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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 16 नवंबर 2024 (12:12 IST)

संत तुकडोजी महाराज, जानें 5 अनसुनी बातें

संत तुकडोजी महाराज, जानें 5 अनसुनी बातें - Tukdoji Maharaj Information
tukadoji maharaj : संत तुकडो जी महाराज का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जनपद के यावली नामक गांव में (1909–1968) एक गरीब परिवार में हुआ था। उनका का मूल नाम माणिक बंडोजी इंगळे था। आइए जानते हैं उनके बारे में 5 खास रोचक बातें... 
 
Highlights
  • राष्ट्र संत तुकडोजी महाराज की जयंती कब है?
  • राष्ट्र संत तुकडोजी महाराज के बारे में जानें।
  • तुकड़ो जी महाराज का जीवन कैसा था?
तुकडोजी महाराज का नाम इसलिए तुकडोजी है क्योंकि भजन गाते समय जो भीख मिलती थी, उस पर ही उनका बचपन का जीवन बीता था। उन्होंने वहां और बरखेड़ा में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। उनके प्रारंभिक जीवन में उन्होंने कई महान संतों से संपर्क किया, लेकिन समर्थ अडको जी महाराज की उन पर विशेष कृपा रही और वे उनके शिष्य बने। उनका ये नाम उनके गुरु अडको जी महाराजन ने रखा था। वे स्वयं को ‘तुकड्यादास’ कहते थे।
 
लगभग 1935 में महाराज ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। कहते हैं कि इसमें लगभग 3 लाख से भी ज्यादा लोगों ने भाग लिया था। इसके चलते उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। जिसके चलते 1936 में उन्हें महात्मा गांधी द्वारा सेवाग्राम आश्रम में निमंत्रित किया गया। वहां लगभग वे एक माह तक रहे और फिर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
 
संत तुकडो जी महाराज के आंदोलन के चलते अंग्रेजों द्वारा उन्हें चंद्रपुर में गिरफ्तार कर नागपुर और फिर रायपुर के जेल में 28 अगस्त से 02 दिसंबर 1942 तक के लिए रखा था। जेल से छुटने के बाद बाद उन्होंने अमरावती के पास मोझरी में गुरुकुंज आश्रम की स्थापना की। वहां उन्होंने अपने अनुभवों और अंतदृष्टि के आधार पर 'ग्रामगीता' की रचना की, जिसमें उन्होंने वर्तमानकालिक स्थितियों पर ग्रामीण भारत के विकास के लिए एक नया विचार प्रस्तुत किया। उनके संगठन के सेवक आज भी सक्रिय है।
 
उनका मानना था कि ग्राम विकास होने से ही राष्‍ट्र का विकास होगा। ग्रामोन्नति एवं ग्राम कल्याण ही उनकी विचारधारा का केंद्रबिंदु था। इसी कारण उन्होंने ग्राम विकास की विविध समस्याओं के मूलभूत स्वरूप का विचार प्रस्तुत किया और उन्होंने उसे कैसे सुलझाएं इस विषय पर उपाय और योजनाएं भी बताई।
 
इतना ही नहीं राष्ट्रसंत तुकडो जी महाराज ने 1955 में जापान जैसे देश में जाकर सबको विश्वबंधुत्व का संदेश भी दिया था। 1956 में उन्होंने स्वतंत्र भारत का पहला संत संगठन बनाया। उन्होंने सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश में भ्रमण कर आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकात्मता का उपदेश दिया। अपने अंतिम समय तक अपने प्रभावी खंजडी भजन के माध्यम से उन्होंने अपनी विचारप्रणाली का प्रचार तथा आध्यात्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय प्रबोधन किया। 

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