे गए आदेश उस तक पहुंचने में हर बार 20 घंटे 35 मिनट का समय लगता है। मनुष्य की बनाई वे पहली ऐसी संरचनाएं है, जो अंतरिक्ष में 23.4 अरब किलोमीटर की गहराई तक पहुंच गई हैं। इस दूरी पर ऐसा ब्रह्मांडीय विकिरण (रेडिएशन) भी निश्चित रूप से काफी अधिक होगा, जो दोनों वोयेजर यानों के 45 वर्ष पुराने कंप्यूटरों की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है।
सुज़ैन डॉड का मत है कि बहुत संभव है कि हम कभी यह पता नहीं लगा पाएंगे कि डेटा-त्रुटि कहां से आई। अंतरिक्ष की गहराइयों में निरंतर आगे बढ़ रहे दोनों वोयेजर यान पृथ्वी से हर साल 53 करोड़ 50 लाख किलोमीटर दूर होते जा रहे हैं। उनके प्रक्षेपण के समय इसकी कल्पना तक नहीं की गई थी।
वोयेजर की खोज-ख़बर लेना जारी रहेगा
वोयेजर यान अपने साथ तरह-तरह की आवाजें, 55 भाषाओं में अभिवादन और महान जर्मन संगीतकार योहान सेबास्टियन बाख़ के संगीत की रिकॉर्डिंग भी ले गए हैं। सोचा गया था कि यदि वे कभी किसी दूसरी परग्रही सभ्यता के हाथ लगे और उस सभ्यता के पास भी हमारी सभ्यता से मिलती-जुलती तकनीक हुई, तो हो सकता है कि वहां के निवासी इन रिकॉर्डिंगों को सुनने और समझने का प्रयास करें। ऐसा होने पर दोनों वोयेजर यान उनके लिए हम पृथ्वी-वासियों का संक्षिप्त परिचय देने वाले संदेशवाहक बनेंगे।
दोनों वोयेजर यान वास्तव में उससे कहीं अधिक समय तक सक्रिय रह चुके हैं, जितना मूल रूप से सोचा गया था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लिए वे अब भी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। उनके जैसा नासा का अगला अन्वेषी यान 2036 में अंतरिक्ष में भेजा जाना है। नासा को प्रसन्नता ही होगी, यदि दोनों या कोई एक वोयेजर यान तब तक अपनी यात्रा जारी रखते हुए डेटा जमा करता रहे और पृथ्वी पर भेजता रहे।
JPL की आईटी विशेषज्ञ सुज़ैन डॉड चाहती हैं कि अच्छा यही होगा कि अबूझ डेटा आने की इस समय जो समस्या है, वह कुछ सप्ताहों में ही दूर हो जाए। इस समय दोनों यानों के उपकरणों को बार-बार बंद करना पड़ता है, क्योंकि दोनों की प्लूटोनियम बैटरी 45 साल के लंबे समय के साथ अपनी क्षमता खो रही हैं।
उनके उपकरणों को बार-बार बंद करने से बैटरी का जीवनकाल कुछ न कुछ बढ़ अवश्य जाता है, पर बहुत अधिक समय तक बढ़ नहीं सकता। यह भी कोई कम बड़ा आश्चर्य नहीं है कि वोयेजर यानों की बैटरी 45 साल बाद भी ऋण 250 डिग्री से भी नीचे के तापमान पर काम कर रही है! डर है कि 2025 के बाद दोनों की बैटरी शायद बिलकुल ही ठंडी पड़ जाएगी।