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मंदसौर घटना पर कविता : सहमे स्वप्न

मंदसौर घटना पर कविता : सहमे स्वप्न - seven year old kid in Mandsaur
कांधे पर टंगा बस्ता
चॉकलेट की बचपनी चाहत।
 
और फिर
बांबियों-झाड़ियों में से निकलते
वे सांप, भेड़िये और लकड़बग्घे
मासूम गले पर खूनी पंजे
देह की कुत्सित भूख में
बजबजाते, लिजलिजाते कीड़े
कर देते हैं उसके जिस्म को
तार-तार।
 
एक अहसास चीखकर 
आर्तनाद में बदलता है 
और वह जूझती रही
चीखती रही 
उसका बचपन टांग दिया गया 
बर्बर सभ्यता के सलीबों से।
 
सपने भी सहमे हैं उस 
सात साल की बच्ची के।
 
सड़कों पर आवाजें हैं
फांसी दे दो
गोली मार दो
इस धर्म का है
उस धर्म का है।
 
कुत्तों, भेड़ियों का
कोई धर्म नहीं होता
सांपों की
कोई जात नहीं होती।
 
एक यक्षप्रश्न
इन सांपों से, इन भेड़ियों से 
कैसे बचेंगी बेटियां?
 
सत्ता के पास अफसोस है
समाधान नहीं।
 
समाज के पास संस्कारों
के आधान नहीं।
 
उस बेटी के प्रश्न के उत्तर 
इतने आसान नहीं। 
 
(मंदसौर में सात साल की बच्ची का बलात्कार)