(वरिष्ठ लेखक और व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी से 'वेबदुनिया' की खास बातचीत)
पेशे से डॉक्टर और वरिष्ठ व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी ने करीब 1,000 से ज्यादा व्यंग्य रचनाएं लिखी हैं। उन्होंने कई सालों तक 'इंडिया टुडे' और 'ज्ञानोदय' समेत देशभर की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखे। मूलत: उनकी पहचान एक व्यंग्यकार की है, लेकिन वे खुद को एक उपन्यासकार के तौर पर भी देखते हैं। उन्होंने अब तक 6 उपन्यास लिखे हैं और वे मानते हैं कि उन्हें ज्यादातर पुरस्कार उनके उपन्यासों की वजह से ही मिले हैं। हालांकि वे खुद को व्यंग्यकार तो कहते ही हैं। पेश है ज्ञान चतुर्वेदी से 'वेबदुनिया' की खास बातचीत।
अपने उपन्यासों के बारे में?
अपने लिखे उपन्यासों के बारे में ज्ञान चतुर्वेदी कहते हैं कि वे पेशे से डॉक्टर हैं, लेकिन उन्होंने डॉक्टरों के खिलाफ एक उपन्यास 'नरक यात्रा' लिखा है। इसकी कहानी डॉक्टरों के धंधे पर कटाक्ष करती है। बुंदेलखंडी परिदृश्य पर 'बारामासी' नाम का उपन्यास लिखा है। तीसरा उपन्यास 'मरीचिका' लिखा है, जो एक पौराणिक गाथा है। 'हमनामरम' नाम का उनका एक उपन्यास है, जो मृत्यु पर लिखा गया है और यह उपन्यास मौत की फिलॉसॉफी पर केंद्रित है।
व्यंग्य एक कठिन विधा है?
ज्ञान चतुर्वेदी कहते हैं कि व्यंग्य को लोकप्रिय करने का काम हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी व श्रीलाल शुक्ल ने किया है। लेकिन एक बार जो विधा पॉपुलर हो जाती है तो उसमें कई लोग आ जाते हैं, जैसे कविता पॉपुलर हुई तो कई कवि आ गए। वे कहते हैं कि दरअसल व्यंग्य हंसाने की बात नहीं है, व्यंग्य तो रोने की बात पर हंसाने की कला है। जो हास्य से करुणा की ओर जाए, वही व्यंग्य है। हर कोई व्यंग्य नहीं लिख सकता, हालांकि कई लोग व्यंग्य के नाम पर लिखते रहते हैं जबकि यह एक मुश्किल विधा है। व्यंग्य में बहुत कम नाम मिलते हैं। सिर्फ हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल ही ऐसे नाम थे, जो एक ही समय में सफल व्यंग्यकार हुए।
कहां से आया व्यंग्य?
देखिए, डॉक्टर होने का मतलब यह तो नहीं है कि उसे गंभीर ही रहना चाहिए। हम दोस्तों के साथ बैठते हैं तो बहुत हंसते-हंसाते हैं। जहां तक सवाल है कि मेरे लेखन में व्यंग्य कहां से आया? तो आप देखिए कि पूरा जीवन ही दु:ख और सुख से ही भरा हुआ है और आपको ही तय करना है कि आप दुनिया को किस कोण से देखना चाहते हैं?
दुनिया 360 कोण से भरी है और हर कोण से दुनिया अलग नजर आएगी। मैं ह्युमर और हास्य के कोण से दुनिया को देखता हूं, सटायर के कोण से दुनिया को देखता हूं, मैं दुख में से भी व्यंग्य निकाल लेता हूं। एक उदाहरण देखिए कि किसी की मौत के पहले दिन लोग रोते-बिलखते हैं, दूसरे दिन रो पाते हैं और तीसरे दिन मुश्किल से रोते हैं, चौथे दिन हंसने लगते हैं और पांचवें दिन घर में 'हा-हा', 'ही-ही' का माहौल हो जाता है। तो यही तो दुनिया है। हर विषय व्यंग्य है। अगर किसी के पास एंटेना है तो वो कहीं से भी व्यंग्य की तंरगें पकड़ लेगा।
इस दौर में व्यंग्य?
अभी अच्छा व्यंग्य लिखा जा रहा है। इस दौर में 3-4 युवा लोग हैं, जो बहुत अच्छा व्यंग्य लिख रहे हैं। जल्दी ही एक नई खेप आएगी व्यंग्यकारों की। मेरे ऊपर जाने से दुनिया बंद नहीं होगी और न ही परसाईजी के जाने के बाद दुनिया खत्म हुई थी।
मैं लिखता कम, पढ़ता ज्यादा हूं
मैंने उर्दू का अनुवाद पढ़ा है, अंग्रेजी साहित्य पढ़ा है, हिन्दी में फणीश्वर नाथ रेणु, प्रेमचंद, अमरकांत, शेखर जोशी, मोहन राकेश, राजेश जोशी, ज्ञान रंजन, कमलेश्वर व महादेवी को पढ़ा है। उधर कविता में मैंने निराला, कबीर, सूरदास, तुलसीदास आदि सभी को पढ़ा है। मैं पढ़ता ज्यादा हूं, लिखता कम हूं, क्योंकि मैं मानकर चलता हूं कि आपकी कोई एक विधा नहीं है। कविता से भी अच्छा व्यंग्य आ सकता है।