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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 1 अगस्त 2024 (15:40 IST)

देश को आजादी दिलाने में इन 3 महिलाओं का रहा बलिदान, जानें इतिहास

देश को आजादी दिलाने में ये महिलाएं नहीं हटीं पीछे, बलिदान देकर रचा इतिहास

Independence Day 2024
Independence Day 2024
Independence Day 2024 : आज़ादी के 78 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी भारतीयों के दिलों में उन लोगों के लिए सम्मान कम नहीं हुआ है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। आज भी स्वतंत्रता दिवस पर लोग एकत्रित होकर इस आजाद जीवन के लिए उन स्वतंत्रता सेनानियों का शुक्रिया अदा करते हैं। ALSO READ: 15 अगस्त: स्वतंत्रता दिवस पर पढ़ें देशभक्ति से भरे 23 दमदार फिल्मी डायलॉग्स, सुनकर होगा गर्व
 
हैरानी की बात तो यह है कि इस जंग में अपने क्षेत्रों, मतभेदों को भुलाकर सभी वर्ग फिर चाहे वो अमीर हो या गरीब, महिलाएं हों या पुरुष, बच्चे हों या फिर बुजुर्ग सभी एकजुट हुए और अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। उन साहसी लोगों या स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़ी सम्मान, साहस और देशभक्ति की कहानियां आज भी हमारी आंखों को नम कर देती हैं। ALSO READ: भारत छोड़ो आंदोलन में रखी गई थी स्वतंत्रता की नींव, जानें 10 जबरदस्त बातें
 
हमारा इतिहास गवाह है कि महिलाओं ने समय-समय पर अपनी बहादुरी और साहस का प्रयोग कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती आई हैं। इसलिए आज हम पुरुषों के बारे में नहीं, बल्कि उन महिलाओं पर एक नजर डालते हैं जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अहम योगदान दिया था।
 
मातंगिनी हाजरा (Matangini Hazra) :
आजादी की जंग में हिस्सेदारी की बात हो और मातंगिनी हाजरा का नाम शामिल न किया जाए...ऐसा हो ही नहीं सकता। यह एक ऐसी महिला रही हैं, जिनके साहस की मिसाल आज भी बड़े गर्व से दी जाती है। इसलिए इन्हें गांधी बरी के नाम से भी जाना जाता था। गांधी बरी ने भारत छोड़ो आंदोलन और असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया था।
 
कहा जाता है कि वो एक जुलूस के दौरान तीन बार गोली खाने के बाद भी भारतीय ध्वज के साथ नेतृत्व करती रहीं और वंदे मातरम के नारे लगाती रहीं। कोलकाता में साल 1977 में पहली महिला की मूर्ति जो लगाई गई थी, वह हाजरा की थी। तो हम इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं, कि मातंगिनी हाजरा का इतिहास में कितना बड़ा योगदान है।
Independence Day 2024
कनकलता बरुआ (Kanaklata Barua) :
कनकलता बरुआ को बीरबाला के नाम से भी जाना जाता है। वह असम की एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने 1942 में बारंगाबाड़ी में भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाई और हाथ में राष्ट्रीय ध्वज लेकर महिला स्वयंसेवकों की कतार में सबसे आगे खड़ी रहीं। उनका लक्ष्य भारत से अंग्रेजों को वापस भेजना था।
 
इसलिए उन्होंने 'ब्रिटिश साम्राज्यवादियों वापस जाओ' के नारे भी लगाकर गोहपुर पुलिस स्टेशन पर झंडा फहराने की कोशिश की थी, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें रोक दिया था। हालांकि उन्होंने यह समझाने की कोशिश की, कि उनके इरादे नेक हैं, ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गोली मार दी और 18 साल की उम्र में उन्होंने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
 
अरुणा आसफ अली (Aruna Asaf Ali) :
इनका नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जिन्हें 'द ग्रैंड ओल्ड लेडी' की उपाधि दी गई है। यह आजादी की जंग में सबसे सहासी महिलाओं में से एक थीं, इन्होंने नमक सत्याग्रह आंदोलन के साथ-साथ अन्य विरोध मार्च में भी भाग लिया था। साथ ही, अरुणा भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध सभा आयोजित कर, उन्हें खुली चुनौती देने वाली पहली महिला बनीं।
 
जब 1932 में अरुणा को तिहाड़ जेल भेजा गया था, तब उन्होंने जेल में बंद राजनैतिक कैदियों के साथ होने वाले बुरे बर्ताव के विरोध में भूख हड़ताल भी की थी। इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए जाना जाता है।
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