कविता : मैं कैसे सुन लूं तुम्हारे मन की बात...
मैं कैसे सुन लूं
तुम्हारे मन की बात
रोती मां का क्रंदन
अब डराता है
जो सपने हो गए
आंखों में पत्थर
उनको देखकर ये
मन बहुत भरमाता है
मैं कैसे कहूं तुम्हारी
बुलेट ट्रेन पर
बबुआ का गुड्डा रो-रोकर
बुलाता है
पास में शांत पड़ी
मिट्टी की बैलगाड़ी
कुछ दर्दभरी दास्तां
को सुनाती है
न लोरी है, न थपकी है
लुढ़की पड़ी काजल की बस्ती है
बाबा-दादी कहानी किसे सुनाए
यहां तो जिंदगी हो गई वीरानी है
आसमां के तारे रो-रोकर
कहते हैं कि
ये मन की बात सारी आसमानी है
आज इस तथाकथित विकसित दुनिया में
इंसान के साथ हुआ ये हादसा अनोखा है
आज तक फूलों की अर्थी पर चढ़ते देखा है
आज फूलों की अर्थी देखकर आया हूं
विकास की जमीनी हकीकत को देख
मन ही मन बहुत ही शरमाया हूं।